दीपक द्विवेदी
दिल्ली में प्रचंड जीत से ब्रांड मोदी का दबदबा अब और बढ़ चुका है। पीएम मोदी ने जिस प्रकार से दिल्ली के चुनाव में आक्रामक प्रचार किया, वह अपने आप में अनूठा था। उन्होंने आम आदमी पार्टी (आप) को ‘आपदा’ की संज्ञा दी जिसने यहां के मतदाताओं को राजधानी में सत्ता परिवर्तन करने के लिए भी सोचने पर मजबूर किया। कहीं न कहीं दिल्ली की जनता आप सरकार की वादाखिलाफी से खफा थी। 2024 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस को शायद यह विश्वास हो चला था कि वह अकेले ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती दे सकती है और देश भर में कहीं भी चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकती है। कांग्रेस के इसी आत्मविश्वास के कारण विपक्षी दलों ने मिलकर जो इंडिया गठबंधन बनाया था, उसमें दरारें आने लग गईं थीं। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और आम आदमी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों में अपने अस्तित्व को लेकर चिंता बढ़ गई थी जिससे वे कांग्रेस से दूरी बनाने लगीं थीं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के साथ ही विरोधी खेमे का एक बड़ा गढ़ ढह गया है। पार्टी ने न केवल जबरदस्त जीत दर्ज की, बल्कि प्रभावशाली तरीके से चुनाव में बढ़त बनाई और गत दस वर्षों से अधिक समय से सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर भी कर दिया। राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि इस नतीजे से कांग्रेस को भी तथाकथित रूप से राहत का अहसास हुआ होगा क्योंकि उसने हरियाणा का बदला आम आदमी पार्टी से ले लिया है।
दरअसल लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद यह चर्चा तेज हो गई थी कि पीएम मोदी की लोकप्रियता घट रही है। कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही थीं कि वे अब एक सशक्त विकल्प बन सकते हैं लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद बीजेपी की दिल्ली में भी जीत से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि मोदी की नेतृत्व क्षमता अब भी बरकरार है और उनका कोई ठोस विकल्प नहीं है। दिल्ली के चुनाव में इंडिया गठबंधन की फूट के कारण भी बीजेपी को बढ़त मिली। लोकसभा चुनावों में दूरी बनाए रखने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस बार बीजेपी का साथ दिया। इसके अलावा भी बीजेपी की जीत के कुछ अन्य प्रमुख कारण रहे जिन्होंने बीजेपी के सिर पर दिल्ली की सत्ता का ताज रख दिया। दिल्ली में बीजेपी का बूथ प्रबंधन, प्रधानमंत्री का संवाद, त्रिदेव, बूथ स्तरीय कार्यकर्ता सत्यापन, झुग्गी विस्तारक योजना, अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में उसके प्रयासों ने पार्टी की स्थिति को मजबूत किया। प्रधानमंत्री मोदी ने यहां चार रैलियां कीं और जिस तरह से दिल्ली को विश्व स्तरीय बनाने और इसके लिए खुद दिल्ली को समय देने का विश्वास मतदाताओं के बीच जगाया, वह भी गेम चेंजर बना। पीएम मोदी ने यहां की जनता से एक बार सेवा का मौका देने की अपील की जिसका प्रभाव जीत के रूप में देखा जा सकता है। मोदी झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों को घर देने का विश्वास भी जगाने में सफल रहे।
इसके अतिरिक्त पहली बार पीएम मोदी ने दिल्ली को इतना समय दिया। इसके साथ ही बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं से संवाद और छात्रों से संवाद भी उन्होंने कायम किया। मोदी ने कहा कि बीजेपी का संकल्प पत्र मात्र घोषणा पत्र नहीं है। यह उनकी गारंटी है और वह जो गारंटी देते हैं, उसे पूरा भी करते हैं। उन्होंने महिलाओं, युवाओं, ऑटो वालों, कर्मचारियों, गिग वर्कर के लिए काम करने का जो आश्वासन दिया; उसका असर भी मतदाताओं पर पड़ा, इसमें भी कोई दोराय नहीं। यमुना में जहर के नाम पर केजरीवाल ने हरियाणा पर जो आरोप मढ़ा; उस पर भी भाजपा ने आक्रामक तरह से पलटवार किया।
केंद्रीय बजट में मध्य वर्ग को आयकर में 12 लाख की छूट और आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा से भी बीजेपी को चुनाव में अपने पैर जमाने में अवश्य मदद मिली; इस बात को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा मध्य वर्ग को साधने के साथ ही गरीबों को अपने साथ जोड़ने और महिलाओं को आप से अलग करने में सफल रही। बीजेपी को युवाओं का भी साथ मिला तथा व्यापारी भी भाजपा के साथ खड़े दिखाई दिए। इसके अलावा भाजपा पूर्वांचल के लोगों को भी भावनात्मक रूप से जोड़ने में सफल रही। बीजेपी इस बार मुस्लिमों की भावनाओं को उभारने वाले बयानों से भी बची। केजरीवाल और आप पर शराब नीति में एक पर एक बोतल फ्री और शीश महल का मुद्दा भी गरमाया रहा। कुल मिला कर तमाम मुद्दों और बीजेपी की मेहनत ने दिल्ली में केजरीवाल और उनकी पार्टी आप के खिलाफ हवा बना दी और 27 साल बाद फिर बीजेपी सरकार बना रही है।