ब्लिट्ज ब्यूरो
प्रयागराज। 13 जनवरी पौष पूर्णिमा से महाकुंभ की शुरुआत हो रही है। 14 जनवरी को मकर संक्रांति का दूसरा स्नान है, जिसे शाही स्नान या अमृत स्नान भी कहते हैं।
महाकुम्भ जैसे विशाल आयोजन के लिए चुनौतियों से पार पाकर महज 4 महीने में बेहतरीन सुविधाओं वाला शहर बसा दिया गया। 50 दिनों के इस आयोजन में करीब 40 करोड़ श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है।
इन चार महीने में 300 किमी लंबाई वाली सड़के बनाई गईंं। एक किमी लंबाई के 30 फ्लोटिंग पुल भी बांध दिए। समय सीमा को देखते हुए सभी लोग 15-15 घंटे तक काम कर रहे हैं। छुट्टी, ओवरटाइम, टीए-डीए की उन्हें चिंता नहीं है। उन्हें लगता है कि सेवा करके उन्हें और उनके परिवारों को ‘असीमित पुण्य’ मिलेगा।यहां पीने के पानी व सीवेज जैसी सुविधाएं जुटाई हैं। समृद्धों के लिए फाइव स्टार डोम, तो जरूरतमंदों के लिए डोरमेट्री बना दी है। यह बात सोचने पर मजबूर करती है कि अस्थायी शहर इतनी कुशलता से चल सकता है, तो स्थायी शहर क्यों नहीं?
रोजाना फीडबैक, तुरंत समस्या का समाधान
अफसर रात तक डटे रहते इस महाआयोजन में आधुनिक प्रबंधन से सीख ली गई है। सबसे बड़ा सबक यह है कि काम वक्त पर शुरू करें, अगर बाधा आए तो ‘बुलडोजर’ सी ताकत का इस्तेमाल करें। जैसा कि सड़कों के चौड़ीकरण के लिए हुआ। हर वर्टिकल से रोजाना फीडबैक लेने के साथ रिव्यू किया जा रहा है ताकि समस्या पता लगे।
बड़े प्रोजेक्ट में यह अहम है। सभी अफसर रात 2 बजे तक महाकुम्भ नगर में डटे रहते हैं, बैठकें करते हैं। इससे टीम में जवाबदेही बनी रहती है। फोकस इस बात पर नहीं है कि काम कैसे पूरा होगा, बल्कि काम कौन बेहतर तरीके से करेगा… यानी गुणवत्ता से समझौता न हो।
कर्मचारियों को अपने काम पर गर्व हो
शहर को आधुनिक सुविधाओं से लैस करने वाले लाखों कर्मचारियों में गर्व की भावना रहे। इसका भी पूरा ध्यान रखा गया है। क्योंकि हर कर्मचारी को अपने काम पर गर्व हो, तो वह सब हासिल कर सकते हैं, जो नामुमकिन लगता है।
कुम्भ क्षेत्र के हजारों सफाई कर्मचारियों, नाविकों से लेकर सिविल इंजीनियरों तक में गर्व की यह भावना दिख रही है। तभी बड़े लक्ष्य पूरे हो सके।
महाकुंभनगर में आंखों का अस्पताल भी, तीन लाख चश्मे देने की तैयारी
महाकुंभनगर में आंखों का अस्पताल भी बन रहा है। मेला प्रशासन का दावा है कि यह दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा अस्थायी अस्पताल है, जहां 45 दिनों में 5 लाख मोतियाबिंद के ऑपरेशन होंगे। 3 लाख गरीबों को चश्मे देने की भी तैयारी है।
ऐसा सेटअप बनाना, दो माह बाद उसे हटाना और सुनिश्चित करना कि मशीनें अपनी जगह पर पहुंचें, बड़ी लॉजिस्टिक कवायद है। इसे सटीकता से अंजाम देना बड़ी चुनौती है। कुंभ मेले में मोबाइल संचार हमेशा विफल रहा है। इसलिए सहकर्मी वॉकी-टॉकी के जरिए जुड़े रहने का अभ्यास कर रहे हैं, ताकि कोई चूक न हो।
अस्थायी शहर ‘महाकुंभ यूनिवर्सिटी’
अस्थायी शहर को ‘महाकुम्भ यूनिवर्सिटी’ कह सकते हैं, क्योंकि इसमें हर उस कमी का समाधान है, जिसके लिए शहर जूझते रहते हैं। इस प्रभावी प्रबंधन व कर्मचारियों के शांत व्यवहार को समझने के लिए उज्जैन के एडीजी उमेश जोगा भी पहुंचे हैं… क्योंकि अगला कुंभ उन्हीं के शहर में होना है।
सुंदरकांड में एक चौपाई है… ‘विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीति…।’ इसका अर्थ है, स्तुति के बाद भी जब सागर ने श्रीराम को रास्ता नहीं दिया तो क्रोधवश श्रीराम बोले- हे लक्ष्मण यह मूर्ख सागर विनय की भाषा नहीं समझता, ठीक वैसे ही, जैसे कुछ लोग डर के बिना प्रीति नहीं करते। इससे सीख लेकर ‘सीईओ’ यानी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज में सड़क चौड़ीकरण अभियान रोकने वालों पर सख्त रुख अपनाया है।