ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। पीएम जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफा देने का भारत पर क्या असर पड़ेगा? क्या भारत को इससे खुश होना चाहिए? नया नेता भारत के लिए कैसा साबित होगा?
ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक मामलों के जानकारों से बातचीत की गई। विशेषज्ञ मानते हैं कि जस्टिन ट्रूडो के हटने से संबंध बेहतर होने की उम्मीद है।
पिछले कुछ समय से मुझे लगता है कि ये बिलकुल स्पष्ट था कि जब तक ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने रहेंगे, तब तक भारत-कनाडा के संबंधों में नया मोड़ जिसकी जरूरत है, वो नहीं आ पाएगा। यह कहना है प्रोफेसर हर्ष वी. पंत का, जो नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं।
संबंधों में काफी नुकसान हुआ
उन्होंने कहा, ट्रूडो ने इसे निजी तौर पर ले लिया था और जिस तरह की संजीदगी इस मुद्दे पर चाहिए थी, वो नहीं दिखा रहे थे। उससे दोनों देशों के बीच के संबंधों में काफ़ी नुकसान हुआ।
भारत विरोधी बयानबाजी
दरअसल, जस्टिन ट्रूडो पिछले कुछ समय से भारत विरोधी बयानबाजी कर रहे थे। इस बीच, कनाडा ने स्टूडेंट वीज़ा से जुड़ा एक फ़ैसला लिया था, जिससे भारतीय स्टूडेंट्स की दिक्क तें बढ़ गई थीं। यही वजह है कि भारत और कनाडा के बीच तनाव देखने को मिल रहा है।
बिगड़ते संबंधों को स्थिर करने का मौका
वॉशिंगटन डीसी के विल्सन सेंटर थिंक टैंक में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन भी भारत और कनाडा के संबंधों को लेकर यही राय रखते हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा, ”ट्रूडो का इस्तीफ़ा भारत-कनाडा के बिगड़ते संबंधों को स्थिर करने का मौका दे सकता है।”
”नई दिल्ली ने द्विपक्षीय संबंधों में गहराई तक फैली समस्याओं के लिए सीधे तौर पर ट्रूडो को जिम्मेदार ठहराया है। हाल के वर्षों में कनाडा एकमात्र पश्चिमी देश है, जिसके भारत के साथ संबंध लगातार खराब हुए हैं।” प्रोफेसर पंत कहते हैं कि जब भी इस तरह का बदलाव होता है, तो बदलाव की उम्मीद तो होती है। जब नया प्रशासन आएगा, नए पीएम और नए प्रशासन से एक नई उम्मीद तो रहती है लेकिन, यह जरूर है कि लिबरल पार्टी की भी अपनी चुनौतियां हैं।