दीपक द्विवेदी
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती और संतुलन का जो बेहतरीन तालमेल इस फैसले में दिखाया है, यह देश में संवैधानिक मूल्यों को मजबूती देने वाली एक मिसाल के रूप में याद रखा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में कुछ राज्यों में बुलडोजर-कार्रवाई की सीमा तय करना निश्चित रूप से एक अत्यंत दूरदर्शी फैसला माना जाएगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सरकारें न्यायपालिका की भूमिका नहीं निभाएं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा है कि किसी संपत्ति को सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता क्योंकि उस संपत्ति का मुखिया अथवा संबद्ध व्यक्ति कथित रूप से किसी मामले में आरोपी है। कोर्ट ने बिंदुवार दिशा-निर्देश जारी करके ऐसे मामलों की सांविधानिक स्थिति भी साफ की है। देश के अलग-अलग हिस्सों में शुरू हुए कथित ‘बुलडोजर न्याय’ के संबंध में दिए गए इस फैसले को निश्चित रूप से बेहद सख्त फैसलों की श्रेणी में भी रखा जाएगा। इस नए चलन में सुप्रीम कोर्ट को कुछ खतरे भी नजर आए क्योंकि इसका चलन तेजी से बढ़ता जा रहा था।
वैसे देश के कई राज्यों में इसे अपराधी तत्वों पर अंकुश लगाने का एक कारगर हथियार भी माना जाने लगा था जबकि इसे गलत और मान्य कानूनी प्रक्रिया के सिद्धांतों के खिलाफ बताने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं थी। बावजूद इसके आम लोगों के एक बड़े तबके में इसके लिए समर्थन भी तेजी से बढ़ते देखा जा रहा था। प्रशासनिक महकमों में भी इसके पक्ष में अनेक प्रकार की दलीलें दी जा रही थीं। इस पर फैसला करते समय सुप्रीम कोर्ट को अनेक पहलुओं से भी जूझना पड़ा। उदाहरणार्थ कानून का पहलू तो इससे जुड़ा था ही क्योंकि संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए उन अधिकारों का भी प्रश्न था जो उसे राज्य की मनमानी कार्रवाइयों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसके साथ ही न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता और लोकसेवकों के प्रति आम जनों के विश्वास का मुद्दा भी इससे संबद्ध था। कोर्ट ने फैसले की शुरुआत प्रसिद्ध कवि प्रदीप की पंक्तियों से की, अपना घर हो अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है। इंसान के दिल की ये चाहत है कि एक घर का सपना कभी न छूटे। कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि एक व्यक्ति के अरोपित होने पर पूरे परिवार को सामूहिक दंड नहीं दिया जा सकता। महिलाओं, बच्चों और बुर्जुगों को रातोंरात सड़क पर देखना सुखद नहीं होगा। अगर अथाॅरिटीज थोड़ा समय रुक जाएंगी तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इन तमाम पहलुओं का ध्यान में रखते हुए न केवल बुलडोजर के जरिए न्याय करने की इस प्रवृत्ति को खारिज किया बल्कि उन आधारों को भी स्पष्ट किया जिनसे इस बात का भी पता चलता है कि प्रशासन ने कब-कब अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया। निर्णय में कहा गया है कि जब किसी खास निर्माण को अचानक निशाना बनाया जाता है और उस तरह के अन्य निर्माणों को छुआ भी नहीं जाता, तब ऐसा प्रतीत होता है कि कार्रवाई का असल मकसद किसी आरोपी को बिना मुकदमा चलाए सजा देना है। इस फैसले की एक विशेष बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने न केवल इस तरह की कार्रवाई को गलत बताया बल्कि उसने यहां तक कहा कि अगर किसी व्यक्ति का घर इस तरह से तोड़ा जाता है तो उसे फिर से बनाने का खर्च संबंधित अफसरों के वेतन से काटा जाएगा। दूसरी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि उसके आदेश का अर्थ यह नहीं है कि अवैध निर्माण और अतिक्रमण करने वालों को एक प्रकार से कानूनी संरक्षण मिल गया है।
‘बुलडोजर न्याय’ पर 95 पृष्ठ के अपने अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि इस प्रकार की कार्रवाई को लेकर जो भी दिशा-निर्देश दिए गए हैं, वे किसी सार्वजनिक स्थान पर किए गए अनधिकृत निर्माण पर लागू नहीं होंगे। सर्वोच्च अदालत के अनुसार सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन या किसी नदी के आसपास किए जाने बाले अतिक्रमण और अवैध निर्माण के विरुद्ध विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही अदालत ने यह भी साफ तौर पर कहा कि जिन मामलों में किसी अदालत की और से निर्माण गिराने का आदेश दिया जा चुका है, उनमें भी इस फैसले का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून न्यायसंगत एवं निष्पक्ष होना चाहिए तथा उसे समाज के सभी सदस्यों के मानवाधिकारों व सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में दिए गए तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत और अभियुक्त के कानूनी व संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या करते हुए नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत पर भी जोर दिया।
अगर कार्यपालिका न्यायाधीश की तरह काम करती है और अपराध में अभियुक्त या दोषी होने के आधार पर नागरिकों के घर ध्वस्त करके दंडित करती है तो यह पृथक्क रण के सिद्धांत का उल्लंघन है। कार्यपालिका किसी को भी दोषी नहीं ठहरा सकती क्योंकि यह काम न्यायपालिका का है। किसी को भी तय कानूनी प्रक्रिया के बिना दंडित नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती और संतुलन का जो बेहतरीन तालमेल इस फैसले में दिखाया है, यह देश में संवैधानिक मूल्यों को मजबूती देने वाली एक मिसाल के रूप में याद रखा जाएगा।