ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर उस याचिका पर खंडित फैसला सुनाया है, जिसमें 2023 में अकोला में हुए सांप्रदायिक दंगों की जांच के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के पुलिस अधिकारियों का विशेष जांच दल गठित करने के न्यायालय के पूर्व निर्देश पर पुनर्विचार किए जाने का अनुरोध किया गया था।
जस्टिस संजय कुमार ने 11 सितंबर को दिया गया पूर्व फैसला लिखा था और उन्होंने इस निर्देश पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया, वहीं जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने खुली अदालत में याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई। दोनों न्यायाधीशों ने अपने ‘चैंबर’ में पुनर्विचार याचिका पर विचार किया।
महाराष्ट्र सरकार ने तर्क दिया था कि हिंदू और मुस्लिम समुदायों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों वाली एसआईटी गठित करने के निर्देश से संस्थागत धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन होगा और लोक सेवकों की ओर से सांप्रदायिक पूर्वाग्रह को बढ़ावा देगा। इस पर जस्टिस कुमार ने कहा कि 11 सितंबर के आदेश में दिए गए तथ्य स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि संज्ञेय अपराध के घटित होने की सूचना दिए जाने के बावजूद, न तो संबंधित थाने के अधिकारियों और न ही पुलिस अधीक्षक ने आवश्यक कार्रवाई की, जिससे उनकी ओर से कर्तव्य में पूर्ण लापरवाही स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।
पुनर्विचार याचिका में कई आधार
उन्होंने 2024 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उसमें उल्लेख किया गया था कि भारत ने धर्मनिरपेक्षता की अपनी अलग व्याख्या विकसित की है, जिसमें देश न तो किसी धर्म का समर्थन करता है और न ही किसी धर्म के पालन और आचरण को दंडित करता है। दूसरी ओर, जस्टिस शर्मा ने कहा कि पुनर्विचार याचिका में कई आधार दिए गए हैं और इन पर निश्चित रूप से न्यायालय को विचार करना होगा।
अब सीजेआई के समक्ष रखा जाएगा मामला
अब यह मामला उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा। यह मामला न्यायालय के 11 सितंबर के फैसले से उपजा है, जिसमें मई 2023 के अकोला दंगों के दौरान 17 वर्षीय लड़के पर हमले की प्राथमिकी दर्ज करने और जांच करने में विफल रहने के लिए महाराष्ट्र पुलिस को फटकार लगाई गई थी। न्यायालय ने दो महीने पहले 11 सितंबर को कहा था कि जब पुलिस अधिकारी वर्दी पहनते हैं, तो उन्हें अपनी व्यक्तिगत और धार्मिक प्रवृत्तियों और पूर्वाग्रहों को त्याग देना चाहिए।
उस फैसले में दोनों जजों न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने आदेश दिया था कि मामले की जांच एसआईटी को करनी चाहिए और जांच में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के अधिकारी शामिल होने चाहिए।































