ब्लिट्ज ब्यूरो
एडिनबर्ग। वायु प्रदूषण फेफड़ों और दूसरे अंगों के साथ हमारी मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर डाल रहा है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से मानसिक रोगों का खतरा बढ़ रहा है। बीएमजे ओपन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में इस दावे की दोबारा पुष्टि हुई है। इससे पहले बीते अप्रैल में दिल्ली सरकार की एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट में भी यह दावा किया गया था। स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज में दो लाख लोगों पर किए गए शोध में पता चला कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड मानसिक विकारों के लिए जिम्मेदार है।
शोधार्थी डॉ. मैरी अबेद अल अहद ने कहा, यह पहला शोध है, जिसमें वायु प्रदूषण को मानसिक रोगों के लिए भी जिम्मेदार पाया गया। बीते अप्रैल में दिल्ली सरकार ने एनजीटी को रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें बताया था कि वायु प्रदूषण के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। इसमें कहा गया था कि वायु प्रदूषण से उदासी, छात्रों में पढ़ाई संबंधी परेशानियां और जीवन की चुनौतियों से निपटने की क्षमता कम हो रही है।
15 साल चला शोध
वर्ष 2002 से 2017 तक पीएम-10 और पीएम 2.5 के प्रभाव पर शोध किया गया। 2,02,237 लोगों के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी डाटा के शोध में पाया गया कि अधिकांश लोग व्यवहार संबंधी समस्या के लिए अस्पताल तब गए जब इन प्रदूषकों की मात्रा बढ़ती थी। शोधार्थियों ने पाया, सभी प्रदूषकों ने मानसिक बीमारियों का जोखिम बढ़ाया। मगर सबसे अधिक घातक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड है। इससे मस्तिष्क में रक्त संचार सबसे अधिक प्रभावित होता है। रक्त प्रवाह कम होने से याददाश्त कमजोर होने के साथ ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत आ सकती है। दुनिया में दस से 19 वर्ष का हर सातवां बच्चा मानसिक समस्या से जूझ रहा है।
भारत में स्थिति
– 80 फीसदी लोग मदद मांगने से हिचकिचाते हैं
– 11 करोड़ मानसिक समस्याओं से जूझ रहे
– 01 लाख लोग हर साल आत्महत्या कर लेते हैं