ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। दुनिया के कई देश बिजली की अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए परमाणु ऊर्जा पर निर्भर हैं। हालांकि कई देशों में परमाणु ऊर्जा पर विवाद है। सबसे अधिक चिंता परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा को लेकर है। इसी बीच दो खबरें आई हैं। पहली अमेरिकी ऊर्जा विभाग (डीओई) ने 26 मार्च को होल्टेक इंटरनेशनल को भारत में न्यूक्लियर रिएक्टर डिजाइन करने और बनाने की मंजूरी दी। दूसरी, अमेरिकी कंपनी वेस्टिंगहाउस इलेक्टि्रक भी भारत में अपने एपी1000 रिएक्टर लगाने की तैयारी कर रही है। ये कदम भारत-अमेरिका के बीच दो दशक पुराने परमाणु सहयोग को मजबूत करने वाले हैं। दोनों देशों के बीच 2004 में सिविल न्यूक्लियर डील हुई थी। उस समय देश के पीएम मनमोहन सिंह थे। इस डील में उनकी अहम भूमिका थी। इस डील की वजह से उन्होंने अपनी सरकार का भविष्य दांव पर लगा दिया था।
कितनी तरह के रिएक्टर
न्यूक्लियर रिएक्टर वह मशीन है जो परमाणुओं को तोड़कर (फिशन) बिजली पैदा करती है। ये रिएक्टर तकनीक और ईंन्धन के आधार पर कई तरह के होते हैं। भारत में मुख्य रूप से तीन प्रकार के रिएक्टर इस्तेमाल में हैं: प्रेशराइज्ड हेवी वॉटर रिएक्टर (पीएचडब्ल्यूआर), लाइट वॉटर रिएक्टर (एलडब्ल्यूआर), और फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (एफबीआर)। पीएचडब्ल्यूआर भारत का सबसे लोकप्रिय रिएक्टर है, जो प्राकृतिक यूरेनियम और हेवी वॉटर (ड्यूटेरियम ऑक्साइड) का इस्तेमाल करता है। देश के 18 रिएक्टर इसी तकनीक पर चलते हैं।
दूसरा एलडब्ल्यूआर है, जो साधारण पानी और हल्के संवर्धित यूरेनियम पर काम करता है। कुडनकुलम में रूस कीवीवीईआर तकनीक इसका उदाहरण है। तीसरा एफबीआर है, जो यूरेनियम-238 से प्लूटोनियम बनाता है और भविष्य में थोरियम का उपयोग कर सकता है. कलपक्क म में इसका प्रोटोटाइप चल रहा है. इसके अलावा, भारत थोरियम आधारित एडवांस्ड हेवी वॉटर रिएक्टर (एचडब्ल्यूआर) पर भी काम कर रहा है।
मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर-300)
अब बात अमेरिकी कंपनियों की। होल्टेक इंटरनेशनल, जिसे भारतीय-अमेरिकी उद्यमी क्रिस पी. सिंह ने शुरू किया, छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर-300) में माहिर है। यह रिएक्टर प्रेशराइज्ड वॉटर रिएक्टर (पीडब्ल्यूआर) तकनीक पर आधारित है, जो एलडब्ल्यूआर की श्रेणी में आता है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने इसे भारत में बनाने की मंजूरी दी, जो अमेरिकी परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1954 के “10 सीएफआर810” नियम के तहत पहली बार किसी कंपनी को मिली है। होल्टेक अपनी सहायक कंपनी होल्टेक एशिया, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स, और लार्सन एंड टुब्रो के साथ मिलकर ये काम करेगी। पुणे में इसकी इंजीनियरिंग यूनिट और गुजरात के दहेज में विनिर्माण संयंत्र पहले से मौजूद है। कंपनी का दावा है कि मंजूरी मिलने पर वह एक साल में अपने कर्मचारियों की संख्या दोगुनी कर सकती है। दूसरी ओर, वेस्टिंगहाउस इलेक्टि्रक अपने एपी1000 रिएक्टर के साथ भारत में कदम रखने को तैयार है। यह भी पीडब्ल्यूआर तकनीक का तीसरी पीढ़ी का रिएक्टर है, जिसमें बिजली के बिना भी काम करने वाली निष्िक्रय सुरक्षा प्रणाली है। वेस्टिंगहाउस की योजना आंध्र प्रदेश के कोव्वाडा में 6 रिएक्टर लगाने की है, जो 6,600 मेगावाट बिजली पैदा करेंगे। योजना 2016 में पीएम मोदी के अमेरिका दौरे से शुरू हुई थी, लेकिन भारत के न्यूक्लियर लायबिलिटी कानून के कारण थी। कानून दुर्घटना में सप्लायर को जिम्मेदार ठहराता है, जिससे विदेशी कंपनियां हिचक रही थीं।
भारत में अभी 24 रिएक्टर
ये कदम भारत के लिए कई मायनों में अहम हैं। अभी भारत के 24 रिएक्टर 8,180 मेगावाट बिजली बनाते हैं और 2032 तक 63,000 मेगावाट का लक्ष्य है। होल्टेक के एसएमआर और वेस्टिंगहाउस के एपी1000 इस लक्ष्य को तेजी से पूरा करने में मदद कर सकते हैं।