ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। माइक्रोप्लास्टिक बेहद छोटे आकार के प्लास्टिक के कण हमारे खानपान के तौर तरीकों के जरिए खाने और सांस के जरिए हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं। एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि एक इंसान सालभर में कम से कम 5.2 ग्राम और अधिकतम 260 ग्राम तक प्लास्टिक निगल रहा है।
अध्ययन में यह भी पता चला है कि इंसान एक वर्ष में 11 हजार से लेकर 1.93 लाख माइक्रो प्लास्टिक कण निगल रहा है। इक्रोप्लाटिस्क कणों और इनसे होने वाले नुकसान पर एम्स में आयोजित कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलिया के न्यूकैसल विश्विद्यालय के प्रोफेसर थावा पलानीसामी ने अपने एक अध्ययन के हवाले से यह जानकारी दी है। उन्होंने 100 से अधिक अध्ययनों पर विशेषण करने के बाद एक शोधपत्र में इसे प्रकाशित भी किया है। डॉक्टर थावा ने कहा कि कौन इंसान कितना प्लास्टिक निगल रहा है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस स्थान पर रहता। उदाहरण के लिए वियतनाम जैसे देश जहां समुद्री फूड अधिक खाया जाता है, वहां सबसे अधिक प्लास्टिक निगलते हैं। एम्स की एनाटॉमी विभाग की प्रोफेसर डॉक्टर रीमा दादा ने कहा कि महासागरों में मौजूद प्लास्टिक सी फूड के जरिए इंसान के शरीर तक पहुंचता है। इसके अलावा नल के पानी, बोतलबंद पानी और यहां तक कि बीयर और नमक जैसे आम तौर पर पिये जाने वाले पेय पदार्थों में भी माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं। महासागरों, मिट्टी और यहां तक कि हमारे द्वारा सांस ली जाने वाली हवा में भी ये छोटे प्लास्टिक कण घुस गए हैं। प्लास्टिक की पानी की बोतलों, चाकुओं और त्वचा संबंधी उत्पादों से विभिन्न रसायन हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
मधुमेह से लेकर बांझपन तक का खतरा बढ़ रहा
एम्स की प्रोफेसर रीमा दादा ने कहा कि छोटे आकार के प्लास्टिक कण जब हमारे शरीर में जाते हैं तो हमारी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर करने से लेकर मधुमेह और यहां तक कि बांझपन की वजह भी बनते हैं। इससे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, थाइराइड और कैंसर जैसी बीमारी होने की संभावना भी है।
पानी में सबसे अधिक प्लास्टिक के कण
प्रोफेसर थावा ने बताया कि सबसे अधिक प्लास्टिक कण नल के पानी और बोतल बंद पानी में पाए गए।
उन्होंने कहा इसमें भी बोतल बंद पानी में सबसे अधिक प्लास्टिक कण पाए गए। इसके अलावा शहद, नमक, चीनी और बीयर के जरिए भी लोग प्लास्टिक कण निगलते हैं।