ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एंटीबायोटिक रजिस्टेंस सर्विलेंस रिपोर्ट 2025 जारी की है। इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि सामान्य संक्रमण और नियमित तौर पर किए जाने वाले इलाज के लिए एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बड़ी चुनौती बन सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में दुनियाभर में किए गए अध्ययन में सामने आया है कि हर छह में से एक बैक्टीरियल संक्रमण के मामले में एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर रही है। इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध पैदा हो गया है। एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध का खतरा लगातार बढ़ रहा है। अध्ययन में पाया गया कि भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में एंटीबायोटिक दवाओं की प्रतिरोध दर सबसे ज्यादा देखी गई।
रिपोर्ट के मुताबिक एंटीबायोटिक दवाओं के बिना डॉक्टर की सलाह के या अपने आप से मेडिकल स्टोर से दवा लेकर खाने से इन दवाओं का प्रतिरोध मरीजों में बढ़ रहा है। एम्स भोपाल के एक अध्ययन के मुताबिक ई. कोलाई बैक्टीरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक दवा सिप्रोफ्लोक्सासिन की सफलता की दर मात्र 39 फीसदी रह गई है। इसका मतलब ये है कि हर दस में से छह रोगियों में इस एंटीबायोटिक दवा के इलाज से फायदा नहीं मिलता है। वहीं सांस और खून में इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार क्लेबसिएला न्यूमोनिया के संक्रमण के इलाज में एंटीबायोटिक मेरोपेनम की प्रभावशीलता मात्र 52% रह गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में बहुत सी एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने से बीमारियों का इलाज भी मुश्किल होगा। वहीं इन दवाओं के काम न करने से एक तरफ जहां महामारी का खतरा बढ़ेगा वहीं सामान्य बीमारियों का इलाज भी बेहद महंगा हो जाएगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर में 104 देशों से 23 मिलियन से अधिक बैक्टीरिया के संक्रमण और उसके इलाज के आंकड़े जुटाए हैं। इसके आधार पर ये अध्ययन किया गया है। ये स्टडी साफ तौर पर दर्शाती है कि कई सामान्य बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज में अब पहले जैसी एंटीबायोटिक दवाएं प्रभावी नहीं रह गई हैं।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की एंटीमाक्रोबियल रजिस्टेंस स्टैंडिंग कमेटी ने बताया कि भारत में एंटीबायोटिक्स के प्रति रजिस्टेंस बहुत ज्यादा है। अगर डब्लूएचओ की रिपोर्ट में दुनिया में छह में से एक रजिस्टेंस का मामला है तो कोई बड़ी बात नहीं कि भारत में छह में से दो एंटीबायोटिक रजिस्टेंस के मामले सामने आए। हमें इस बात को समझना होगा कि बीमारियां दो तरह की होती हैं । एक जिनमें बैक्टीरियल संक्रमण होता है और दूसरी जिनमें बैक्टीरियल संक्रमण नहीं होता। आजकल ज्यादातर लाइफस्टाइल वाली बीमारियां सामने आती हैं। इन बीमारियों के इलाज में किसी भी तरह के एंटीबायोटिक की जरूरत नहीं पड़ती। यहां तक कि ज्यादातर जुकाम, बुखार और खांसी के मामले भी वायरल इंफेक्शन के कारण होते हैं। इनके इलाज में एंटीबायोटिक काम नहीं करती है। ऐसे में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल तब ही किया जाना चाहिए जब डॉक्टर आपको इसके इस्तेमाल की सलाह दे।
एंटीबायोटिक दवाओं के विकास में बहुत लम्बा समय लगता है। आखिरी एंटीबायोटिक दवा 1983 में विकसित की गई थी। इसका नाम डेप्टोमाइसिन था। ये दवा बाजार में 2003 में आ सकी। इन दवाओं के विकास और इनकी टेस्टिंग में काफी समय लगता है। रिसर्च की बढ़ती लागत और लम्बे समय के चलते दवा कंपनियों ने भी नई एंटीबायोटिक दवाओं की रिसर्च का काम लगभग बंद कर रखा है। ऐसे में दुनियाभर में सरकारों को इन दवाओं के रिसर्च में निवेश करना चाहिए। यदि एंटीबायोटिक दवाओं का संकट ऐसे ही बढ़ता रहा तो किसी एक महामारी से बड़ी संख्या में लोगों की मौत होगी और इसे संभाल पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
हमें ये भी समझना होगा कि सिर्फ एंटीबायोटिक दवाएं खाने से ही रजिस्टेंस पैदा नहीं हो रहा। मुर्गियों को भी एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं ताकि वो बीमार न हों और इससे उनका वजन भी बढ़ता है लेकिन इन मुर्गियों को खाने वाले के शरीर में अपने आप ये दवाएं चली जाती हैं। वहीं बीमारियों से बचाव के लिए पौधों में भी इस तरह की दवाएं डाली जाती हैं। कई बार पानी में भी ये एंटीबायोटिक्स पाए जाते हैं। डब्लूएचओ की ओर से मुख्य रूप से आठ जीवाणु रोगजनकों पर एंटीबायोटिक के प्रभाव पर अध्ययन किया। इनमें एसिनेटोबैक्टर प्रजाति, एस्चेरिचिया कोलाई, क्लेबसिएला न्यूमोनिया, निसेरिया गोनोरिया, गैर-टाइफाइडल साल्मोनेला प्रजाति, शिगेला प्रजाति, स्टैफिलोकोकस ऑरियस और स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया शामिल हैं। इन संक्रमण पर इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख 22 एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति इन बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता का अनुमान लगाया गया। ये बैक्टीरिया प्रमुख रूप से रक्तप्रवाह, पेट में संक्रमण, यूरिनरी ट्रैक और गोनोरिया के लिए जिम्मेदार हैं।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट एवं एएमआर मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर बताते हैं कि भारत में एंटी बैक्टीरियल रजिस्टेंस काफी बढ़ चुका है।































