आस्था भट्टाचार्य
नई दिल्ली। 21वीं सदी में युद्ध का स्वरूप पहले के मुकाबले काफी बदल चुका है। कुछ दशक पहले आर्मी यानी थलसेना किसी भी देश की सुरक्षा की रीढ़ मानी जाती थी लेकिन वह स्थिति नहीं है। आर्मी को अब एयरफोर्स ने काफी हद तक रिप्लेस कर दिया है। जमीनी के बजाय हवाई लड़ाई ज्यादा महत्वपूर्ण हो चुकी है। फाइटर जेट, ड्रोन, मिसाइल आदि की भूमिका अहम हो चुकी है। नेवी का रोल भी बढ़ा है। कुल मिलाकर एयर थ्रेट काफी बढ़ चुका है। ऐसे में हवाई हमलों से निपटने के उपाय भी तलाशे जाने लगे हैं और एयर डिफेंस सिस्टम की डिमांड काफी बढ़ चुकी है।
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता दोबारा संभालने के बाद लाखों करोड़ की लागत से गोल्डन डोम वायु रक्षा प्रणाली डेवलप करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 15 अगस्त 2025 को लाल किला से ‘सुदर्शन चक्र मिशन’ लॉन्च करने का एलान किया , ताकि देश की हवाई सुरक्षा को दुश्मनों के लिए अभेद्य बना दिया जाए। किसी भी तरह के एयर थ्रेट को आसमान में ही निष्कि्रय कर दिया जाए। इस दिशा में लगातार काम चल रहा है। भारत ने रूस से एस-400 एयर डिफेंस खरीदा है। इसके साथ ही देसी तकनीक के दम पर भी स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम डेवलप किया जा रहा है।
दरअसल, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ‘प्रोजेक्ट कुश’ पर काम कर रहा है, जिसके तहत हाइपरसोनिक एयर-डिफेंस कवच डेवलप किया जा रहा है। यह 350 किलोमीटर तक के थ्रेट को इंटरसेप्ट कर उसे तबाह करने में सक्षम है। यह सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम है, जो मैक 5.5 (तकरीबन 6800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार) की गति से दुश्मनों को टार्गेट कर सकता है। भारत की रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाई देने वाले प्रोजेक्ट कुश (कुशा सैम) की ताकत और तकनीकी क्षमताओं का खुलासा हुआ है। ‘इंडिया डिफेंस रिसर्च विंग’ की रिपोर्ट के अनुसार, डीआरडीओ ने बताया है कि यह लंबी दूरी की सतह-से-आकाश मिसाइल प्रणाली मैक 5.5 की हाइपरसोनिक गति से उड़ान भरने में सक्षम है और 350 किलोमीटर की रेंज तक मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों (आईआरबीएम) को इंटरसेप्ट कर सकती है। यह प्रणाली देश की बहुस्तरीय वायु रक्षा संरचना को मजबूत करेगी और रूस की एस-500 जैसी अत्याधुनिक प्रणालियों के समकक्ष मानी जा रही है।
‘प्रोजेक्ट कुश’ के तहत डेवलप सिस्टम 4 किमी प्रति सेकेंड की रफ्तार से आती बैलिस्टिक मिसाइल को भी मार गिरा सकती है। डीआरडीओ के अनुसार, कुश को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वह 2,500–3,000 किलोमीटर रेंज वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को उनके फिर से प्रवेश के चरण में 4 किमी/सेकेंड की गति पर इंटरसेप्ट कर सके। यह इंटरसेप्शन 30 किलोमीटर ऊंचाई तक संभव है। मिसाइल एक ड्यूल-पल्स सॉलिड रॉकेट मोटर और थ्रस्ट-वेक्टर कंट्रोल तकनीक से लैस है, जो उसे उड़ान के दौरान दिशा सुधार की क्षमता देती है। कुश एयर डिफेंस सिस्टम स्टील्थ थ्रेट को भी इंटरसेप्ट कर उसे न्यूट्रलाइज कर सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि एफ-35 और एसयू-57 जैसे पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट के वार को भी नाकाम किया जा सकेगा।
बैलिस्टिक मिसाइल इंटरसेप्शन के दौरान कुशा एक विशेष किल व्हिकल का उपयोग करता है, जिसमें आरएफ और आईआर सीकर लगे हैं। यह हर मौसम में जाम-प्रतिरोधी तरीके से लक्ष्य को पकड़ता है।
इस प्रणाली में विस्फोटक वॉरहेड पर निर्भरता नहीं है, बल्कि मिसाइल लक्ष्य को सीधे टकराकर नष्ट करती है, जिससे सफलता की दर 80-90% तक रहती है। इससे लड़ाकू विमान, क्रूज मिसाइल और हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल भी नहीं बच पाएंगे। कुश सिर्फ बैलिस्टिक मिसाइल का खतरा ही नहीं रोकेगा, बल्कि फाइटर जेट्स, सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हिकल को भी नाकाम कर सकता है।
सिस्टम
‘प्रोजेक्ट कुश’ के तहत इंटरसेप्टर के 3 वेरिएंट – एम1, एम2 और एम3
वेरिएंट – रेंज
एम1 – 150
एम2 – 250 किमी
एम 3 – 350-400 किमी
(मुख्य इंटरसेप्टर)
n’प्रोजेक्ट कुश’ के तहत डेवलप मिसाइल हाइपरसोनिक रफ्तार से दुश्मनों के टारगेट को न्यूट्रलाइज करेगा।
nएफ-35 और एसयू-57 जैसे स्टील्थ थ्रेट से निपटने में सक्षम































