विनोद शील
नई दिल्ली। गुरुवार 18 दिसंबर को लोकसभा में भारी विरोध और हंगामे के बीच विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल यानी वीबी-जी-राम-जी बिल ध्वनिमत से पास हो गया। वीबी-जी-राम-जी कानून कई मायने में मनरेगा से बेहतर, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा। इससे गांवों की अर्थव्यवस्था को पंख लगेंगे। कानून ग्रामीण अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी एवं विकसित भारत की नींव को भी मजबूत करेगा।
जानकारों की मानें तो वीबी-जी-राम-जी कानून मजबूत और टिकाऊ ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण के मकसद से लाया गया है। इसके प्रावधान न सिर्फ ग्रामीण मजदूरों, बल्कि किसानों के हित भी सुनिश्चित करेंगे। सरकार के मुताबिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ यह कानून विकसित भारत की नींव को और मजबूत करेगा। नई योजना के तहत निर्मित परिसंपत्तियां विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना संग्रह (नेशनल रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक) में दर्ज की जाएंगी। इससे एकीकृत एवं समन्वित रूप से राष्ट्रीय विकास की रणनीतियां बनाने में मदद मिलेगी। ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्यों की सालाना 125 दिनों की अकुशल रोजगार की कानूनी गारंटी देने वाला यह कानून 20 वर्ष पुरानी योजना मनरेगा की जगह लेगा।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पहले से चली आ रही एक योजना में बदलावों की जरूरत क्यों पड़ी। यह किस तरह उससे अलग और बेहतर है और क्या इससे वाकई ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलेगी।
– कृषि कार्यों के समय मजदूरों की नहीं होगी कमी
– राज्य फसलों की बुआई और कटाई के दौरान कुल 60 दिनों की अवधि अधिसूचित कर सकते हैं जब सार्वजनिक कार्य नहीं होंगे। इससे कृषि कार्यों के समय मजदूरों की कमी नहीं होगी।
– फसल सीजन में सार्वजनिक कार्य बंद होने से मजदूरी दर नियंत्रित रहेगी और खाद्य उत्पादन की लागत नहीं बढ़ेगी।
– जल संबंधी कार्यों को प्राथमिकता से सिंचाई सुविधाएं बेहतर होंगी, भूजल स्तर बढ़ेगा। बहु-फसली खेती की संभावना मजबूत होगी।
– मुख्य एवं आजीविका अवसंरचना से किसान अपनी उपज सुरक्षित रूप से भंडारित कर सकेंगे, फसलों का नुकसान कम होगा और बाजार तक उनकी पहुंच बढ़ेगी।
– बाढ़ के पानी की निकासी, जल संचयन व मिट्टी संरक्षण के कार्य फसलों की रक्षा करेंगे। प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान को कम करेंगे।
मानक वित्तपोषण की ओर कदम बढ़ाए
– मानक वित्तपोषण भारत सरकार को अधिकांश योजनाओं में अपनाई जाने वाली बजट प्रणाली से जोड़ता है और इससे रोजगार की गारंटी में भी कोई कमी नहीं आएगी।
– इस बदलाव से योजना अधिक अनुशासित, पारदर्शी और प्रभावी बनेगी, जहां संसाधनों का उपयोग तार्किक ढंग से होगा।
– मांग आधारित मॉडल अप्रत्याशित आवंटन और बजट में विसंगति पैदा करता है। इसके विपरीत, मानक वित्तपोषण वस्तुनिष्ठ मानकों पर आधारित होता है, इससे पूर्वानुमान योग्य व तार्किक योजना बना सकते हैं।
– मानक वित्त पोषण में केंद्र व राज्य जिम्मेदारी साझा करेंगे। यदि तय समय में काम नहीं दिया गया तो बेरोजगारी भत्ता देना होगा। गारंटीशुदा रोजगार का अधिकार कानूनी रूप से पूरी तरह सुरक्षित और संरक्षित रहेगा।
पहले सुधारने के प्रयास नहीं हुए
– मनरेगा में कई बड़े सुधार हुए, पर गहरी संरचनात्मक समस्याओं को दूर नहीं किया जा सका।
वित्त वर्ष 2013-14 की तुलना में वर्ष 2025-26 के दौरान मनरेगा की मुख्य उपलब्धियांः-
– महिलाओं की भागीदारी 48% से बढ़कर 56.74% हुई।
– आधार-सीडेड सक्रिय मजदूरों की संख्या 76 लाख से बढ़कर 12.11 करोड़ पर पहुंची
– जियो-टैग संपत्तियां शून्य से बढ़कर 6.44 करोड़ हुई।
– ई-भुगतान 37% से बढ़कर 99.99% हुआ,
– व्यक्तिगत परिसंपत्तियां 17.6% से बढ़कर 62.96% हुई। इस प्रगति के बावजूद दुरुपयोग की घटनाएं जारी रहीं। डिजिटल उपस्थिति को चकमा दिया जाता रहा। इसलिए, आधुनिक और मजबूत व्यवस्था की जरूरत थी।
पारदर्शिता, सुरक्षा की क्या व्यवस्था
– गड़बड़ी रोकने के लिए एआई आर्टिशियल इंटेलिजेस) का उपयोग।
– निगरानी के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर कमेटियां।
– जीपीएस और मोबाइल से काम की होगी निगरानी।
– रियल टाइम में जानकारी दिखाने वाले एआईएस डैशबोर्ड।
– हर हफ्ते काम और खर्च का सार्वजनिक खुलासा।
– हर ग्राम पंचायत में साल में दो बार सख्त सोशल ऑडिट।
क्या राज्यों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा?
ऐसा नहीं है क्योंकि यह व्यवस्था संतुलित है और राज्यों की क्षमता को ध्यान में रखकर बनाई गई है। बेहतर निगरानी से लंबे समय में भ्रष्टाचार से होने वाला नुकसान कम होगा।
– 60% खर्च केंद्र और 40% राज्य वहन करेगा। बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेश के लिए पूरा खर्च केंद्र देगा।
– पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में 10% केंद्र और 10% राज्य वहन करेंगे। तय बजट मिलने से राज्यों को योजना बनाना आसान होगा।
सुधार के बाद भी बरकरार थीं व्यवस्थागत खामियां
– मनरेगा के कामकाज को बेहतर बनाने के कई प्रयास किए गए पर व्यवस्थागत खामियां बरकरार रहीं।
– पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में जांच से पता चला कि कई कार्य कागजों पर ही थे, नियमों का उल्लंघन हुआ और धन का दुरुपयोग किया गया जिसके कारण फंडिंग रोकी गई।
– वित्तीय वर्ष 2025-26 में 23 राज्यों में निगरानी से सामने आया कि कई कार्य या तो मौजूद नहीं थे या खर्च के अनुपात में नहीं थे जहां मजदूरी आधारित कार्य होने चाहिए थे वहां मशीनों का इस्तेमाल हुआ और एनएमआरएमएस उपस्थिति को बड़े पैमाने पर चकमा दिया गया।
– 2024-25 में विभिन्न राज्यों में कुल 193.67 करोड़ का दुरुपयोग पाया गया। महामारी के बाद के दौर में केवल 7.61% घरों ने ही 100 दिनों का कार्य पूरा किया।
क्या नया कानून होगा मनरेगा से बेहतर
– यह पुरानी योजना की ढांचागत कमजोरियों को दूर करेगा और रोजगार, पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करेगा। इससे गांवों में न केवल रोजगार पैदा होंगे बल्कि हर कार्य को राष्ट्रीय विकास के ढांचे में जोड़कर ग्रामीण भारत को समृद्ध व चुनौतियों के प्रति अधिक लचीला बनाया जा सकेगा।
– गारंटीशुदा दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 किए जाने से ग्रामीण परिवारों को अधिक आय सुरक्षा मिलेगी।
– मनरेगा कार्य कई श्रेणियों में बिखरे थे और कोई मजबूत राष्ट्रीय रणनीति नहीं थी।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था और विकसित भारत की नींव होगी और मजबूत
– पारदर्शिता, जवाबदेही सुनिश्चित करेगा कानून
– गांवों की अर्थव्यवस्था को लगेंगे पंख
– कई मायनों में पुराने से बेहतर है नया कानून
क्या नया कानून होगा मनरेगा से बेहतर
– नए कानून में जल सुरक्षा, मूल ग्रामीण अवसंरचना, आजीविका से जुड़े अवसंरचना निर्माण तथा जलवायु अनुकूलन को समर्थन देने वाली टिकाऊ संपत्तियां निर्मित कराई जाएंगी।
– विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं को अनिवार्य किया गया है जिन्हें पंचायतें खुद तैयार करेंगी। इन्हें पीएम गति-शक्ति से जोड़ा जाएगा।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कैसे पहुंचेगा लाभ ?
– उत्पादक संपत्तियों के निर्माण, अधिक आय बेहतर लचीलेपन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पंख लगेंगे। यह तात्कालिक रोजगार देने के साथ ग्रामीण भारत को लंबे समय तक समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने की मजबूत नींव रखेगा। जल संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है। मिशन अमृत सरोवर ने पहले ही 68 हजार से अधिक जलाशयों का निर्माण-जीर्णोद्धार किया है।
– सड़कें, कनेक्टिविटी और आधारभूत ढांचे से गांवों में बाजार की पहुंच बढ़ेगी। ग्रामीण व्यापार गतिविधि तेज होगी।
– भंडारण, बाजार और उत्पादन संबंधी संपत्तियां आय के विविधीकरण में मदद करेंगी। घरेलू आय बढ़ने से मांग और खपत को बल मिलेगा।
– अवसरों के बढ़ने और टिकाऊ संपत्तियों के निर्माण से शहरों को और पलायन का दबाव कम होगा।
मनरेगा को बदलने की जरूरत क्यों पड़ी
– मनरेगा 2005 के भारत के लिए बनाई गई थी लेकिन ग्रामीण भारत अब पूरी तरह बदल चुका है। ग्राम विकास के लिए तेज व समावेशी रोजगार ढांचे की तैयारी जरूरी।
– गरीबी में भारी गिरावट आई है, जो वर्ष 2011-12 के 25.7% से वर्ष 2023-24 में मात्र 4.86% रह गई। यह गिरावट एमपीसीई व नाबार्ड के रेक्स सर्वे में दर्ज बढ़ती खपत, आय तथा वित्तीय पहुंच से संभव हुई है।
– मजबूत सामाजिक सुरक्षा, बेहतर कनेक्टिविटी, गहन डिजिटल पहुंच और विविध ग्रामीण आजीविका के साथ पुराना ढांचा अब आज की ग्रामीण अर्थव्यवस्था से मेल नहीं खाता। संरचनात्मक बदलाव के चलते मनरेगा का अनियंत्रित और खुला मॉडल अप्रासंगिक हो चुका था।































