ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली।– सवाल यह है कि हम अपने आदिकालीन त्योहार को मनाते वक्त भला एक ‘विदेशी आक्रांता’ यानी बाबर के साथ लाई बला (बारूद) को प्रयोग में लाकर इतनी खुशी क्यों मनाते हैं?
हर वर्ष की भांति इस साल भी दीपावली का पर्व आया और भारतवासियों ने उल्लासपूर्वक इसे मनाया। अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह त्योहार आध्यात्मिक जागरण, आंतरिक प्रकाश, और ज्ञान के उत्सव का भी प्रतीक है। यह पर्व हिंदुओं, जैनियों, सिखों और कुछ बौद्धों द्वारा भी मनाया जाता है तथा विभिन्न धर्मों के लिए यह अलग-अलग महत्व रखता है। हमारे लिए इस पर्व के अंतर्निहित संदेशों को समझना और उनका अनुसरण सीखना भी अत्यंत आवश्यक है। दीपावली में हम दीप जलाकर अमावस के अंधकार को दूर करने की बातें तो बहुत करते हैं किंतु उन पर अमल किए जाने का काम सबसे कम करते हैं। यही नहीं, मन में व्याप्त ईर्ष्या, द्वेष और जलन के विचारों की अमावस की चर्चा भी खूब करते हैं पर उसे दूर करने के प्रयास कोई-कोई ही करता है एवं अपनी गलतियों पर आत्मनिरीक्षण करने के बजाय परदा डालने के प्रयास ज्यादा होते दिखाई देते हैं। दरअसल दीपावली आत्मावलोकन का पर्व भी है और प्रकाशयुक्त इस पर्व का सही चरित्र हम तभी समझ पाएंगे जब हम मानव-मात्र के कल्याण को अपने जीवन का ध्येय बनाएंगे। ठीक उसी तरह जिस तरह प्रभु श्रीराम ने राक्षसों का संहार कर के व्यष्टि और समष्टि; दोनों का कल्याण किया था और उनके समग्र जीवन का ध्येय भी जन-कल्याण ही था।
अगर हम अपने मन के भीतर की अमावस को दूर करना चाहते हैं तो हमें अपने मन के अंदर आत्मावलोकन का दीप जलाना ही होगा। आज दिनोंदिन सामाजिक अपराधों में वृद्धि हो रही है। यदि हम अपने दोषों को दूर करने के प्रयास करने लगें तो अवश्य ही समाज में सकारात्मक बदलाव आने प्रारंभ हो जाएंगे और आंतरिक शांति का अहसास भी होने लगेगा। परंतु अफसोस की बात है कि ऐसा होता दिखाई नहीं देता। आज धन के लालच में मिलावटखोर आम आदमी के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। लाखों किलो नकली पनीर, खोया और दूध तथा अन्य खाद्य सामग्री बाजारों में भरी पड़ी है। चंद सिक्कों की चाहत में आज लोग भ्रष्टाचार के गहराते जा रहे दलदल में बेखौफ गिरते जा रहे हैं। हमें न अपने देश की परवाह है, न अपने नागरिकों की। शासन और प्रशासन में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है। बड़े-बड़े अफसरों एवं नेताओं के घरों से करोड़ों का अवैध धन और अकूत संपदा का मिलना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि हम खुद को नैतिकता के मानदंडों पर खरा उतारने के बजाय भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ने में खुद को उलझाए हुए हैं जबकि आज हमारा लक्ष्य भारत को आत्मनिर्भर एवं विश्वगुरू बनाने का है। यह लक्ष्य पाने के लिए हमें सबसे पहले अपने आचरण में सही और गलत की पहचान करने के गुण आत्मसात करने होंगे। हमें केवल ऐसे कार्य ही करने होंगे जिनसे स्वयं और देश का सम्मान बढ़े।
देश के अंदर सुरक्षा का वातावरण बने और नारियों का मान कायम रहे; इस पर भी हमें बहुत कार्य करना अभी बाकी है। इसी के साथ एक और बड़ा मुद्दा है पर्यावरण का। दीपावली आते ही हर तरफ प्रदूषण बढ़ने की बातें होने लगती हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि पटाखे राजधानी दिल्ली एवं एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ाने में थोड़ा इजाफा करते हैं पर इसमें पंजाब, हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाना भी एक प्रमुख कारण है। प्रदूषण की मार से मुक्ति के लिए सभी को कोशिश करनी होगी। आज जब हम स्वदेशी अपनाने की बात करते हैं तो हमें पटाखों को भी तिलांजलि देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इन पटाखों में जो बारूद जलता है, वह भारत में एक विदेशी आक्रांता पहली बार भारत लाया था। सवाल यह है कि हम अपने आदिकालीन त्योहार को मनाते वक्त भला एक ‘विदेशी आक्रांता’ यानी बाबर के साथ लाई बला (बारूद) को प्रयोग में लाकर इतनी खुशी क्यों मनाते हैं? संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी पिछले दिनों चेतावनी जारी की है कि हमारा पर्यावरण तेजी से बदल रहा है और हालात हाथ से निकलने वाले हैं। इस संकट से जूझने के लिए क्यों न हम अपने प्रेरणादायक त्योहार से ही कुछ प्रेरणा लें और नई, लेकिन सर्व-मंगलकारी परंपराओं की शुरुआत करें जो पर्यावरण अनुकूल भी हों। इसलिए आज देश में हर क्षेत्र में सच्ची समझ का दीप जलाने का समय है। ज्ञान का दीपक नहीं जला तो बाहर भले ही हम करोड़ों दीप जला लें, भीतर अंधकार ही रहेगा। जहां अज्ञान है, वहां दुख है, डर है, चिंता है। इसलिए आज आवश्यकता इसकी है कि हम भ्रष्टाचरण के अंधकार का त्याग करें और जीवन में सत्याचरण के ज्ञान का दीप प्रज्ज्वलित करें।































