ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह जाति प्रमाणपत्रों में कुछ शब्दों के इस्तेमाल से बचने के लिए अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लोगों के अधिकारों को बरकरार रखते हुए नामकरण में बदलाव पर विचार करे। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई करते हुए इस बात पर सहमति जताई कि इस मुद्दे पर संसद को निर्णय लेना है। नामकरण में बदलाव से लोगों को उनकी जाति के नाम से पहचाने जाने से रोकने में काफी मदद मिलेगी।
पीठ ने कहा, हमारा देश 1950 से 2025 तक एक लंबी यात्रा तय कर चुका है। अब, 2025 में इन शब्दों और अभिव्यक्तियों का उपयोग करना उचित नहीं है। यह पूरी तरह से विधायी मुद्दा है और हमने केंद्र को इस मुद्दे के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए नोटिस जारी किया है। आप इन व्यक्तियों के चरित्र को बदले बिना नामकरण में बदलाव कर सकते हैं। हिंदी में बहुत समृद्ध शब्दावली है। आप इन शब्दों के अलावा कुछ भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
केंद्र की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केके नटराजन ने कहा कि यह नीतिगत मामला है और कुछ शब्दों को हटाने से एससी और एसटी वर्ग के लोगों के अधिकारियों और उन्हें मिल रही सुविधाओं पर असर पड़ सकता है। इस पर पीठ ने कहा कि कोई भी शब्दों को हटाना नहीं चाहता, सिर्फ उनके नाम में बदलाव चाहता है और कोर्ट चाहता है कि संसद इस मुद्दे पर संज्ञान ले। इस मामले में अब छह सप्ताह बाद सुनवाई होगी।