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21वीं सदी के दिग्दर्शक अटल जी

by Blitz India Media
December 27, 2024
in Hindi Edition
Statesman who shaped India with his vision
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत

जीभर जिया, मैं मन से मरूं… लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?’
अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं… कितने गूढ़ हैं। अटल जी कूच से नहीं डरे… उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था।
वे यह भी कहते थे- ‘जीवन बंजारों का डेरा, आज यहां, कल कहां कूच है… कौन जानता किधर सवेरा…

आज अगर वह हमारे बीच होते, तो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वह दिन नहीं भूलता, जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था… और जोर से पीठ पर धौल जमा दी थी। वो स्नेह…. वो अपनत्व… वो प्रेम… मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है। आज 25 दिसंबर का यह दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। उनकी राजनीति के प्रति कृतार्थ है। इक्क ीसवीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी राजग सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने प्रधानमंत्री पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। नौ साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि यह सरकार भी उसकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी।

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देश को स्थिरता और सुशासन का माडल दिया
ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का माडल दिया। भारत को नव-विकास की गारंटी दी। ये ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। ये भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को सूचना तकनीक और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही, राजग ने टेक्नोलाजी को सामान्य मानव की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया। भारत के दूरदराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किए गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा, यो आज भारत की स्मृतियों पर अमिट है। ‘लोकल कनेक्टिविटी’ को बढ़ाने के लिए भी राजग गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासन काल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने न सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूरदराज के क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया। जब भी सर्वशिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है।

वाजपेयी जी ने ऐसे भारत का सपना देखा था
शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वे चाहते थे कि भारत के वर्ग, यानी अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, आदिवासी और महिला सभी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने। उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए। इन सुधारों के कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका मूल उद्देश्य सामान्य मानव के जीवन को बदलना ही रहा। उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहसी उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते हैं।

11 मई, 1998 का गौरव दिवस
देश को अब भी 11 मई, 1998 का वो गौरव दिवस याद है, राजग सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘आपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को परमाणु परीक्षण का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को यह दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है।

उन्होंने पूरी दुनिया को वह संदेश दिया, यह पुराना भारत नहीं है। पूरी दुनिया जान चुकी थी कि भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं है। इस परमाणु परीक्षण की वजह से प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया। वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं ं। कारगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायराना प्रहार किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।

अटल जी की 100वीं जयंती पर, हमारे राष्ट्र के लिए उनके महान योगदान और कैसे उनके प्रयासों ने कई लोगों के जीवन को बदल दिया, इस पर मेरे कुछ विचार।

जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आई, अटल जी ने इस चुनाव में विचारधारा को खुले मन से चुन लिया। वे देश को यह समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। ऐसा दृष्टिकोण वास्तव में परिणाम दे सकता है।

आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण के साथ जिस प्रकार देश को एक नई दिशा और गति दी, उसका प्रभाव हमेशा अटल रहेगा। यह मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे उनका भरपूर सान्निध्य और आशीर्वाद मिला।

आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई।

लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरूरी
वे भारतीय लोकतंत्र को समझते थे। वे यह भी जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरूरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेलीं। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। राजग की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। वे अनेक दलों को साथ लाए और राजग को विकास, देश की प्रगति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया।

विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया। ये ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने गद्दार तक कह दिया था, उसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। उनमें सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति न चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुन लिया। राजनीतिक षडयंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा।

शुचिता की राजनीति पर चले
कई लोगों ने उनसे इस तरह की अनैतिक राजनीति को चुनौती देने के लिए कहा, लेकिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की। संविधान के मूल्य संरक्षण में भी उनके जैसा कोई नहीं था। डा श्यामा प्रसाद के निधन का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा था। ये आपातकाल के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘जनसंघ’ के जनता पार्टी में विलय पर भी सहमति जता दी।

दल से बड़ा देश, संगठन से बड़ा संविधान
मैं जानता हूं कि यह निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन वाजपेयी जी के लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह दल से बड़ा देश, संगठन से बड़ा संविधान था। हम सब जानते हैं, अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। भारत के विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने अपनी हिंदी से पूरे देश को खुद से जोड़ा। पहली बार किसी ने हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। उन्होंने भारत की विरासत को विश्व पटल पर रखा। उन्होंने सामान्य भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया। राजनीतिक जीवन में होने के बाद भी, ये साहित्य और अभिव्यक्ति से जुड़े रहे। ये एक ऐसे कवि और लेखक थे, जिनके शब्द हर विपरीत स्थिति में व्यक्ति को आशा और पथ-सृजन की प्रेरणा देते थे। ये हर उम्र के भारतीय के प्रिय थे। हर वर्ग के अपने थे। मेरे जैसे भारतीय जनता पार्टी के असंख्य कार्यकर्ताओं को उनसे सीखने का, उनके साथ काम करने का, उनसे संवाद करने का अवसर मिला।

अगर आज भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, तो इसका श्रेय उस अटल आधार को है, जिस पर यह दृढ़ संगठन खड़ा है। उन्होंने भाजपा की नींव तब रखी, जब कांग्रेस जैसी पार्टी का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनका नेतृत्व, उनकी राजनीतिक दक्षता, साहस और लोकतंत्र के प्रति उनके अगाध समर्पण ने भाजपा को भारत की लोकप्रिय पार्टी के रूप में प्रशस्त किया। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ, उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया। जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आई, उन्होंने विचारधारा को खुले मन से चुन लिया। वह देश को यह समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। ऐसा दृष्टिकोण वास्तव में परिणाम दे सकता है।

आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव-पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की सौवीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करने की प्रेरणा देते रहेंगे।

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