ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। विटामिन डी को सनशाइन विटामिन भी कहा जाता है। यह हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी है। यह हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। सेल्स ग्रोथ व ब्लड प्रेशर रेगुलेशन में भी ये मदद करता है।
विटामिन डी की कमी होने पर बॉडी कैल्शियम को एब्जॉर्ब नहीं कर पाती , जिससे हड्डियां कमजोर होने के साथ कई अन्य समस्याएं पैदा होने लगती हैं लेकिन क्या आपको पता है कि विटामिन डी की कमी से कुछ तरह का कैंसर भी हो सकता है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक भारत में 70% से ज्यादा लोग विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि हर 4 में से 3 लोगों के शरीर में विटामिन डी की कमी है। इसलिए कैंसर का जोखिम भी ज्यादा हो सकता है।
विटामिन डी की कमी और कैंसर
विटामिन डी सिर्फ हड्डियों के लिए नहीं, बल्कि पूरे शरीर के लिए जरूरी है। यह कोशिकाओं के विकास को नियंत्रित करता है, इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और इन्फ्लेमेशन कम करता है। शरीर में इसकी कमी होने पर इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
विटामिन डी की कमी से इन कैंसर का जोखिम-
कोलोरेक्टल कैंसर- नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में सितंबर, 2022 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, विटामिन डी कोशिकाओं की असामान्य ग्रोथ को रोकता है। इसकी कमी से कोलोरेक्टल यानी आंतों के कैंसर यानी का खतरा बढ़ सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर- नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में जनवरी, 2012 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, महिलाओं में कम विटामिन डी की कमी से ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है।
फेफड़ों का कैंसर- हेल्थ जर्नल मेडिसिन में नवंबर, 2017 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, विटमिन डी की कमी से इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और कोशिकाओं में इंफ्लेमेशन बढ़ जाता है। इसके चलते फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
प्रोस्टेट कैंसर : नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में अक्टूबर, 2018 में पब्लिश स्टडी के मुताबिक, पुरुषों में बहुत ज्यादा या बहुत कम विटामिन डी लेवल होने पर प्रोस्टेट कैंसर हो सकता है।
पैंक्रियाटिक कैंसर : जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन एंड मेटाबॉलिज्म में पब्लिश स्टडी के मुताबिक, विटामिन डी बहुत कम हो गया है तो पैंक्रियाटिक कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
क्यों हो रही कमी?
डॉ. समित पुरोहित कहते हैं कि आजकल लोगों में विटामिन डी की कमी तेजी से बढ़ने का मुख्य कारण ये है कि लोग सूरज की रोशनी में बहुत कम समय बिताते हैं। लोग ज्यादातर समय घर या ऑफिस के अंदर रहते हैं, जिससे शरीर को प्राकृतिक रूप से विटामिन डी बनाने के लिए जरूरी यूवीबी किरणें नहीं मिल पातीं।
सनलाइट का एक्सपोजर न मिलना
अगर कोई ज्यादातर समय घर या ऑफिस में रहता है और धूप में नहीं जा पाता है तो शरीर को विटामिन डी बनाने का मौका नहीं मिलता है। ऐसे ज्यादातर लोगों के शरीर में विटामिन डी की कमी हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर को विटामिन डी बनाने के लिए यूवीबी किरणों की जरूरत होती है, जो सूरज से आती हैं।
वायु प्रदूषण
अगर कोई बहुत प्रदूषित शहर या इलाके में रहता है तो यह भी विटामिन डी की कमी का कारण हो सकता है। गाड़ियों और फैक्टि्रयों से निकलने वाला धुआं हवा में मौजूद कार्बन कणों को बढ़ा देता है। ये कण सूरज की यूवीबी किरणों को सोख लेते हैं, जिससे विटामिन डी बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
सनस्क्रीन का अधिक इस्तेमाल
सनस्क्रीन लगाने से सूरज की हानिकारक किरणों से बचाव होता है, लेकिन यह यूवीबी किरणों को भी रोक देती है। ये किरणें ही शरीर में विटामिन डी बनाने का काम करती हैं।
गहरे रंग की त्वचा
गहरे रंग की त्वचा में अधिक मेलेनिन होता है, जो सूरज की हानिकारक किरणों से बचाता है। हालांकि, ज्यादा मेलेनिन होने के कारण गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों को विटामिन डी बनाने के लिए ज्यादा समय तक धूप में रहना पड़ता है। इसलिए, जिनकी त्वचा सांवली या काली होती है, उनमें विटामिन डी की कमी का खतरा ज्यादा होता है।
मोटापा या फैट
शरीर में जमा अतिरिक्त फैट विटामिन डी को अवशोषित कर लेता है और इसे कोशिकाओं तक पहुंचने से रोकता है। मोटे लोगों में विटामिन डी की कमी इसलिए ज्यादा पाई जाती है, क्योंकि शरीर में मौजूद अतिरिक्त चर्बी इसे जमा कर लेती है और शरीर को इसे इस्तेमाल करने में मुश्किल होती है।
उम्र ज्यादा होने पर
हमारी उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है, त्वचा की विटामिन डी बनाने की क्षमता कम हो जाती है। बुजुर्ग लोगों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है। इसलिए डॉक्टर अक्सर उन्हें विटामिन डी सप्लीमेंट लेने की सलाह देते हैं।
विटामिन डी जो हम खाने या सप्लीमेंट के जरिए लेते हैं, वह हमारे पेट में अवशोषित होता है। अगर पेट से जुड़ी कोई बीमारी हो, जैसे आईबीएस यानी इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम, सीलिएक डिजीज या क्रोहन डिजीज हो, तो शरीर में विटामिन डी सही से नहीं पहुंच पाता और इसकी कमी हो सकती है।