ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में बेवजह की देरी पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे पर अपनी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ‘तेज सुनवाई’ हर नागरिक के जीवन के अधिकार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। देश की अदालतों में कुल 5.34 करोड़ से ज़्यादा मामले लंबित हैं। इनमें वकीलों का उपलब्ध न होना, आरोपी का फरार होना और गवाहों का गायब होना जैसे कई बड़े कारण शामिल हैं।
इन समस्याओं को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी किया है। इस आदेश में हाई कोर्ट्स को निर्देश दिए गए। उनसे कहा गया कि वे जिला न्यायिक अधिकारियों को सर्कुलर भेजें। इन सर्कुलर में साफ कहा गया कि वकीलों की अनुपलब्धता के कारण सुनवाई को स्थगित नहीं किया जा सकता। सिर्फ शोक की स्थिति में ही ऐसा हो सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर आरोपी और उनके वकील मिलकर कार्यवाही में देरी कर रहे हैं, तो उनकी जमानत रद करने पर विचार किया जाना चाहिए।
चौंकाने वाले आंकड़े
देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बहुत ज्यादा है। यह एक बड़ी चिंता का विषय है। 25 सितंबर तक के आंकड़ों के अनुसार, कुल 5.34 करोड़ मामले लंबित थे। इन मामलों में से एक बड़ा हिस्सा जिला और निचली अदालतों में है। जिला और निचली अदालतों में 4.7 करोड़ मामले लंबित हैं।
हाई कोर्ट्स में 63.8 लाख और देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में 88,251 मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि तहर किसी को जल्द न्याय मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में लंबित मामलों में देरी के कारणों की पूरी जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड ने निचली अदालतों के लिए कुछ आंकड़े दिए हैं। ग्रिड ने निचली अदालतों के 1.78 करोड़ मामलों में देरी के 15 मुख्य कारण बताए हैं। निचली अदालतों में कुल 4.7 करोड़ मामले लंबित हैं। जिन मामलों के कारणों की जानकारी ग्रिड के पास है, इनमें 81% आपराधिक व 19% सिविल मामले हैं। यह दिखाता है कि आपराधिक मामलों में देरी ज्यादा हो रही है। हालांकि, एक बड़ी संख्या ऐसे मामलों की भी है जिनके कारणों का पता नहीं है। लगभग 3 करोड़ मामलों के लिए देरी का कोई कारण नहीं बताया गया है। यह अपने आप में एक बड़ी समस्या है।