ब्लिट्ज ब्यूरो
अगर बांग्लोदश की अंतरिम सरकार और जनता ने अभी ही कट्टरपंथियों के खिलाफ नहीं चेती तो कहीं बहुत देर न हो जाए और ‘उम्माह’ में शामिल होने की जिद बांग्लादेश का अस्तित्व ही समाप्त न कर दे। इसलिए बांग्लादेश के चेतने का यही सही समय है।
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के सत्ता से बेदखल होने के बाद से ही भारत-बांग्लादेश संबंध खराब दौर से गुजर रहे हैं। बीते दिनों कट्टरपंथी नेता उस्मान हादी की मौत के बाद से दोनों देशों के संबंधों में तनाव और बढ़ गया है। हालात फिलहाल बद से बदतर ही होते जा रहे हैं। भारतीय मिशन के बाहर भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं। 12 दिसंबर को इंकलाब मंच के छात्र नेता उस्मान हादी को गोली मार दी गई थी। इसके बाद 18 दिसंबर को हादी का सिंगापुर में निधन हो गया था। इसके ठीक बाद चटगांव में एक हिंदू दीपू चंद्र दास की लिंचिंग की घटना ने तो पूरी दुनिया को चौंका दिया। यही नहीं, बांग्लादेश के नए राजनीतिक दल नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) के एक नेता मोहम्मद मुतालिब सिकदर को खुलना में गोली मार दी गई जिसे गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। हादी इंकलाब मंच का संयोजक था और पिछले साल जुलाई में शेख हसीना शासन के खिलाफ विद्रोह से जुड़ा एक प्रमुख व्यक्ति था। अधिकारियों ने फैसल करीम मसूद को इस हत्या का मुख्य संदिग्ध बताया है जो अपदस्थ आवामी लीग की स्टूडेंट लीग का एक पूर्व नेता है।
हादी की हत्या की शुरुआती जांच में आरोपियों के भारत भागने की झूठी रिपोर्ट्स चलीं जिससे बांग्लादेश में भारत विरोधी प्रदर्शन हुए। अधिकारियों ने मसूद की जानकारी देने वाले को 50 लाख टका इनाम देने की पेशकश भी की है। इसके अलावा एक बड़ी जानकारी यह भी सामने आ रही है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने में अहम भूमिका अदा कर रही है। इसके प्रमाण भी पाकिस्तानी नेताओं के बयानों में नजर आ रहे हैं।
बांग्लादेश में दीपू चंद्र दास की निर्मम हत्या एक बहुत बड़ा मुद्दा बन चुकी है। भारत ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों में भी लोगों ने नाराजगी का इजहार किया है और यह नाराजगी बांग्लादेश के वर्तमान कामचलाऊ हुक्मरान तक जरूर पहुंचनी चाहिए। बांग्लादेश के प्रमुख सलाहकार भी हिंदुओं की सुरक्षा के मसले को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं जबकि इसकी गूंज अमेरिका और कनाडा की संसद में भी सुनाई दी। गत वर्ष एक मजहबी जुनून के तहत बांग्लादेश में तख्तापलट को अंजाम दिया गया था और यही मजहबी कट्टरता अब भी दिखाई दे रही है जिसे किसी भी तरह नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। भारत के अनेक शहरों में बांग्लादेश का जो विरोध हो रहा है उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। बांग्लादेश में जब हालात बेकाबू होते दिख रहे हैं, तभी बांग्लादेशी दूतावास के पास प्रदर्शन की नौबत आई। अब सबसे बड़ी चिंता यह है कि कानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति के कारण फरवरी में होने वाले चुनावों में देरी हो सकती है। हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने आगामी राष्ट्रीय चुनावों में बाधा डालने के लिए एक सुनियोजित साजिश बताया है। हालांकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने अगले वर्ष 12 फरवरी को 13वें राष्ट्रीय चुनाव कराने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। प्रोफेसर यूनुस ने यह टिप्पणी दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिकी विशेष दूत सर्जियो गोर के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत के दौरान की। भले ही यूनुस यह आश्वस्त कर रहे हों पर उनका आचरण अनेक आशंकाओं से भरा है। उनके अंतरिम शासन काल में जिस तरह पाकिस्तान समर्थक अतिवादियों को प्रश्रय दिया जा रहा है, वह बांग्लादेश में बड़े खतरों की आशंकाएं ही बढ़ा रहा है। बांग्लादेश में बढ़ती अस्थिरता और हालिया हिंसक घटनाओं को लेकर गहरी चिंता जाहिर करता रहा है भारत। भारत ने इस संबंध में बांग्लादेश के दूत को दिल्ली में तलब भी किया और भारतीय मिशनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा है। दिल्ली की चिंता है कि हिंसा और बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति के कारण फरवरी में होने वाले चुनावों में देरी कराई जा सकती है। बांग्लादेश में कट्टरपंथी तत्वों के उदय और घरेलू राजनीति में उनका प्रभाव बढ़ने की आशंका भी और बलवती होती जा रही है। बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी हिंसा के लिए यूनुस की अंतरिम सरकार को जिम्मेदार ठहराया है एवं आरोप लगाया कि यूनुस सरकार कट्टरपंथियों को बढ़ावा दे रही है। यही नहीं, बांग्लादेश में जारी हिंसा और डर के माहौल के खिलाफ अब अल्पसंख्यक भी सड़कों पर उतर आए हैं। प्रदर्शनकारी कह रहे हैं कि यूनुस सरकार अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है और यह बात सही भी है। कट्टरपंथियों द्वारा मीडिया संस्थानों को भी निशाना बनाया जा रहा है। अगर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और जनता अभी ही कट्टरपंथियों के खिलाफ नहीं चेती तो कहीं बहुत देर न हो जाए और ‘उम्माह’ में शामिल होने की जिद बांग्लादेश का अस्तित्व ही समाप्त न कर दे। इसलिए बांग्लादेश के चेतने का यही सही समय है।































