ब्लिट्ज ब्यूरो
लगभग चार साल पहले, अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था और उसने अफगानिस्तान में तख्तापलट करते हुए सत्ता पर कब्जा जमा लिया था। तब से दोनों देशों के बीच कोई कूटनीतिक रिश्ता नहीं रहा। ज्यादातर देशों ने भी अफगानिस्तान से कूटनीतिक संबंध खत्म कर दिए थे। यहां तक कि तालिबान के पास देश की आधिकारिक सरकार होने की मान्यता तक नहीं। दिल्ली ने भी अब तक काबुल को आधिकारिक मान्यता भी प्रदान नहीं की है। अभी पिछले दिनों तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी दिल्ली की यात्रा पर आए। ये वही मंत्री हैं जिन पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने दो दशकों तक यात्रा प्रतिबंध लगा रखा था। भारत भी तालिबान की कट्टरता को लेकर उससे दूरी बना चुका था लेकिन हाल ही में रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलती दिख रही है और अब बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य की वजह से तस्वीर कुछ अलग भी हो सकती है।
आमिर खान मुत्तकी तालिबान के पुराने नेताओं में से हैं और नब्बे के दशक में भी एजुकेशन मिनिस्टर रह चुके हैं। यूएनएससी यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उन पर यात्रा प्रतिबंध लगाया था क्योंकि उसे शक था कि मुत्तकी नब्बे के दशक में हुई हिंसा में हिस्सेदार थे। ट्रैवल बैन इतना कड़ा था कि वे किसी भी देश की यात्रा नहीं कर सकते थे। हालांकि बीच-बीच में यूएन ने उन्हें कुछ छूट दी ताकि वे शांति की बातचीत में शामिल हो सकें। बदलते घटनाक्रमों के बीच अब पश्चिम के माथे के बल भी कुछ नरम पड़े हैं और वो तालिबान से रिश्ता बनाने को तैयार नजर आ रहा है। इसी कड़ी में उसने मुत्तकी पर से ट्रैवल बैन को भी हटा दिया है।
अब तक कैसे रहे भारत और तालिबान के रिश्ते; अगर इस पर बात करें तो दोनों के रास्ते बार-बार टकराते तो रहे हैं और साथ चलना आसान भी नहीं रहा है। नब्बे के दशक में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तब भारत ने शुरू से ही इस शासन को मान्यता नहीं दी थी। इसकी वजह तालिबान की कट्टर सोच और महिलाओं-बच्चियों पर पाबंदी ही नहीं थी बल्कि पाकिस्तान से उसका गहरा रिश्ता भी एक बड़ा कारण था। दूसरी बार यानी अगस्त 2021 में जब तालिबान दोबारा सत्ता में आया तो भारत ने अपने सारे कूटनीतिक रिश्ते तोड़ दिए थे लेकिन रवैये में हल्की नरमी भी रखी थी। जब काबुल में कुदरती आपदा आई तो दिल्ली से टीम भी गई ताकि मानवीय मदद दी जा सके। हालांकि तालिबान को सरकार की मान्यता तो अब भी नहीं मिली पर वह पहले की तरह बिरादरी से बाहर भी नहीं दिखाई दे रहा। अब तालिबान 2.0 में हो रहे बदलाव और मुत्तकी का भारत दौरा उस समय हो रहा है जब भारत के कमोबेश सारे पड़ोसी देशों में अस्थिरता का माहौल है। हाल ही में नेपाल हिंसा झेल चुका है। बांग्लादेश के जख्म भी अभी भरे नहीं हैं। श्रीलंका और पाकिस्तान की राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था तक चरमराई हुई है और पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात बने हुए हें।
– भारत न सिर्फ एक आर्थिक मददगार बल्कि अन्य देशों से रिश्ते सुधारने में भी तालिबान के लिए एक सशक्त माध्यम बन सकता है। इसलिए बदलती परिस्थितियों में समय के साथ बदलने और चलने में ही हित और बुद्धिमानी है।
आस-पड़ोस के हालात पर नजर दौड़ाएं तो भले ही चीन इस समय भारत के प्रति सकारात्मक रवैया दर्शा रहा है पर वह हमेशा की तरह भारत के पड़ोसी मुल्कों में अपना प्रभुत्व बनाने से नहीं चूकता। तालिबान के आने के बाद से ही वह अफगानिस्तान में भी अपना सिक्का जमा रहा है। भारत के लिए यह जरूरी है कि वह इसे कमजोर करे। यही वजह है कि भारत अब तालिबान से सीमित ही सही; लेकिन संबंध बना रहा है। इसके अलावा पाकिस्तान भी ऐसा देश है जो हमेशा से काबुल को पाकिस्तानी आतंकियों का ब्रीडिंग ग्राउंड बनाना चाहता है। इसलिए पाकिस्तान से तनाव के बीच भारत के लिए अफगानिस्तान में अपनी पैठ बनाना और भी जरूरी हो जाता है। काबुल को पाकिस्तान काफी समय तक भारत के खिलाफ गतिविधियां करने के लिए इस्तेमाल करता रहा है पर इस बार तालिबानी शासन में इस्लामाबाद और काबुल के रिश्ते बहुत खराब हैं और दोनों के बीच युद्ध जैसे हालात भी हैं।
यह दिल्ली के लिए अच्छा मौका भी है। काबुल के करीब आकर वो तय कर सकता है कि कम से कम उसकी जमीन से भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियां न हों और मुत्तकी ने भी यही भरोसा दिया है। साथ ही तालिबानी शासन के लिए भारत से रिश्ता रखना इसलिए जरूरी है क्योंकि भारत सिर्फ मजबूत पड़ोसी ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में अफगानिस्तान का मददगार भी हो सकता है और रहा भी है। ऐसे में भारत न सिर्फ एक आर्थिक मददगार बल्कि अन्य देशों से रिश्ते सुधारने में भी तालिबान के लिए एक सशक्त माध्यम बन सकता है। इसलिए बदलती परिस्थितियों में समय के साथ बदलने और चलने में ही हित और बुद्धिमानी है।