ब्लिट्ज ब्यूरो
यह भगवान राम का ही प्रभाव है कि भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के सूत्र को अपनाता है और यह मान कर चलता है कि आज का समय युद्ध का समय नहीं है।
विजयादशमी अथवा दशहरे का पर्व विगत दिवस ही संपन्न हुआ। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। विजयादशमी के पीछे सबसे लोकप्रिय कथा भारतीय महाकाव्य रामायण से ली गई है। कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम ने राक्षस राजा रावण के साथ भयंकर युद्ध कर उसे पराजित किया था। इस विजय को दशहरा के रूप में भी मनाया जाता है जो बुराई की हार और धर्म की जीत का भी प्रतीक है। इस दिन को दशहरा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह हिंदू कैलेंडर के आश्विन माह की 10वीं तिथि को मनाया जाता है। इस प्रसिद्ध त्योहार का नाम संस्कृत शब्दों – दश (10) और हर (पराजय) से मिलकर बना है। यह ईमानदारी, साहस और नैतिकता का पाठ पढ़ाता है। यह त्योहार लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है और उनके जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने में उनकी मदद करता है। इसके अतिरिक्त, दशहरा नौ दिवसीय नवरात्रि उत्सव का समापन भी है। नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा की जाती है। दशहरे के महत्व का एक और कारण यह भी है कि यह भैंसे (महिषासुर) के विरुद्ध युद्ध में देवी दुर्गा की विजय का प्रतीक है।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में विजयादशमी का पर्व राम चरित्र का संदेश देता है जो सार्वभौमिक नैतिकता, सामाजिक समरसता, न्याय, कर्तव्यनिष्ठा और धैर्य का शाश्वत प्रतीक हैं। राम का जीवन एक संतुलित समाज और सुशासन (‘राम राज्य’) की स्थापना की प्रेरणा देता है जो शक्ति और निरंकुशता के बजाय जन-इच्छा की संप्रभुता पर आधारित हो। उनकी शिक्षाएं व्यक्तिगत विकास, प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने और मानवीय मूल्यों को बनाए रखने में सहायक हैं जिससे एक प्रबुद्ध और समावेशी समाज का निर्माण हो सकता है। यदि गौर से देखा जाए तो वर्तमान समय में राम चरित्र की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है जो नैतिकता और सद्गुणों की पुनर्स्थापना करती है। आज के आधुनिक समाज में जहां नैतिकता क्षीण हो रही है, राम का चरित्र उच्चतम नैतिक मूल्यों का द्योतक है जो समाज में सद्गुणों की पुनर्स्थापना की प्रेरणा देता है।
राम का जीवन धर्म, न्याय और प्रजा के प्रति प्रेम की एक रूपरेखा प्रस्तुत करता है। यह समाज में विविधता और समावेशन को बढ़ावा देने का संदेश भी देता है। यही नहीं; राम राज्य का आदर्श आज भी प्रासंगिक है। यह एक ऐसे प्रबुद्ध और लोकतांत्रिक समाज का प्रतिनिधित्व करता है जो सत्ता की लालसा और निरंकुशता के भय से परे, जन-इच्छा की संप्रभुता से बंधा हो। राम, सीता, लक्ष्मण, भरत और हनुमान जैसे चरित्रों का संदेश एक सार्वभौमिक प्रेम और आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है जो देश और काल की सीमाओं से परे जाकर आज भी प्रासंगिक है। रामकथा केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विश्व के विभिन्न देशों में फैली हुई है जो इसे मानव जाति की एक साझा धरोहर बनाती है और भारत के सांस्कृतिक प्रभाव को दर्शाती है।
वस्तुतः प्रभु राम का चरित्र आज के ही नहीं; आने वाली तमाम पीढ़ियों के राजनीतिक व सामाजिक नेताओं के लिए अनुकरणीय है। राम एक ऐसे निष्ठावान प्रेमी हैं जिन्होंने रावण द्वारा अपहृत अपनी पत्नी सीता के लिए अगम्य समुद्र को भी पार कर लिया। ऐसे मित्र हैं जिन्होंने वानरों, भालुओं और असुरों को भी गले लगाया एवं बिना भेदभाव के शबरी और केवट को भी अपनाया। राम का चरित्र अत्यंत विशाल है जिसमें वे सभी को अपने साथ लेकर चले क्योंकि वे जानते थे कि राम-राज्य की स्थापना सभी को साथ लेकर ही संभव है। इसीलिए यह अवधारणा हमारे जहन में इतनी गहरी पैठ चुकी है कि हम अगर किसी भी जन-कल्याणकारी राज्य की बात करते हैं तो हमें सदैव राम-राज्य ही याद आता है। भगवान राम के चरित्र से हमें एक बात की और भी शिक्षा मिलती है जो यह बताती है कि श्रीराम ने युद्ध के विकल्प को सबसे अंत में स्थान दिया था। यह भगवान राम का ही प्रभाव है कि भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के सूत्र को अपनाता है और यह मान कर चलता है कि आज का समय युद्ध का समय नहीं है। प्रभु राम ने भी रावण से युद्ध के पूर्व शांतिपूर्ण संधि के लिए अनेक दूतों को भेजा था। जब वह नहीं माना तब ही राम ने युद्ध का विकल्प चुना। इसमें कोई संदेह नहीं कि दशहरा और भगवान राम का चरित्र आज भी किसी व्यक्ति, समाज अथवा देश के लिए ऐसी अमूल्य शिक्षा प्रदान करने वाला है जिसका अनुसरण सदैव कल्याणकारक ही है। साथ ही यह इस सिद्धांत को भी प्रतिपादित करता है कि छल, झूठ और अनर्गल प्रचार पर आधारित हर बुराई का हर बार अंत वही होता है जो रावण का हुआ।