ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में अगले आदेश तक देश की अदालतों को धार्मिक स्थलों, विशेषकर मस्जिदों और दरगाहों पर दावा करने संबंधी नए मुकदमों पर विचार करने और लंबित मामलों में कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने पर रोक लगा दी है। देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, क्योंकि मामला इस अदालत में विचाराधीन है, इसलिए हम यह उचित समझते हैं कि इस अदालत के अगले आदेश तक कोई नया मुकदमा दर्ज न किया जाए।
सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ के इस निर्देश से विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही पर रोक लग गई है। इन मुकदमों में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद समेत 10 मस्जिदों की मूल धार्मिक प्रकृति का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण का अनुरोध किया गया है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने क्या कहा था
बड़ी बात यह है कि जस्टिस खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा ढाई साल पहले इस मामले में दी गई अनुमति को पलटते हुए उस पर रोक लगा दी है। 21 मई, 2022 को तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने यही प्रश्न आया था, तब एक मौखिक टिप्पणी में चंद्रचूड़ ने माना था ऐसे विवादित पूजा स्थलों का सर्वेक्षण 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन नहीं करता है। जस्टिस चंद्रचूड़ के इस मौखिक टिप्पणी ने तब प्रभावी रूप से वाराणसी और मथुरा से लेकर संभल और अजमेर तक 10 से अधिक मामलों में दीवानी मुकदमों के लिए कानूनी रास्ता तैयार कर दिया था।
जस्टिस संजीव खन्ना का क्या ऑब्जर्वेशन
तब पीठ ने ये भी कहा था कि प्रक्रियात्मक साधन के रूप में किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाना अधिनियम की धारा 3 और 4 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हो सकता है। कोर्ट ने तब कहा था कि ये ऐसे मामले हैं जिन पर हम अपने आदेश में कोई राय नहीं देंगे। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष फिर से यही अनिवार्य प्रश्न आया और तब भारत के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने अगले आदेश तक ऐसे मामलों में अदालतों को प्रभावी आदेश पारित करने से रोक दिया। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली विशेष पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी। उपाध्याय ने याचिका में उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी है। संबंधित कानून के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था। यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को हालांकि इसके दायरे से बाहर रखा गया था।
कई प्रतिवाद याचिकाएं हैं, जिनमें सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और उन मस्जिदों की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने के लिए 1991 के कानून के सख्त कार्यान्वयन का अनुरोध किया गया है, जिन्हें हिंदुओं ने इस आधार पर पुनः वापस किए जाने का अनुरोध किया है कि आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले ये मंदिर थे। पीठ ने कहा, “हम 1991 के अधिनियम की शक्तियों, स्वरूप और दायरे की पड़ताल कर रहे हैं। पीठ ने अन्य सभी अदालतों से इस मामले में दूर रहने को कहा। इसने कहा कि उसके अगले आदेश तक कोई नया वाद दायर या पंजीकृत नहीं किया जाएगा और लंबित मामलों में, अदालतें उसके अगले आदेश तक कोई प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश” पारित नहीं करेंगी।