ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। आपने गरीबी से उठकर किसी व्यक्ति को शिखर पर पहुंचने की कहानी तो बहुत सुनी और पढ़ी होगी लेकिन, क्या कभी आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का कोई वैज्ञानिक अपनी नौकरी छोड़कर टैक्सी कैब उद्यमी बन सकता है? यह सिर्फ गप नहीं, बल्कि हकीकत है कि इसरो के वैज्ञानिक अपनी नौकरी छोड़कर टैक्सी उद्यमी बन गए हैं। इसे आप उनका जुनून या कुछ और कह सकते हैं। उनकी खासियत यह है कि उनके पास जो ड्राइवर अपनी गाड़ी लेकर आता है, उसे उस गाड़ी से होने वाली कमाई की करीब 70% हिस्सेदारी तक दे देते हैं और सालाना करीब 2 करोड़ रुपये कमाते हैं। इस शख्स का नाम डॉ उथया कुमार है।
काफी फिल्मी है डॉ उथया कुमार की कहानी
‘द बेटर इंडिया’ ने सोशल मीडिया मंच लिंक्डइन पर डॉ उथया कुमार की रिपोर्ट साझा की है। रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु के एक छोटे से शहर कन्याकुमारी से निकलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में अहम भूमिका निभाने और फिर एक सफल टैक्सी स्टार्टअप शुरू करने वाले डॉ उथया कुमार की कहानी काफी फिल्मी दिखाई देती है। यह कहानी न केवल उनके आत्मविश्वास, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व और नेतृत्व की अनूठी भावना को भी दर्शाती है।
उथया कुमार ने सांख्यिकी में एमफिल और पीएचडी की उपाधियां प्राप्त कर अकादमिक रूप से उच्च शिखर छुए। उन्होंने इसरो में करीब सात साल तक काम किया। उनकी मेहनत तब रंग लाई, जब उन्हें इसरो में एक वैज्ञानिक के रूप में नियुक्ति मिली। वहां उन्होंने उपग्रह प्रक्षेपण में तरल ईंन्धन की सटीकता सुनिश्चित करने का कार्य किया। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें एक छोटी-सी गलती भी गंभीर परिणाम ला सकती है।
उद्यमशीलता की ओर कदम
हालांकि, डॉ उथया कुमार का वैज्ञानिक जीवन काफी शानदार था, लेकिन उनके भीतर का उद्यमी उन्हें नई राह पर ले गया। साल 2017 में उन्होंने एसटी कैब्स नामक टैक्सी सर्विस की शुरुआत की। इसका नाम उनके माता-पिता सुकुमारन और तुलसी के नाम पर रखा गया। उनके पास 37 गाड़ियां हैं और उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपये से अधिक है।
अलग सोच, अलग रणनीति
उथया कुमार सिर्फ कुशल व्यवसायी ही नहीं , बल्कि एक संवेदनशील और दूरदर्शी लीडर भी हैं। वे ड्राइवरों को गाड़ी लाने पर 70% तक हिस्सेदारी देते हैं। प्रवासी ड्राइवरों के लिए घर का निर्माण भी करवा रहे हैं। अपने गांव के 4 बच्चों की शिक्षा का खर्च खुद उठाते हैं। कोविड के समय उन्होंने खुद पीपीई किट पहनकर लंबी यात्राएं कीं, ताकि उनका व्यवसाय चलता रहे।