विनोद शील
नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एवं पड़ोसी देशों से चुनौतियां मिलने के बावजूद भारत एक के बाद एक अनेक क्षेत्रों में नए-नए बेंचमार्क स्थापित करता जा रहा है। आर्थिक मोर्चा हो या सेना के लिए हथियारों की बात, जमीन से लेकर आसमान तक, समुद्र की गहराइयों से लेकर अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक; हर जगह ‘मेक इन इंडिया’, ‘मेक फॉर वर्ल्ड’ का परचम लहरा रहा है।
एक तरफ जहां अमेरिका बार-बार भारत को अपने सबसे पुराने सहयोगी रूस से दूरी बनाने के लिए भारतीय व्यापार पर टैरिफ बढ़ा रहा है तो वहीं दूसरी ओर रूस के साथ भारत खुद को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए महत्वपूर्ण समझौते करता जा रहा है।
य ह इस बात का प्रतीक है कि भारत किसी के भी गलत इरादों के सामने झुकने वाला नहीं है और उसे अपनी संप्रभुता कैसे कायम रखनी है, उसे अच्छी तरह से समझता और जानता है। इसी क्रम में देश में पहली बार यात्री विमानों का निर्माण होगा। भारत-रूस साथ मिलकर छोटी दूरी की उड़ानों के लिए डबल इंजन से लैस सुखोई सुपरजेट एसजे-100 विमान बनाएंगे।
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और रूसी कंपनी पब्लिक जॉइंट स्टॉक यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन में करार हआ है। एचएएल ने बयान जारी कर बताया कि ये पहला प्रोजेक्ट है जिसके तहत देश में यात्री विमानों का निर्माण होगा। एचएएल के चेयरमैन डीके सुनील और रूसी कंपनी के महानिदेशक वादिम बाडेखा ने इस करार पर हस्ताक्षर किए हैं। यह करार रूसी राष्ट्रपति पुतिन के दिसंबर में प्रस्तावित दौरे से पहले हुआ है। एचएएल ने कहा कि एसजे-100 विमान का निर्माण भारतीय विमानन उद्योग के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरूआत है। इसका उद्देश्य उड़ान योजना के तहत देश में हवाई संपर्क क्षेत्र को मजबूत करना है। समझौता भारत को विमानन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। इससे बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा। दुनिया में अब तक करीब 200 एसजे-100 विमान तैयार किए गए हैं जिनका इस्तेमाल 16 विमान कंपनियां कर रही हैं। एसजे-100 विमान का यह समझौता मास्को में हुआ। यह एक ऐतिहासिक खबर है क्योंकि इस समय जो कंपनियां यात्री विमान बनाती हैं; उनको अब भारत और रूस के इस ‘मेड इन इंडिया’ यात्री विमान से एक कड़ी चुनौती मिलने वाली है। इसमें दो इंजन होंगे और 108 यात्री बैठेंगे तथा इसकी रेंज 3500 किमी से ज्यादा है। यह भारत के श्रीनगर से श्रीलंका के कोलंबो तक नॉनस्टॉप बिना ईंन्धन भरे उड़ान भर सकता है।
भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख विमान
एसजे-100 घरेलू उड़ान में एक गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। एसजे-100 विमान की कीमत 317 करोड़ रुपए से लेकर 440 करोड़ रुपए तक है। भारत की एयरलाइंस में यात्री विमान के तीन मॉडल इस समय सबसे ज्यादा इस्तेमाल होते हैं। पहला है बोइंग कंपनी का 737 मैक्स जिसकी कीमत करीब 877 करोड़ रुपए है, दूसरा है एयरबस का ए319 और इस विमान की कीमत करीब 788 करोड़ रुपए है तथा तीसरा है एयरबस और लियोनार्डो का एटीआर एयरक्राफ्ट। यह छोटा एयरक्राफ्ट होता है और इसकी कीमत लगभग 167 करोड़ रुपए है। एटीआर प्लेन का प्रयोग छोटे शहर और छोटे डेस्टिनेशन वाली फ्लाइट के लिए होता है। तो इस समय भारत में अगर गौर करें तो जितनी भी एयरलाइंस भारत में हैं; वे लगभग इस प्रकार के विमान को इस्तेमाल कर रही हैं। यह सिर्फ एक विमान नहीं है बल्कि भारत के लिए एक क्रांति की तरह होगा क्योंकि भारत में यात्री विमान का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और हमेशा हमें इस बात का दुख रहा है कि हम अभी भी अपना एक यात्री विमान नहीं बना पाए।

पहली बार यात्री विमान का निर्माण, देश होगा आत्मनिर्भर
अमेरिकी दबाव दरकिनार, पुतिन की यात्रा से पूर्व रूस से करार
सफ्रान के इंजन से शुरुआत
एसजे-100 यात्री विमान के निर्माण की शुरुआत वर्ष 2000 में हुई थी। 19 मई 2008 को इसने पहली परीक्षण उड़ान भरी थी। 2011 में रूस ने पहली बार इसे अपनी एयरलाइंस में शामिल किया था और 21 अप्रैल 2011 को ये पहली बार यात्रियों को लेकर उड़ा था। विमान में दो इंजन फ्रांस की कंपनी सफ्रान के लगे हैं। वर्ष 2022 में रूस ने इसे पूर्ण रूप से खुद तैयार करने का एलान किया। अब सफ्रान के इंजन की जगह रूस निर्मित इंजन लगाया जा रहा। ये विमान अबतक चार हादसों का शिकार हुआ है जिसमें 84 लोगों की जान गई है।
विमानों की जरूरत लगातार बढ़ेगी
एचएएल के अनुमान के अनुसार अगले 10 वर्षों में भारत के विमानन क्षेत्र को क्षेत्रीय संपर्क के लिए इस श्रेणी के 200 से अधिक जेट विमानों की आवश्यकता होगी। इसी तरह भारतीय महासागर क्षेत्र में निकटवर्ती अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थलों की सेवा के लिए अतिरिक्त 350 विमानों की जरूरत होगी। कंपनी ने बताया कि इससे पहले एचएएल द्वारा एवीआरओ एचएस-78 विमान का निर्माण 1961 में शुरू किया गया था और 1988 में ये प्रोजेक्ट पूरा हुआ था। इस विमान का उपयोग भारतीय वायुसेना करती थी।
भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख विमान
एसजे-100 घरेलू उड़ान में एक गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। एसजे-100 विमान की कीमत 317 करोड़ रुपए से लेकर 440 करोड़ रुपए तक है। भारत की एयरलाइंस में यात्री विमान के तीन मॉडल इस समय सबसे ज्यादा इस्तेमाल होते हैं। पहला है बोइंग कंपनी का 737 मैक्स जिसकी कीमत करीब 877 करोड़ रुपए है, दूसरा है एयरबस का ए319 और इस विमान की कीमत करीब 788 करोड़ रुपए है तथा तीसरा है एयरबस और लियोनार्डो का एटीआर एयरक्राफ्ट। एटीआर एयरक्राफ्ट होता है और इसकी कीमत लगभग 167 करोड़ रुपए है।
एसजे-100 पर एक नजर
दुनिया में अब तक 200 एसजे-100 यात्री विमानों को तैयार किया गया
एसजे 100 को सुखोई सुपरजेट भी कहते हैं
02 इंजन से लैस विमान 10.28 मीटर ऊंचा
30 मीटर का पंख और 30 मीटर ही लंबा है
108 यात्री इसमें एकसाथ बैठ सकते हैं
1900 मीटर का रनवे उड़ने के लिए चाहिए
3530 किमी की उड़ान एक बार में संभव
21 अप्रैल 2011 को पहली बार भरी उड़ान
49,450 किलोग्राम वजन ले उड़ सकता है
-55 से 45 डिग्री तापमान में उड़ सकता है
भारत की बड़ी छलांगः 3 साल में आसमान में गरजेगा 5वीं पीढ़ी का फाइटर जेट
भारत 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट को जल्द आसमान में उड़ाने की योजना में कोई कोताही बरतना नहीं चाहता है। इस फाइटर जेट को विकसित कर रहे डीआरडीओ ने भी कहा है कि इसके लिए सभी जरूरी टेक्नोलॉजी तैयार है। इस फाइटर जेट को विकसित करने के काम में सात सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों ने रुचि दिखाई है। सरकार ने बिना देरी किए इन कंपनियों की क्षमताओं के मूल्यांकन के लिए दो टॉप गवर्मेंट पैनल गठित कर दिए हैं।
प्रतिस्पर्धा में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड, अडाणी डिफेंस एंड एयरोस्पेस, लार्सन एंड टुब्रो के साथ भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, गुडलक इंडिया के साथ ब्रह्मोस एयरोस्पेस तिरुवनंतपुरम लिमिटेड, एक्सिसकैड्स टेक्नोलॉजीज, भारत फोर्ज लिमिटेड के साथ बीईएमएल लिमिटेड और डेटा पैटर्न्स शामिल हैं। इस एएमसीए (एमका) प्रोजेक्ट के लिए इसी साल कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने डिजाइन व प्रोटोटाइप विकास के लिए 15,000 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी। पहले प्रोटोटाइप के 2029 में पहली उड़ान भरने की उम्मीद है, जबकि 2034 तक विकास पूरा होने और 2035 में उत्पादन शुरू होने की संभावना है यानी केवल 3 साल में पहला फाइटर जेट उड़ान भरने लगेगा।
स्वदेशी तेजस ने भरी पहली उड़ान
भारतीय वायुसेना को मार्क 1 ए लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में तेजी लाने के मकसद से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने महाराष्ट्र के नासिक में तीसरी प्रोडक्शन लाइन शुरू की है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसका उद्घाटन किया। नासिक के ओझर की इस फेसिलिटी में बने पहले लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ने 17 अक्टूबर को पहली उड़ान भरी। इस प्रोडक्शन लाइन के जरिए वायुसेना को 2032-33 तक 180 तेजस विमानों की आपूर्ति करने में मदद करेगी। यहां अभी आठ फाइटर जेट बनाए जा रहे हैं जिसे बढ़ाकर 10 किया जा सकता है।
वायुसेना के लिए तेजस विमान बना रही एचएएल को सितंबर में ही अमेरिका ने इसका चौथा इंजन भेजा था। इस फाइटर जेट की खूबियों में से एक है कि इसके विंग्स (पंखों) में 9 जगह मिसाइलें फिट होती हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक हर तेजस मार्क-1ए की औसत कीमत 600 करोड़ रुपए है। फाइटर जेट की रफ्तार 2205 किमी/घंटा यानी ध्वनि से भी करीब दोगुनी तेज है। इसका प्रोडक्शन देश की 500 से ज्यादा घरेलू कंपनियों ने मिलकर किया है, इसलिए इसे स्वदेशी तेजस भी कहा जा रहा है।































