ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सीजेआई के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल के बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अपनी ड्यूटी के अंतिम कार्यदिवस पर भी कामकाज करते रहे और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े एक अहम मामले में सात न्यायाधीशों की संविधान की अगुवाई की। आइए जानते हैं न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के बड़े फैसले और उनका असर-
• इलेक्टोरल बॉन्ड पर लगाई रोक
इसी साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फरवरी में जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ ने राजनीतिक पार्टियों को चंदे के लिए इस्तेमाल किए जा रहे इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगा दी थी। इस बॉन्ड का इस्तेमाल साल 2018 से किया जा रहा था। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा था कि यह स्कीम असंवैधानिक है और इससे राजनीतिक दलों और चंदा देने वालों के बीच साठगांठ को बढ़ावा मिल सकता है। इस फैसले के कारण इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक तो लगी ही, राजनीतिक दलों को इसके जरिए मिले चंदे का ब्योरा भी जनता के सामने आ गया। लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा बना और चंदा पाने वालों पर दूसरे पार्टियों ने जमकर निशाना साधा। हालांकि, बॉन्ड पर रोक के साथ ही राजनीतिक दलों और डोनर्स के बीच की साठगांठ की आशंका खत्म हो गई।
• निजी संपत्तियां सरकारें नहीं ले सकतीं
इसी महीने की पांच तारीख (05 नवंबर 2024) को चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली नौ जजों की संविधान पीठ ने एक और अहम फैसला सुनाया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सरकार के पास सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहित कर उनका फिर से वितरण करने का अधिकार नहीं है। यह मामला 32 साल से लंबित था और संविधान पीठ ने 7:2 से अपना फैसला सुनाया।
इस फैसले का असर यह होगा कि निजी संपत्तियों को अधिग्रहित करने से पहले सरकारों को यह साबित करना होगा कि वे संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) में आती हैं यानी ऐसी संपत्तियां भौतिक संसाधन हैं और समुदाय की संपत्तियां होने की योग्यता पूरी करती हैं।
• यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट
पांच नवंबर 2024 को ही सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट-2004 को संवैधानिक घोषित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के कुछ प्रावधानों को छोड़कर उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम-2004 की संवैधानिक वैधता कायम रखी। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 22 मार्च को इस एक्ट को असंवैधानिक करार दिया था। साथ ही मदरसों में पढ़ने वाले सभी छात्रों का दाखिला सामान्य स्कूलों में करवाने का आदेश किया था। पांच अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का यूपी के हजारों मदरसों में पढ़ने वाले 17 लाख से अधिक छात्रों के भविष्य पर असर पड़ेगा। अब उनकी 12वीं के समकक्ष तक मदरसों में पढ़ाई अप्रभावित रहेगी।
अनुच्छेद 370 पर फैसला
दिसंबर 2023 में चीफ जस्टिस की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद करने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय आसान करने के लिए अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था थी। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से सरकार को जम्मू-कश्मीर में नई नीतियां लागू करने में मदद मिली और वहां चुनाव भी कराए गए।
• समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं
चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह पर पिछले साल अक्तूबर में अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर 2023 को दिए अपने फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने का काम संसद का है। हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दे दिया। साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए उचित कदम उठाने के आदेश दिए हैं। इस फैसले के बाद समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वालों को सरकार की शरण में जाना पड़ेगा।
• धारा 6ए को वैध माना
इसी साल अक्टूबर में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को वैध करार दिया है। इस धारा के तहत साल 1966 से 1971 के बीच बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से असम में आए लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को बरकरार रखा। इसका असर यह हुआ कि बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को कानूनी संरक्षण और नागरिकता का अधिकार मिल गया।
• जेलों में जातिगत भेदभाव पर रोक
भारतीय जेलों में जातिगत आधार पर कैदियों से होने वाले भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2024 को रोक लगा दी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में जेलों में जाति के आधार पर काम का बंटवारा करने और भेदभाव को गैर कानूनी माना। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 10 राज्यों के जेल मैनुअल में शामिल ऐसे नियमों को असंवैधानिक करार दिया और उनमें संशोधन करने का निर्देश दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद जेलों में साफ-सफ़ाई का काम सभी जातियों के कैदियों से कराना होगा।
• नीट-यूजी को रद करने से इनकार
जुलाई-2024 में अपने फैसले में पेपर लीक के आरोपों से घिरे नीट-यूजी 2024 को रद करने से सुप्रीम ने इनकार कर दिया था। मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए हुई परीक्षा को रद करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि पेपर लीक का विस्तार इतना अधिक नहीं था, जिससे परीक्षा की सुचिता प्रभावित हो। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा परीक्षा कराने का आदेश देने से इनकार कर दिया था। इससे लाखों छात्रों को दोबारा परीक्षा का बोझ नहीं उठाना पड़ा।
एमपी-एमएलए को भी जाना होगा जेल
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने मार्च में फैसला दिया कि वोट के बदले घूस लेने या विधायिका में भाषण देने के बदले रिश्वत लेने के आरोपित एमपी या एमएलए को जेल जाने से छूट नहीं दी जा सकती। सात जजों की संविधान पीठ ने नोट के बदले वोट मामले में सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया कि अगर सांसद-विधायक पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देते हैं तो उन पर मुकदमा चलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए कहा कि किसी को भी घूसखोरी की कोई छूट नहीं है।
• बाल विवाह पर दिया अहम फैसला
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बाल विवाह पर अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने बाल विवाह पर विशेष गाइडलाइन जारी कर कहा है कि बाल विवाह रोकथाम अधिनियम को किसी भी निजी कानून के तहत परंपरा से रोका नहीं जा सकता है। एक एनजीओ ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि राज्यों में बाल विवाह निषेध अधिनियम का सही से पालन नहीं हो रहा है।
कोर्ट के इस फैसले से परंपराओं के नाम पर चली आ रही बाल विवाह की प्रथा पर लगाम कस सकती है।