ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सड़कों, राष्ट्रीय राजमार्गों (नेशनल हाईवे) और एक्सप्रेसवे पर गति सीमा (स्पीड लिमिट) निर्धारित करने में अदालतों का कोई काम नहीं है क्योंकि इन्हें विशेषज्ञों द्वारा तय किया जाना है और सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाना है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश के उस आदेश को खारिज कर दिया। जिसमें 2018 की अधिसूचना के तहत बढ़ी हुई गति सीमा को रद कर दिया गया था।
हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने सड़क परिवहन मंत्रालय को 2015 में तय की गई गति सीमा को वापस लागू करने को कहा था। एक्सप्रेसवे पर गति सीमा 100 किलोमीटर प्रति घंटे से बढ़ाकर 120 किलोमीटर प्रति घंटे कर दी गई थी।
हाई कोर्ट के जज ने एक नाबालिग की मां द्वारा दायर मोटर दुर्घटना दावे से संबंधित मामले में निर्देश जारी किए थे जो एक तेज रफ्तार वाहन की चपेट में आने के बाद 90 प्रतिशत विकलांग हो गया था। हाई कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए 18 लाख रुपये के मुआवजे को बढ़ाकर 1.5 करोड़ रुपये कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मुआवजे के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। और उसने कहा कि केंद्र सरकार ने इसे चुनौती भी नहीं दी है, जिसने गति सीमा कम करने के हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए, अदालतें सड़कों, नेशनल हाईवे और एक्सप्रेसवे पर वाहनों की गति सीमा कम नहीं कर सकती हैं। हम इस तरह से देश की रफ्तार को धीमा नहीं कर सकते।”