ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत में सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र दशकों से 60 वर्ष तय है। जैसे ही कोई कर्मचारी इस उम्र तक पहुंचता है, उसे सेवा से विदा कर दिया जाता है लेकिन अब यह नियम बदल सकता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि रिटायरमेंट का निर्धारण केवल उम्र के आधार पर नहीं होना चाहिए, बल्कि कर्मचारी की शारीरिक और मानसिक क्षमता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस फैसले ने लाखों कर्मचारियों के लिए नई उम्मीदें जगा दी हैं।
पिछले कुछ सालों में भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। लोग पहले की तुलना में अधिक लंबे और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। आज कई सरकारी कर्मचारी 60 वर्ष की उम्र के बाद भी पूरी तरह कार्य करने में सक्षम हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब व्यक्ति सक्षम है, तो केवल उम्र पूरी होने पर उसे सेवा से बाहर क्यों किया जाए?
बढ़ती उम्र, पर अब भी बरकरार ऊर्जा
देश में औसत जीवन प्रत्याशा अब पहले से काफी अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कर्मचारियों को कुछ अतिरिक्त वर्षों तक काम करने दिया जाए, तो सरकार उनके अनुभव और दक्षता का लाभ उठा सकती है। इससे न केवल प्रशासनिक कार्यकुशलता बढ़ेगी, बल्कि कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति और सामाजिक सम्मान भी मजबूत रहेगा।
कर्मचारियों के लिए नई राह
इस निर्णय के बाद सरकार पर रिटायरमेंट नीति की समीक्षा का दबाव बढ़ गया है। अगर इस दिशा में सुधार होते हैं, तो कर्मचारियों को कुछ अतिरिक्त वर्षों तक सेवा करने का अवसर मिलेगा। इससे उनकी आय, स्थिरता और आत्मसम्मान में सीधा लाभ होगा।





























