ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारतीय खान-पान की पद्धति सभी जी 20 देशों में पृथ्वी और पर्यावरण, दोनों के लिए दुनिया में सबसे बेहतर और अनुकूल है। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्लूडब्लूएफ) ने हाल ही में जारी लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2024 में कहा है कि भारतीयों के खान-पान की आदतों से ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम होता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यदि सभी देश भारत के खान-पान के पैटर्न को अपना लें तो 2050 तक पृथ्वी को होने वाला नुकसान काफी कम हो जाएगा। रिपोर्ट में भारत के पारंपरिक अनाज को बढ़ावा देने वाले देश के मिलेट मिशन (मोटा अनाज अभियान) का खास तौर पर जिक्र किया गया है जो सेहत और पर्यावरण अनुकूल खाद्य उपभोग पर बल देता है। मोटे अनाज सदियों से भारत में परंपरागत आहार का हिस्सा रहे हैं। इनके महत्व पर अब फिर से ध्यान दिया जाने लगा है।
डब्लूडब्लूएफ वन संपदा संरक्षण और पर्यावरण पर मानव प्रभाव को कम करने के लिए काम करती है। स्विट्जरलैंड की इस संस्था को 1961 में स्थापित किया गया था। सर्वोत्तम खाद्य प्रणाली में भारत के बाद इंडोनेशिया, चीन, जापान और सऊदी अरब का स्थान है। यदि सभी देश भारत के खान-पान पैटर्न को अपनाते हैं, तो 2050 तक हमारी धरती पर मौजूद 84 फीसदी संसाधन हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त होंगे। इसका मतलब है कि 16 फीसदी संसाधनों का उपयोग भी नहीं होगा। इससे ग्लोबल वॉर्मिंग भी कम होगी और पर्यावरण का संतुलन सुधरेगा। हम अपने 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से काफी कम गर्मी उत्सर्जित करेंगे। इससे वातावरण बेहतर होगा। यदि दुनिया अर्जेंटीना का उपभोग पैटर्न अपनाती है तो उसे सबसे अधिक 7.4 पृथ्वी की जरूरत होगी।
बड़े देशों का खाद्य पैटर्न खतरनाक
रिपोर्ट में अमेरिका, अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के डाइट पैटर्न को सबसे खराब रैंकिंग दी गई है। इन देशों में अत्यधिक मात्रा में फैटी और शुगरी फूड्स का सेवन जरूरत से ज्यादा बढ़ने के कारण मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि तो इन देशों में लगभग ढाई अरब लोग ओवरवेट हैं वहीं 890 मिलियन लोग मोटापे के शिकार हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि पूरी दुनिया जी-20 देशों जैसे बड़े देशों के खाद्य पैटर्न को अपना ले तो 2050 तक हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए सात पृथ्वी की जरूरत होगी। खाने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मानक 1.5 डिग्री सेल्सियस के मुकाबले यदि जी-20 देशों का खानपान पैटर्न सभी देशों में अपनाया जाए तो इससे 263 फीसदी ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग होगी।
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट- 2024 : भारत का भोजन दुनिया का करेगा पोषण
इस रिपोर्ट में जलवायु अनुकूल मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए भारत के प्रयासों की भी सराहना की गई है। मोटा अनाज स्वास्थ्य के लिए अच्छा है और जलवायु परिवर्तन के मामले में अत्यधिक लचीला है। रिपोर्ट में कहा गया है, अधिक टिकाऊ आहार खाने से खाद्य उत्पादन के लिए खेतों की जरूरत कम हो जाएगी। इससे चारागाहों की संख्या और क्षेत्र में इजाफा होगा। यह कार्बन उत्सर्जन से निपटने में मददगार होगा। मिलेट्स का सेवन भारत में लंबे समय से किया जाता रहा है। मिलेट्स का सेवन करने के लिए भारत में कई कैंपेन भी चलाए जा रहे हैं जिसमें लोगों को इसके फायदों के बारे में बताया जा रहा है। इन कैंपेन को भारत में मिलेट्स की खपत बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सेहत के लिए फायदेमंद होने के साथ ही जलवायु के लिए भी अच्छे हैं। भारत मिलेट्स का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 41 प्रतिशत हिस्सा है । मिलेट्स की खपत को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से कई पहल की गई हैं, जिनमें राष्ट्रीय मिलेट अभियान, मिलेट मिशन और ड्राउट मिटिगेशन प्रोजेक्ट शामिल हैं। भारतीय भोजन की बात करें तो यहां पर वेजिटेरियन और नॉन वेजिटेरियन खाने का मिक्सचर मिलता है।
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2024 कहती है कि भारतीय खानपान की विविधता जलवायु अनुकूलता के साथ-साथ सेहतकारी गुणों से भी समृद्ध है। उत्तर भारत में जहां प्रोटीन की प्रचुरता वाली भिन्न-भिन्न रंगों की दालों, फाइबर युक्त मौसमी सब्जियों, गेहूं, जौ, बाजरा, रागी, दलिया आदि का चलन है तो वहीं दक्षिण भारत में चावल से तैयार इडली, डोसा, दाल, सांभर और चटनी का खूब प्रयोग होता है। पूर्वी-पश्चिमी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में मछली और कई तरह के मोटे अनाज का सेवन लोगों में पौष्टिकता का आधार तैयार करता है। विभिन्न भारतीय भोजन, मसाले और पकवान विविधता के साथ-साथ स्वाद और पौष्टिकता से संपन्न होते हैं। पूरी दुनिया के लोग यहां के स्थानीय भोजन के बारे में जानने और समझने के साथ-साथ उनका स्वाद लेने के लिए भी लालायित रहते हैं। कुछ दशकों में भारतीयों के भोजन में शुगर और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा की अधिकता हुई है उससे स्वास्थ्य संबंधी अनेक चिंताएं भी उत्पन्न होती जा रही हैं।
भारत की पारंपरिक थाली में शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखने के लिए आमतौर पर हर प्रकार के पौष्टिक तत्व समाहित रहते हैं। इसमें प्राय: दो-तीन तरह की दालें, सब्जी, थोड़ा चावल अथवा रोटी या फिर दोनों ही होते हैं। इसके अलावा चटनी, सलाद, अचार और पापड़ भी थाली में अपनी जगह जरूर बनाते हैं। इसके विपरीत होटलों में मिलने वाली थाली ने इसका स्वरूप और भोजन का अनुपात; दोनों को ही बिगाड़ा है।
दुनिया में कम हुए 73 फीसदी वन्यजीव, एशिया प्रशांत में 60 फीसदी घटे
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में वैश्विक वन्यजीव आबादी में 73 फीसदी की गिरावट देखी गई। यह गिरावट दो साल पहले 69 फीसदी थी। इनमें सबसे ज्यादा 85 फीसदी की गिरावट मीठे पानी के जीवों में हुई है, इसके बाद भूमि पर रहने वाले जीवों में 69 फीसदी और समुद्री जीवों में 56 फीसदी की गिरावट देखी गई है। दक्षिण अमरीका, कैरेबियाई द्वीप, अफ्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में औसतन 60 फीसदी वन्यजीवों की संख्या कम हो गई है।
भारत के आग्रह पर 2023 बना अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष
घरेलू और वैश्विक मांग पैदा करने और लोगों को पोषण आहार प्रदान करने के लिए, भारत सरकार ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (आईवाईओएम-2023) के रूप में घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को प्रस्ताव दिया था। भारत के प्रस्ताव का 72 देशों ने समर्थन किया और संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने 5 मार्च, 2021 को; वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में घोषित किया।
अप्रैल, 2018 में बाजरे को पोषक अनाज के रूप में अधिसूचित किया जिसमें ज्वार, मोती बाजरा, फिंगर बाजरा (रागी/मंडुआ), लघु बाजरा, फॉक्सटेल मिलेट (कांगानी/ काकुन), प्रोसो मिलेट (चीना), कोदो मिलेट, बार्नयार्ड मिलेट (सावा/सांवा/झंगोरा), कुटकी, कुट्टू व अमरैंथस (चौलाई) शामिल हैं।



























