ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्कूलों में मासिक धर्म स्वच्छता की जमीनी स्थिति पर गौर करने को कहा है। शीर्ष अदालत में भी नीति लागू करने से पहले इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से उजागर किए गए पहलुओं को स्पष्ट करने का सुझाव दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि यह याचिकाकर्ता के उठाए पहलुओं पर गौर करें और अगली सुनवाई तक स्थिति स्पष्ट करें। पीठ ने अगली सुनवाई 3 दिसंबर तय कार दी।
शीर्ष अदालत को बताया गया कि केंद्र मामला सरकार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए मासिक धर्म सवच्छता के संबंध में राष्ट्रीय नीति तैयार की है। नीति में दृष्टिकोण, आपत्तियों, लक्ष्य, नीति पटकों, वर्तमान कार्यक्रमों और अंत में हितधारकों के नियमों और जिम्मेदारियों के बारे में बात की गई है। एएसबी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि नीति के उचित और प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
एएसबी ने शीर्ष अदालत को बताया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के साथ समन्वय करके उनको संबंधित कार्ययोजना तैयार करेगा जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि मासिक धर्म स्वच्छता नीति के सभी पहलुओं को व्यापक 2 से तैयार हो। सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों की छात्राओं के लिए नीति को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके। वहीं याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि केंद्र की तैयार की गई नीति किसी भी तरह से याचिका में मांगी गई राहतों का ख्याल नहीं रखते है। इसके अलावा, नीति दस्तावेजों में जिन आंकड़ों पर भरोसा’ किया गया है, उनमें स्पष्ट विसंगतियां हैं।
नीति में गलत आंकड़े : याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता जय ठाकुर ने अदालत में यह याचिका दायर की है कि भारत सरकार द्वारा बनाई गई नीति स्कूल जाने वाली लड़कियों के मासिक धर्म स्वच्छता के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि नीति में कई आंकड़े गलत हैं और ये आंकड़े इस समस्या का सही समाधान करने में बाधा डाल सकते




























