ब्लिट्ज ब्यूरो
लंदन। वैज्ञानिकों ने ऐसी बैटरी बनाई है जो हजारों साल तक काम करती रहेगी। एक बार चार्ज करने पर इससे हजारों साल तक कई डिवाइसेज को चलाया जा सकेगा। ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी और यूके एटॉमिक एनर्जी अथॉरिटी के वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली कार्बन-14 डायमंड बैटरी बनाई है। उनके मुताबिक, यह ऊर्जा क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव है जिसका इस्तेमाल अलग-अलग वातावरणों में किया जा सकता है।
कैसे काम करती है ‘डायमंड बैटरी’?
रिसर्च टीम के मुताबिक, यह बैटरी बिजली पैदा करने के लिए कार्बन-14 के रेडियोएक्टिव क्षय का फायदा उठाती है। सी-14, कार्बन का एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप है जो रेडियोकार्बन डेटिंग में खूब इस्तेमाल होता है। कार्बन-14 से बनी बैटरी एक हीरे के खोल में रखी गई है जो इसे मजबूती और लचीलापन प्रदान करता है। इससे बैटरी सुरक्षित तरीके से रेडिएशन को पकड़कर ऊर्जा बना पाती है।
इस डायमंड बैटरी के काम करने का तरीका काफी हद तक सोलर पैनल जैसा है। बस यह प्रकाश को बिजली में बदलने के बजाय, रेडियो एक्टिव क्षय के चलते तेजी से चलते इलेक्ट्रॉनों से बिजली पैदा करती है। सी-14 बेहद छोटी रेंज का रेडिएशन पैदा करता है जो हीरे की केसिंग के चलते बाहर लीक नहीं होता। यह डायमंड केसिंग उस रेडिएशन को सोख लेती है, जिसके बाद बैटरी कम ऊर्जा वाली बिजली पैदा करती है।
कितने साल तक चलेगी यह बैटरी?
नई बैटरी को बनाने वाले वैज्ञानिक बेहद उत्साहित हैं। कार्बन-14 की अर्ध-आयु 5,700 साल होती है, जिसका मतलब है कि हजारों साल तक चलने के बाद भी इस बैटरी की आधी ऊर्जा बची रहेगी। एजेंसी की एक अधिकारी सारा क्लार्क ने कहा, ‘डायमंड बैटरियां लगातार माइक्रोवाट स्तर की बिजली प्रदान करने का एक सुरक्षित, टिकाऊ तरीका प्रदान करती हैं। यह एक उभरती हुई तकनीक है जो कार्बन-14 की छोटी मात्रा को सुरक्षित रूप से घेरने के लिए निर्मित हीरे का उपयोग करती है।
ये बैटरियां परमाणु कचरे के निस्तारण का एक रास्ता भी खोलती हैं। जिस सी-14 का इस्तेमाल इन बैटरियों में होता है, उसे ग्रेफाइट के टुकड़ों से निकाला जाता है जो न्यूक्लियर फिशन रिएक्टर्स के बाई प्रोडक्ट हैं।
कहां हो सकता है ऐसी बैटरियों का इस्तेमाल?
रिसर्चर्स के मुताबिक, इन डायमंड बैटरियों का इस्तेमाल वहां किया जा सकता है, जहां परंपरागत बिजली का इस्तेमाल व्यावहारिक नहीं है। हेल्थकेयर और स्पेस सेक्टर में ऐसी बैटरियां खूब काम आ सकती हैं। इनका इस्तेमाल पेसमेकर, हियरिंग एड और ऑकुलर डिवाइसेज में किया जा सकता है जिसके बाद मरीजों को कभी बैटरी बदलने की जरूरत नहीं होगी।