ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में बने चिनाब ब्रिज के उद्घाटन के बाद अब इस प्रोजेक्ट से जुड़े एक अहम किरदार की खास चर्चा हो रही है। प्रोफेसर जी. माधवी लता ने चिनाब ब्रिज के डिजाइन, प्लानिंग और कंस्ट्रक्शन में 17 साल तक मेहनत की और रिजल्ट दिया। इसके साथ ही प्रोफेसर लता की उस अप्रोच की भी चर्चा हो रही है जिसकी वजह से ब्रिज तैयार हो सका।
बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) में प्रोफेसर माधवी लता ने जियोटेक्निकल सलाहकार के तौर पर काम किया। उन्होंने ब्रिज बनाने वाली कंपनी एफ्कोन्स के साथ मिलकर इसकी प्लानिंग, डिजाइन और कंस्ट्रक्शन में मदद की। खास तौर पर, उन्होंने उस मुश्किल इलाके की चुनौतियों को समझा और उनका हल निकाला, जहां यह ब्रिज बनाया गया।
प्रोफेसर माधवी लता ने 1992 में जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया, जहां उन्हें फर्स्ट क्लास के साथ डिस्टिंक्शन मिली। इसके बाद, उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, वारंगल से जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग में एम.टेक किया और गोल्ड मेडल हासिल किया।
साल 2000 में, उन्होंने आईआईटी-मद्रास से जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग में पीएचडी पूरी की। मेहनत और काबिलियत के दम पर उन्हें कई पुरस्कार मिले। 2021 में इंडियन जियोटेक्निकल सोसाइटी ने उन्हें ‘बेस्ट वुमन जियोटेक्निकल रिसर्चर’ अवॉर्ड दिया। 2022 में उन्हें भारत की टॉप 75 ‘वुमन इन स्टीम’ में भी शामिल किया गया।
क्यों बनाया गया चिनाब ब्रिज?
चिनाब ब्रिज कश्मीर घाटी में रेल कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगा। सरकार के मुताबिक, यह ब्रिज भारत के किसी भी रेलवे प्रोजेक्ट में सबसे बड़ी इंजीनियरिंग चुनौती थी। यह ब्रिज 359 मीटर ऊंचा है, जो पेरिस के एफिल टावर से 35 मीटर ज्यादा है।
चिनाब ब्रिज को बनाने में 1,486 करोड़ रुपये की लागत आई। इस ब्रिज का निर्माण मुश्किल था क्योंकि इलाका ऊबड़-खाबड़ था, मौसम की मार थी और जगह सूदूर दूर थी। फिर भी, इस ब्रिज ने इंजीनियरिंग की दुनिया में नया कीर्तिमान बनाया।
प्रोफेसर लता का योगदान खास क्यों हैं?
चिनाब ब्रिज के निर्माण में प्रोफेसर लता की टीम ने “डिजाइन-एज-यू-गो” तरीका अपनाया। इसका मतलब था कि जैसे-जैसे काम आगे बढ़ा, वैसे-वैसे डिजाइन में बदलाव किए गए। इलाके में टूटी-फूटी चट्टानें, छिपी हुई गुफाएं और चट्टानों की अलग-अलग खासियतें थीं, जो शुरुआती सर्वे में नहीं दिखी थीं।
प्रोफेसर लता ने जटिल कैलकुलेशन की और डिजाइन में बदलाव सुझाए। उन्होंने रॉक एंकर्स के डिजाइन और उनकी सही जगह तय करने में अहम सलाह दी, ताकि ब्रिज की मजबूती कायम रहे। हाल ही में, उन्होंने इंडियन जियोटेक्निकल जर्नल के महिला विशेषांक में एक पेपर छापा, जिसमें चिनाब ब्रिज के डिजाइन के बदलते सफर को बयान किया गया। इस पेपर का नाम है ‘डिजाइन एज यू गो: द केस स्टडी ऑफ चिनाब रेलवे ब्रिज।’































