ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि जिस हवा में आप सांस ले रहे हैं, वह न सिर्फ आपके फेफड़ों को काला कर रही है, बल्कि आपकी यादों को भी मिटा रही है? आज किसी भी न्यूरोलॉजिस्ट के क्लिनिक में सिर्फ 70-80 साल के बुजुर्ग लोग ही नहीं, बल्कि 30 और 40 साल की उम्र के युवा भी याददाश्त की कमी (ब्रेन फोग) और संज्ञानात्मक गिरावट की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। एक विख्यात न्यूरोलॉजिस्ट का कहना है कि हवा में प्रदूषण लगातार खबरों में बना रहता है, और हम अक्सर ऐसे परिवारों से मिलते हैं जो अपने बुजुर्ग माता-पिता में याददाश्त कम होने को लेकर चिंतित रहते हैं। वे पूछते हैं कि क्या प्रदूषण इसका कारण हो सकता है। इसके अलावा उनके मन को यह सवाल भी अकसर परेशान करता है कि क्या लंबे समय तक जहरीली हवा में रहने से खुद उनके लिए भी भविष्य में याददाश्त कमजोर होने का खतरा बढ़ सकता है। बढ़ते शोध के आधार पर, इसका जवाब तेजी से चिंताजनक होता जा रहा है।
बढ़ते प्रदूषण का फेफड़ों के
साथ दिमाग पर भी असर
वायु प्रदूषण सिर्फ हमारे फेफड़ों को ही नहीं बल्कि हमारे दिमाग को भी नुकसान पहुंचा रहा है। वाहन से निकलने वाले धुएं और औद्योगिक उत्सर्जन से निकलने वाले सूक्ष्म कण, जिन्हें पीएम 2.5 कहा जाता है, इतने छोटे होते हैं कि वे हमारे रक्तप्रवाह और यहां तक कि मस्तिष्क ऊतकों तक पहुंच जाते हैं। हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि ये कण डिमेंशिया के जोखिम को काफी बढ़ा देते हैं। पीएम 2.5 में थोड़ी सी भी वृद्धि डिमेंशिया विकसित होने के जोखिम को 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ा देती है।
नाक से दिमाग में पहुंचते हैं पीएम 2.5 कण
न्यूरोलॉजिस्ट कहते हैं कि अपने दिमाग को एक सुरक्षित घर की तरह सोचें, जिसमें दरवाजे और पहरेदार होते हैं। अधिकांश खतरों को दरवाजे पर ही रोक दिया जाता है लेकिन पीएम 2.5 कण माइक्रोस्कोपिक जासूसों की तरह होते हैं, जो आपकी नाक से होकर घुस जाते हैं और घ्राण तंत्रिका के माध्यम से सीधे दिमाग में पहुंच जाते हैं। प्रदूषण दिमाग में जमे प्लाक्स को साफ करने की क्षमता पर डालता है।
आपके दिमाग की प्रतिरक्षा प्रणाली सुरक्षा गार्डों की तरह काम करती है। सामान्यतः, वे गार्ड न्यूरॉन्स की रक्षा करते हैं लेकिन जब प्रदूषण के कण दिमाग में प्रवेश करते हैं, तो वे अव्यवस्था और असंतुलन पैदा करते हैं। ये गार्ड कभी-कभी मस्तिष्क कोशिकाओं और उनकी कनेक्शनों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं। प्रदूषण अल्जाइमर रोग के लिए जिम्मेदार अमाइलॉइड-बीटा प्लाक्स के जमा होने को भी तेज कर देता है। शोध से पता चलता है कि प्रदूषित हवा दिमाग की इन प्लाक्स को साफ करने की क्षमता को कम कर देती है, जिससे ये तेजी से जमा होने लगती हैं। आनुवंशिक कमजोरी और पर्यावरणीय प्रदूषण का मेल संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट के जोखिम को बढ़ाता है।
हवा साफ होने पर भी बना रहता है खतरा
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह नुकसान तब भी होता है, जब प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों से नीचे होता है। हवा साफ दिख सकती है, लेकिन अदृश्य कण खतरा बनाए रखते हैं। अच्छी बात यह है कि यह एक रोकी जा सकने वाली समस्या है।
बचाव के उपाय
हवा की गुणवत्ता में सुधार लाना हमारे हाथ में है। स्वच्छ परिवहन का समर्थन, औद्योगिक उत्सर्जन पर कड़े नियम, और बेहतर शहरी योजना सीधे तौर पर मस्तिष्क के स्वास्थ्य की सुरक्षा करते हैं।
व्यक्तिगत स्तर पर उठाएं ये कदम
घर में एयर प्यूरीफायर का उपयोग, अधिक प्रदूषण वाले दिनों में बाहर व्यायाम से बचना और भारी ट्रैफिक के दौरान मास्क पहनना जैसे सामूहिक प्रयास वास्तविक बदलाव लाने के लिए आवश्यक है।































