ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत और ओमान के बीच एक डिफेंस डील हुई है, जिसके तहत ओमान से पुराने और रिटायर हो चुके जगुआर विमान भारत को मिलेंगे। इस डील से भारत अपने जगुआर विमानों की लाइफ लाइन बढ़ाएगा।
भारत दुनिया का चौथा सैन्य शक्ति वाला देश है। पावर इंडेक्स में भारत टॉप फाइव में शामिल है, इसकी सबसे बड़ी वजह इंडियन एयरफोर्स है। भारत की एयर पावर रूस भी बेहतर मानी जा रही है। ऐसा तब है, जब एयरफोर्स के पास जरूरी 41 जेट स्क्वाड्रन की जगह मात्र 29 स्क्वाड्रन है जिसमें जगुआर और मिग वर्जन के पुराने विमान हैं, जो रिटायर के करीब है। इस बीच खबर आ रही है कि भारत ओमान से पुराने जगुआर फाइटर जेट खरीद रही है जबकि भारत जैसे समृद्ध देश द्वारा पुराने डिफेंस इक्यूपमेंट खरीदने की खबर अविश्वसनीय सी लगती है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब पूरी दुनिया 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट और स्टेल्थ क्षमता वाले ड्रोन पर फोकस कर रही है तो भारत पुराना विमान क्यों खरीद रहा है? दरअसल ओमान से पुराने विमान की डील के पीछे एक रणनीति है। यह डील भारत में सेवारत जगुआर विमानों रिटायमेंट को आगे बढ़ाने के लिए की जा रही है। इस डील के जरिए भारत स्पेयर पार्ट्स हासिल करेगा। भारत और ओमान के बीच हुए समझौते के तहत ओमान अपने सेवानिवृत्त सेसेकैट जगुआर फाइटर-बॉम्बर्स भारत को ट्रांसफर करेगा। डील नए विमान के लिए नहीं, बल्कि स्पेयर पार्ट्स जुटाने के लिए है, ताकि भारतीय वायुसेना की डीप पेनिट्रेशन स्ट्राइक क्षमता बनी रहे। असल में यह कदम भारत की मौजूदा हकीकत को दर्शाता है। नए फाइटर स्क्वाड्रन की कमी, सप्लाई चेन की दिक्क तें और देरी से चल रही खरीद प्रक्रियाओं के बीच वायुसेना के लिए जरूरी है कि जो प्लेटफॉर्म मौजूद हैं, उन्हें पूरी तरह ऑपरेशनल रखा जाए। जगुआर डील इसी व्यावहारिक सोच का नतीजा है।
भारत जगुआर का इकलौता ऑपरेटर
एक समय दुनिया की कई एयरफोर्स जगुआर फाइटर जेट को ऑपरेट करती थीं। हालांकि अब यह पुराना विमान बूढ़ा हो गया है। वर्तमान लगभग हर देश की सेना ने इसे रिटायर कर दिया। भारत दुनिया का एकमात्र देश है जो जगुआर फाइटर जेट को ऑपरेट कर रहा है जबकि इसका उत्पादन सालों पहले बंद हो चुका है।
यानी इसके पार्ट्स बाजार में आसानी से नहीं मिलते। ऐसे में भारत को कूटनीतिक रिश्तों और रक्षा साझेदारियों का सहारा लेना पड़ता है। ओमान के पास मौजूद रिटायर्ड जैगुआर जेट भारत के लिए बेहद कीमती हैं, क्योंकि इनमें वही इंजन, एवियोनिक्स और सिस्टम लगे हैं जो भारतीय जगुआर में इस्तेमाल होते हैं। यही वजह है कि यह ट्रांसफर केवल विमान लाने का नहीं, बल्कि लॉजिस्टिक्स लाइफलाइन बचाने का कदम है।
कोल्ड वॉर से लेकर कारगिल तक जगुआर की जंग
जगुआर फाइटर जेट की कहानी 1960 के दशक में शुरू होती है, जब फ्रांस और ब्रिटेन ने मिलकर इसे बनाया था। यह विमान खास तौर पर लो-लेवल उड़ान, दुश्मन के इलाके में घुसकर हमला करने और कठिन हालात में काम करने के लिए डिजाइन किया गया था। भारत ने 1978 में इसे डीप पेनिट्रेशन स्ट्राइक एयरक्राफ्ट के रूप में चुना था। बाद में एचएएल ने बेंगलुरु में इसका लाइसेंस प्रोडक्शन किया और कुल मिलाकर 160 से ज्यादा जगुआर वायुसेना में शामिल हुए। 1999 के कारगिल युद्ध में जगुआर ने लेजर गाइडेड बमों के जरिए सटीक हमले कर अपनी उपयोगिता साबित की थी।































