ब्लिट्ज ब्यूरो
अमेरिका स्वयं रूस से व्यापार कर रहा है तो भारत ने रूस से वाणिज्यिक संबंध बनाए रख कर पूरी दुनिया को अपनी स्वतंत्र नीतियों एवं देश के हितों को सर्वोपरि रख कर कड़ा संदेश दिया है।
डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारत के खिलाफ आग उगलने के बावजूद भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदने का फैसला किया है। भारत ने साफ शब्दों में कह दिया है कि रूस उसका समय की कसौटी पर परखा हुआ साथी है। भारत लगातार रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा और यह दीर्घकालिक समझौता है जबकि अमेरिका से टैरिफ विवाद और विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था को मृत बताने और भारत के विरुद्ध अजीबो गरीब रवैया अपनाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को काशी से जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि मौजूदा अस्थिरता के दौर में दुनिया की अर्थव्यवस्था आशंकाओं से गुजर रही है। सभी देश अपने हितों पर फोकस कर रहे हैं। भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। इसलिए उसे भी अपने आर्थिक हितों को लेकर सजग रहना होगा। उन्होंने स्वदेशी को देश का भविष्य बताते हुए कहा, हमें स्वदेशी का संकल्प लेना होगा।
पीएम मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को 2,200 करोड़ रुपये की योजनाओं की सौगात देने के लिए आयोजित जनसभा में कहा कि हमें अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एकजुट होकर काम करना होगा। कोई भी राजनीतिक दल हो, नेता हो, उसे संकोच छोड़ देशहित में काम करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने स्वदेशी की जो पक्षधरता की, वह सही तो है ही पर वे स्वदेशी उत्पाद खरीदने की अपील पहले भी कर चुके हैं। अब यह देश की जनता पर निर्भर करता है कि वह कहां तक उनके इस आह्वान का अनुसरण करती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वदेशी के मंत्र को महत्व दिया ही जाना चाहिए लेकिन देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर भी यह उत्तरदायित्व आता है कि वह उच्च गुणवत्ता वाले ऐसे उत्पाद बनाएं कि भारतीय स्वतः ही विदेशी सामानों की ओर रुख करना बंद कर दें। वैसे आज अनेक ऐसे उत्पाद भारत में भी निर्मित हो रहे हैं जो विदेशी उत्पादों की तुलना में बेहतर और सस्ते भी हैं पर अभी भी रास्ता बहुत लंबा है। अब अगर लोग स्वदेशी की भावना से प्रेरित होकर देश में बने उत्पाद खरीदना भी चाहें तो अनेक ऐसे उत्पाद पर्याप्त मात्रा में बनते ही नहीं जिनकी मांग बढ़ती चली जा रही हो। इसका परिणाम यह है कि भारतीय बाजारों में चीनी वस्तुएं अभी भी बढ़ती चली जा रही हैं। चीन अभी भी दुनिया का कारखाना बना हुआ है। जैसे दुनिया के अन्य देश चीनी उत्पादों पर अपनी निर्भरता कम नहीं कर पा रहे हैं, वैसे ही भारत भी इस मामले में अभी सक्षम नहीं हो पाया है। ऐसा क्यों है, इस पर हमारे नीति-नियंताओं को गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा।
वैसे रूस से तेल खरीदने के फैसले पर कायम रहने को लेकर भारत के धुर विरोधी चीन का समर्थन भी भारत को मिला है। चीन ने भारत की विदेश नीति को स्वतंत्र बताते हुए तारीफ की है। सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अमेरिका की तरफ से जुर्माने की धमकी के बावजूद रूस से तेल खरीदने में तत्काल कोई बदलाव नहीं होगा। भारत के इस फैसले पर चीन के एक एक्सपर्ट ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स से कहा कि भारत का यह कदम आर्थिक हितों और स्वतंत्र विदेश नीति के पालन के दो विचारों से उपजा है। भारत पर अमेरिका द्वारा लगाए गए 25 प्रतिशत टैरिफ और रूसी तेल और हथियार खरीद को लेकर घोषित प्रतिबंधों पर मशहूर कारोबारी और टेस्टबेड के चेयरमैन किर्क लुबिमोव ने डोनाल्ड ट्रंप की तीखी आलोचना की है। लुबिमोव ने इसे अमेरिका के लिए रणनीतिक तौर पर आत्मघाती नीति करार दिया है। उन्होंने कहा कि यह कदम चीन और ब्रिक्स को कमजोर करने के अमेरिकी लक्ष्य के खिलाफ भी जा सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका द्वारा भारत को निशाना बनाना चीन विरोधी रणनीति को कमजोर कर सकता है क्योंकि भारत ही एकमात्र प्रमुख देश है जो चीन के विकल्प के रूप में उभर सकता है। ट्रंप के डेड इकॉनोमी वाले बयान पर केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भी संसद में साफ कर दिया है कि “भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। वैश्विक वृद्धि में हमारा 16 प्रतिशत का योगदान है एवं भारत अब वैश्विक विकास का इंजन बन चुका है। भारत का अमेरिका से आयात लगभग 40 प्रतिशत है जबकि निर्यात 90 प्रतिशत के करीब। विश्लेषकों का यह भी मानना है कि भारत पर टैरिफ का उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा। ऐसे में जब अमेरिका और यूरोप स्वयं रूस से व्यापार कर रहे हैं तो भारत ने रूस से वाणिज्यिक संबंध बनाए रख कर पूरी दुनिया को अपनी स्वतंत्र नीतियों एवं देश के हितों को सर्वोपरि रख कर कड़ा संदेश दिया है।