ब्लिट्ज ब्यूरो
गाजियाबाद। पुराने गाजियाबाद की इस इमारत में समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है। यह इमारत आज़ादी, विश्व युद्धों और 1857 की क्रांति की गवाह है। राइटगंज में स्थित यह ऐतिहासिक जगह पहले एक स्कूल थी, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। इस इमारत की वास्तुकला अभी भी वैसी ही है लेकिन इसकी विरासत खो गई है। फर्श पर पुरानी लालटेनें बिखरी पड़ी हैं। दिन में मेहराबदार खिड़कियों से रोशनी आती है और इन लालटेनों पर पड़ती है। यहां तीन रजिस्टर भी हैं जो 1918 के हैं।
इन रजिस्टरों को पूर्व प्रधानाचार्यों ने अच्छी तरह से रखा है। उन्होंने इसके पीले पड़ चुके पन्नों को बचाने की पूरी कोशिश की। इसलिए ये रजिस्टर आज भी लगभग सही सलामत हैं। स्कूल के रिकॉर्ड में पहली एंट्री 1916 की है लेकिन पूर्व प्रधानाचार्यों ने बताया कि राइटगंज में स्कूल की इमारत 1821 में एक ब्रिटिश तहसील कार्यालय के रूप में बनाई गई थी। 1881 में इसका एक हिस्सा आवासीय स्कूल में बदल दिया गया। इसलिए इसे तहसील या टाउन स्कूल कहा जाने लगा।
15 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के भाषण के कुछ घंटे बाद मुरलीधर ने स्वतंत्र भारत में स्कूल के पहले प्रिंसिपल के रूप में पदभार संभाला। मुरलीधर 15 फरवरी 1949 तक स्कूल के प्रिंसिपल रहे। रजिस्टरों के अनुसार उनके बाद चौदह और प्रिंसिपल आए। रजिस्टरों में 1918 से 1948 तक की जानकारी लिखी हुई है। यह समय इतिहास का एक महत्वपूर्ण दौर था।
1998 से 2012 तक स्कूल के पूर्व प्रिंसिपल जगदीश शरण शर्मा बताते हैं, शुरू से ही स्कूल में केवल कक्षा 6, 7, 8 और 9 तक की पढ़ाई होती थी। शायद आज़ादी के बाद ही इसका नाम बदलकर पूर्व माध्यमिक विद्यालय कर दिया गया। गाजियाबाद के जिला विद्यालय निरीक्षक धर्मेंद्र शर्मा बताते हैं, यूपी बोर्ड की स्थापना 1921 में हुई थी। उससे पहले, केवल कक्षा 8 तक के स्कूल होते थे। मेरठ मंडल और पश्चिमी यूपी क्षेत्र में, राइटगंज का यह स्कूल शायद सबसे पुराना है। यहां दूसरे जिलों से भी छात्र पढ़ने आते थे।
यह स्कूल आज भी है, लेकिन अब यह एक नई इमारत में चलता है। यह नई इमारत ब्रिटिश काल की इमारत से लगभग 200 मीटर दूर है। स्कूल के वर्तमान प्रिंसिपल लायक अहमद हैं। उन्होंने 2013 में पदभार संभाला था। उनका कहना है कि उन्होंने और उनके पहले के प्रिंसिपलों ने इस इमारत को जितना हो सके उतना बचाने की कोशिश की है।
वे कहते हैं, पुराने रजिस्टरों को संभाल कर रखा गया है। अगर पुरानी इमारत को बचाया जा सके, तो इसे एक विरासत इमारत या संग्रहालय बनाया जा सकता है। मेरे पिता ने भी 1950 के दशक में इसी स्कूल में पढ़ाई की थी। इसका बहुत ऐतिहासिक महत्व है। लेकिन इस विरासत इमारत को बचाने के लिए कोई खास योजना नहीं है। स्थानीय बेसिक शिक्षा अधिकारी ओ.पी. यादव ने कहा, हम देखेंगे कि इसे बचाने के लिए कुछ किया जा सकता है या नहीं।
ऐसा लगता है कि यह स्कूल की इमारत ही नहीं, बल्कि पूरे राइटगंज के इतिहास का भार उठा रहा है। राइटगंज का नाम एक ब्रिटिश कलेक्टर के नाम पर रखा गया था। ‘द इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया’ में इस शहर का उल्लेख 1857 की क्रांति में इसकी भूमिका के लिए किया गया है। हालांकि, 20वीं सदी की शुरुआत की किताब में यह नहीं बताया गया है कि इसकी क्या भूमिका थी।