ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आर्थित तौर पर कमजोर दलित स्टूडेंट को आईआईटी में दाखिला देने का निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने आईआईटी धनबाद में बीटेक के इलेक्टि्रकल इंजीनियरिंग कोर्स में स्टूडेंट को दाखिला देने का निर्देश दिया। यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के अतुल कुमार (18) के पैरेंट्स 24 जून से पहले 17,500 रुपये जमा करने में विफल रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम इस बात की इजाजत नहीं दे सकते कि एक युवा टैलेंट को पैसों की वजह से बाहर कर दिया जाए।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ता जैसे प्रतिभावान छात्र वंचित समूह से आते हैं, उन्हें दाखिला देने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। लॉग-इन डिटेल्स से पता चलता है कि छात्र ने पोर्टल पर लॉग-इन करने में बहुत मेहनत की थी… उनके पास फीस भरने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में दाखिला न मिलने की कोई ठोस वजह नहीं है। हमारा मानना है कि प्रतिभावान छात्र को निराश नहीं किया जाना चाहिए। हम निर्देश देते हैं कि आईआईटी धनबाद में दाखिला दिया जाए।’ कोर्ट ने कहा, ‘याचिकाकर्ता एक होनहार छात्र है और सिर्फ 17500 रुपये उसे रोक रहे थे। उसे (अतुल) उसी बैच में दाखिला दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता के लिए एक अतिरिक्त सीट बनाई जाए। इस प्रक्रिया में
किसी भी मौजूदा छात्र को परेशान नहीं किया जाना चाहिए।’ सुनवाई खत्म होने पर सीजेआई ने कहा, ‘शुभकामनाएं, अच्छा करो।’
आप इतना विरोध क्यों कर रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट में आईआईटी सीट एलोकेशन अथॉरिटी ने याचिका का विरोध किया और कहा कि जिस दिन मॉक इंटरव्यू था उस दिन याचिकाकर्ता को फीस पेमेंट के लिए बता दिया गया था। यह लास्ट डेट से काफी पहले की तारीख थी। कोर्ट ने इस पर सवाल किया, ‘आप इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? कुछ हो सकता है तो देखें।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता 17,500 रुपये का भुगतान करेगा। स्टूडेंट को उसी बैच में दाखिला दिया जाएगा और दूसरे बेनिफिट जैसे हॉस्टल आदि भी दिए जाएंगे। इस दौरान कोर्ट के सामने छात्र वकील ने बताया कि कई सीनियर वकीलों ने फीस स्पॉन्सर करने का ऑफर दिया है।
सीजेआई के आदेश के बाद मेरा जीवन अब पटरी पर आ गया
अतुल ने कहा, ‘मेरा जीवन अब पटरी पर आ गया है। सीजेआई ने बहुत अच्छा किया, मेरा भविष्य अब उज्जवल है।’
कौन है याचिकाकर्ता छात्र
मुजफ्फरनगर जिले के रहने वाले अतुल ने अपने दूसरे और अंतिम प्रयास में जेईई एडवांस पास किया और आईआईटी में दाखिले की दौड़ तक पहुंचे। तय वक्त तक फीस के 17,500 रुपये का इंतजाम नहीं कर सके और जब तक रुपये मिले, फीस जमा करने का वक्त खत्म हो गया था। उन्होंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड लीगल सर्विस अथॉरिटी और मद्रास हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था, लेकिन राहत नहीं मिली। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। अतुल ने शीर्ष अदालत को बताया कि उनके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। यूपी में मुजफ्फरनगर के टिटोरा गांव के रहने वाले हैं और आर्थिक रूप से काफी कमजोर है।































