ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। ‘हीमोफीलिया ए’ के उपचार में एमिसिजुमैब दवा की कम खुराक भी मानक खुराक के समान ही प्रभावी है और इससे उपचार के खर्च में आधे से भी अधिक की कमी आ सकती है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। ‘हीमोफीलिया ए’ एक आनुवंशिक विकार है जो रक्त का थक्क ा जमाने के लिए आवश्यक एक महत्वपूर्ण प्रोटीन ‘फैक्टर 8’ की कमी के कारण होती है।
भारत में लगभग 27,000 हीमोफीलिया ए रोगी ही आधिकारिक रूप से पंजीकृत हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक संख्या 1.4 लाख से अधिक हो सकती है। आईसीएमआर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोहीमैटोलॉजी (एनआईआईएच) की निदेशक डॉ. मनीषा मडकाइकर ने कहा, ‘मानक एमिसिजुमैब उपचार हमारे अधिकांश मरीजों के लिए अत्यधिक महंगा है, जिनमें से अधिकांश रोगी आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं।’ एमिसिजुमैब एक ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ है जो हीमोफीलिया ए में थक्क ा जमाने वाले एक लुप्त कारक फैक्टर 8 के कार्य की नकल करता है। यह स्वतः स्फूर्त और विशेष रूप से जोड़ों में चोट से संबंधित रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है। यह शोध मुंबई स्थित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हीमोफीलिया उपचार केंद्र आईसीएमआर-एनआईआईएच और केईएम अस्पताल ने किया है। एनआईआईएच की वैज्ञानिक डॉ. रुचा पाटिल और केईएम अस्पताल की प्रोफेसर डॉ. चंद्रकला एस. के नेतृत्व यह अध्ययन किया गया।
अध्ययन के अनुसार, भारत में कम खुराक वाली एमिसिजुमैब की प्रत्यक्ष कीमत सालाना लगभग 10 लाख रुपए है, जो मानक खुराक के लिए आवश्यक 26 लाख रुपए के आधे से भी कम है।































