ब्लिट्ज ब्यूरो
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि एक बार जांच पूरी हो जाने, आरोप पत्र दाखिल हो जाने और मुकदमा शुरू हो जाने के बाद, हाईकोर्ट को आमतौर पर जांच को फिर से खोलने या इसे किसी अन्य जांच एजेंसी को सौंपने से बचना चाहिए। इसके बजाय, आरोप पत्र प्राप्त करने वाले मजिस्ट्रेट या अपराधों की सुनवाई करने वाली अदालत को कानून के अनुसार मामले को आगे बढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने उस्मान अली द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया है। इस मामले में अपने भाई की हत्या के मामले की जांच अपराध शाखा आपराधिक जांच विभाग (सीबीसीआईडी) से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट ने जांच की कई कमियों को इंगित किया गया और मामले को मजिस्ट्रेट के पास वापस भेज दिया गया। जहां मजिस्ट्रेट की अदालत ने जांच में खामियों और अनियमितताओं को देखते हुए विरोध अर्जी की अनुमति दे दी और मई 2022 में मामले की आगे की जांच का निर्देश दिया। इस आदेश में डीजीपी को आईओ के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी कहा गया। इसके बाद मामला सीबीसीआईडी वाराणसी से सीबी-सीआईडी प्रयागराज को स्थानांतरित कर दिया गया और एक नया आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें नामित आरोपी जायसवाल और जालान का नाम भी शामिल था, लेकिन यह रिकार्ड में नहीं है।
इस दौरान याची ने इस चार्जशीट को केस रिकार्ड का हिस्सा बनाने के लिए एक और आवेदन दायर किया, जिसे सितंबर 2024 में सीजेएम, सोनभद्र ने खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की वह मामला अभी भी लंबित है। इस बीच, सोनभद्र के सत्र न्यायालय में मुकदमा शुरू हो चुका है और अभियोजन पक्ष के आठ गवाहों की जांच हो चुकी है।