विनोद शील
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के अप्रत्याशित नतीजों ने इस बार फिर सबको चौंका दिया है। दिल्ली समेत पूरे देश की नजर राजधानी के चुनाव परिणाम पर थी। शुरुआती रुझानों में ही यह साफ हो गया था कि दिल्ली में 27 साल बाद कमल खिलने जा रहा है; यानी कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार बनने जा रही है। बीजेपी की इस बड़ी जीत ने एक बार फिर यह भी सिद्ध कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैजिक अब भी बरकरार है और देश की राजनीति में अभी भी कोई अन्य नेता उनके समकक्ष नहीं है। पीएम मोदी की चुनावी नीति और रणनीति से देश का सियासी परिदृश्य भी तेजी से बदल रहा है। दिल्ली की जीत से ब्रांड मोदी का दबदबा और बढ़ गया है तथा देश की राजनीति को स्पष्ट संदेश मिला है। विधानसभा की 70 सीटों में से बीजेपी ने 48 सीटें हासिल की हैं और कांग्रेस यहां एक भी सीट नहीं जीत सकी। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को भी चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के साथ ही विरोधी खेमे का एक बड़ा गढ़ ढह गया है। पार्टी ने न केवल जीत दर्ज की बल्कि प्रभावशाली तरीके से चुनाव में बढ़त बनाई। इस नतीजे से न केवल बीजेपी बल्कि कांग्रेस को भी कहीं न कहीं राहत मिली होगी। कांग्रेस को राहत इसलिए क्योंकि उसने हरियाणा का बदला ले लिया है। आम आदमी पार्टी (आप) ने चुनाव से पहले कांग्रेस से नाता तोड़ते हुए अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था और प्रचार के दौरान कांग्रेस पर तीखे हमले किए थे।
आप दिल्ली में सत्ता विरोधी लहर को मात देकर पुन: सरकार बनाने में विफल हो गई। आम आदमी पार्टी की इस करारी हार में अहम भूमिका कहीं न कहीं भ्रष्टाचार के उन आरोपों ने भी निभाई जो आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल पर लगे थे। इन नतीजों ने दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस के भविष्य पर भी अब प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी की पार्टी को पुनर्जीवित करने की तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस को एक भी सीट दिल्ली में हासिल नहीं हो सकी। इससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी का अब शायद कोई भविष्य नहीं बचा है। अगर पिछले 27 वर्षों की दिल्ली की राजनीति को देखें तो 1999, 2014, 2019 और 2024 में बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की लेकिन विधानसभा में सफलता हासिल नहीं कर पाई। खासकर पिछले दो चुनावों में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था पर इस बार की जीत ने पार्टी की पुरानी पीड़ा को खत्म कर दिया है। जिस तरह से दिल्ली में बीजेपी व पीएम मोदी का मैजिक चला और चुनाव बीजेपी एवं आप के बीच मुकाबले में सिमट गया और बीजेपी को बड़ी जीत मिली उसके कुछ अन्य कारण भी स्पष्ट नजर आ रहे हैं। – शेष पेज 15 पर
1. मोदी की गारंटी – जारी रहेंगी योजनाएं।
2. मोदी का ‘आपदा’ वाला वार एवं नारा – आपदा जाएगी, बीजेगी आएगी।
3. ब्रांड मोदी पर भरोसा – डबल इंजन सरकार से बदलेगी तस्वीर।
4. नैरेटिव – कट्टर ईमानदार कट्टर बेईमान – आलीशान बंगला, शराब घोटाला, भ्रष्टाचार वाला प्रहार।
5. चुनावी घोषणा पत्र नहीं, बीजेपी का संकल्प पत्र – सभी वायदों को पूरा करने की गारंटी।
6. बीजेपी का माइक्रो मैनेजमेंट – बूथ स्तर पर प्लानिंग- कार्यकर्ताओं से पीएम का संवाद।
7. अरविंद केजरीवाल नहीं जगा सके जनता की सहानुभूति – दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दोनों को सरकार में रहते हुए जेल जाना पड़ा लेकिन दोनों की राजनीतिक परिस्थितियों में अंतर रहा। जहां झारखंड की जनता ने हेमंत सोरेन के प्रति सहानुभूति दिखाई और उनकी पार्टी ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया वहीं दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के प्रति वैसी सहानुभूति नहीं देखी गई।
8. बीजेपी ने यमुना सफाई को बनाया बड़ा मुद्दा – अरविंद केजरीवाल पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वे अपने विरोधियों पर बिना आधार के आरोप लगाते रहे हैं। इसके चलते कई बार उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी है जिससे उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनती गई जिसकी बातों पर भरोसा करना मुश्किल होता गया। सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब उन्होंने हरियाणा सरकार पर जान बूझकर दिल्ली को जहरीला पानी भेजने का आरोप लगाया। उन्होंने यह तक कहा कि हरियाणा सरकार दिल्ली में नरसंहार करना चाहती है। इस आरोप पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने खुद दिल्ली बॉर्डर पर जाकर यमुना का पानी पीकर इस दावे को गलत साबित किया। इससे न केवल उनके विरोधियों को मौका मिला बल्कि उनके हार्डकोर समर्थक भी नाराज हो गए।
9. शीशमहल विवाद ने छवि को नुकसान पहुंचाया – राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल ने वीवीआईपी कल्चर के खिलाफ आवाज उठाई थी और कहा था कि वे सरकारी सुविधाओं का उपयोग नहीं करेंगे। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने न केवल सरकारी बंगले और गाड़ियों का उपयोग किया बल्कि अपने लिए एक बेहद महंगा मुख्यमंत्री आवास भी बनवाया जिसे मीडिया ने ‘शीशमहल’ का नाम दिया। सीएजी रिपोर्ट में भी उनके आवास पर हुए भारी खर्च पर सवाल उठाए गए। इससे उनकी सादगी वाली छवि को बड़ा झटका लगा और जनता में उनके प्रति अविश्वास बढ़ गया।
10. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन न होना – उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र चुनावों के दौरान ‘बंटे तो कटे’ का नारा दिया था, जो हिंदू एकता के संदर्भ में था। हालांकि, इस नारे से सीख लेते हुए अन्य पार्टियों ने भी अपने गठबंधन को मजबूत किया लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक साथ नहीं आ सके। हरियाणा में कांग्रेस बहुत कम मार्जिन से सरकार बनाने से चूक गई थी लेकिन इसके बावजूद दिल्ली में दोनों पार्टियां एक साथ नहीं आईं। इससे वोटों का विभाजन हुआ और बीजेपी को फायदा मिला।
11. महिलाओं के लिए 2100 रुपये की योजना लागू न करना – झारखंड में झामुमो सरकार की जीत का एक प्रमुख कारण महिलाओं के लिए लागू की गई आर्थिक सहायता योजना को माना गया था। दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल ने महिलाओं को हर महीने एक निश्चित राशि देने की योजना की घोषणा की थी लेकिन इसे लागू नहीं कर पाए। इससे जनता में यह संदेश गया कि अगर वे इस योजना को चुनाव से पहले लागू नहीं कर सके तो चुनाव जीतने के बाद भी लागू करने में असफल हो सकते हैं। अगर यह योजना एक महीने पहले लागू कर दी गई होती तो शायद परिणाम कुछ और हो सकते थे।
12. गंदे पानी की सप्लाई और राजधानी में गंदगी- दिल्ली सरकार ने मुफ्त सुविधाओं की शुरुआत करके जनता का समर्थन पाया था लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी से जनता परेशान हो गई थी। सबसे बड़ा मुद्दा पानी की सप्लाई का था। गर्मियों में दिल्ली में लोग साफ पानी के लिए परेशान होते रहे और टैंकर माफिया पूरी तरह हावी हो चुका था। अरविंद केजरीवाल ने 24 घंटे स्वच्छ जल सप्लाई का वादा किया था लेकिन यह पूरा नहीं हुआ। इसके साथ ही राजधानी की सफाई व सड़क व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा गई थी। चूंकि एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी की ही सरकार थी इसलिए पार्टी के पास कोई बहाना नहीं था। इससे जनता में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी।
13. आईएनडीआईए (इंडिया) गठबंधन कमजोर होना – 2024 के आम चुनावों में बीजेपी के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस को यह विश्वास होने लगा था कि वह अकेले मोदी सरकार को चुनौती दे सकती है। इसी आत्मविश्वास के कारण इंडिया गठबंधन में दरारें आ गईं ं। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और आम आदमी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों में अपने अस्तित्व को लेकर चिंता बढ़ गई जिससे वे कांग्रेस से दूरी बनाने लगीं।
14. संघ शक्ति का बजा डंका – लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने बीजेपी के चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी थी। माना जाता है कि इसकी मुख्य वजह बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का वह बयान था जिसमें उन्होंने संकेत दिया था कि अब पार्टी को संघ के समर्थन की आवश्यकता नहीं है। इसी कारण कई विश्लेषकों ने बीजेपी के अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाने का कारण संघ की निष्िक्रयता को बताया था।
जनशक्ति सर्वोपरि विकास व सुशासन जीता : पीएम मोदी
ल्ली विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट डाली है। पीएम मोदी ने लिखा कि जनशक्ति सर्वोपरि। पीएम मोदी ने लिखा कि विकास जीता, सुशासन जीता।
पीएम ने कहा, दिल्ली के सभी भाई-बहनों को ऐतिहासिक जीत दिलाने के लिए मेरा वंदन और अभिनंदन! आपने जो भरपूर आशीर्वाद और स्नेह दिया है, उसके लिए आप सभी का हृदय से बहुत-बहुत आभार। दिल्ली के चौतरफा विकास और यहां के लोगों का जीवन उत्तम बनाने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे, यह हमारी गारंटी है। इसके साथ ही हम यह भी सुनिश्चित करेंगे कि विकसित भारत के निर्माण में दिल्ली की अहम भूमिका हो।
पीएम मोदी ने कहा मुझे अपने सभी कार्यकर्ताओं पर बहुत गर्व है, जिन्होंने इस प्रचंड जनादेश के लिए दिन-रात एक कर दिया। अब हम और भी अधिक मजबूती से अपने दिल्लीवासियों की सेवा में समर्पित रहेंगे।