विनोद शील
नई दिल्ली। देश के लोकतंत्र के महापर्व में विधानसभा चुनाव का अलग ही रंग होता है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए को बड़ी जीत मिली है लेकिन इस जीत को सिर्फ आंकड़ों के नजरिए से नहीं देखना चाहिए, इसमें बिहार की उम्मीद और पहचान की कहानी भी पीछे से झांक रही है। ये सिर्फ नेताओं की जीत नहीं है, ये मतदाताओं की सोच समझ का संकेत भी है। नीतीश इस चुनाव के एक बड़े विजेता साबित हुए हैं क्योंकि उनकी सीटें करीब दोगुनी हो गई हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी यानी कि बीजेपी भी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
बिहार में जनादेश की बहार में नीतीश कुमार पर जनता ने एक बार फिर विश्वास जताया है। अपनी सेहत और नेतृत्व पर महागठबंधन की तरफ से उठते सवालों के बावजूद वे जनता की पसंद बने रहने में कामयाब हुए। ‘तेजस्वी का प्रण’ काम नहीं आया। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी बेअसर साबित हुई। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) एक के बाद एक विजय की सीढ़ी के पायदान चढ़ता जा रहा है। लगातार जीतने वाले को जादूगर कहते हैं और यह बात अब साबित हो गई है कि पीएम मोदी का मैजिक आज भी बरकरार है और उन्हें जीत का जादूगर भी कहा जा सकता है।
नीतीश-मोदी की जुगलबंदी
इस जीत की अहमियत समझने के लिए हमें जरा पीछे देखना होगा। 2010 में एनडीए ने रिकॉर्ड 206 सीटें हासिल की थीं। जेडीयू को तब 115 सीटें और बीजेपी को 91 सीटें मिली थीं। अब एनडीए ने विकास और स्थिरता का वादा किया था। 2025 में एक बार फिर से 2010 की गूंज सुनाई दे रही है। मोदी-नीतीश की जुगलबंदी एक बार फिर असरदार साबित हुई।
इस जुगलबंदी की सबसे खास बात यह है कि ये हर मतदाता वर्ग को भाती है। इनका गठबंधन शहर और गांव, दोनों को आकर्षित करता है। इनकी जुगलबंदी बिहार के राजनीतिक सुर को ऐसे साधती है कि ये सबका साथ-सबका विकास की आवाज को और बुलंद कर रही है।
असली विजेता महिला मतदाता
इन नतीजों को अगर गहराई से देखेंगे तो पता चलेगा कि इसमें बड़ी भूमिका महिला मतदाताओं की भी है।
उनका अभूतपूर्व मतदान राजनीति में उनकी भागीदारी की एक नई कहानी सुना रहा है। गांव से लेकर शहर तक बिहार में महिलाएं लंबे समय से हाशिए पर रही हैं, उनकी आवाज़ें अक्सर सियासी शोर में दब जाती हैं लेकिन इस बार महिलाओं ने अपनी आवाज बुलंदी से पहुंचा दी है।
महिला मतदाताओं की इस लहर ने नीतीश लहर में एक अहम भूमिका निभाई। महिलाओं ने सिर्फ बूथों पर ही बल नहीं दिखाया है बल्कि इस आवाज को बुलंद किया है कि वो अपनी स्थिति में बदलाव चाहती हैं। महिलाओं ने बता दिया है कि उन्होंने सिर्फ उम्मीदवारों के लिए नहीं बल्कि सड़क, बिजली, पानी और महिला सुरक्षा जैसी चीजों के लिए वोट किया है। एनडीए ने महिला केंद्रित नीतियां बनाईं, शराबबंदी और जमीनी स्तर पर महिलाओं की भागीदारी पर जोर दिया। इस जनादेश में ये बातें दिख रही हैं। साफ दिख रहा है कि सभी जातियों और क्षेत्रों की महिला मतदाताओं ने नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में भारी मतदान किया है।
बिहार में नई राजनीति की शुरुआत
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे एनडीए की जीत से कहीं आगे तक फैले हैं। ये नतीजे बिहार में एक नई सियासत की शुरुआत है। यह बड़ी जीत न केवल एनडीए के प्रति निष्ठा का प्रतीक है, बल्कि बदलाव के बीच निरंतरता की मतदाताओं की चाहत को भी दर्शाती है। एक विरोधाभास जो मौजूदा भारतीय राजनीति को परिभाषित करता है।
महागठबंधन को बड़ा नुकसान हुआ है, लिहाजा अब विश्लेषण विपक्षी गठबंधनों के सामने आने वाली चुनौतियों का भी होगा। अकेली बीजेपी या जेडीयू पूरे महागठबंधन पर भारी है। पहले नंबर की पार्टी आरजेडी तीसरे नंबर पर खिसक गई है। जनादेश से साफ है कि महागठबंधन के वादे और मतदाताओं की आकांक्षा मेल नहीं खाते। कांग्रेस तो कहीं खड़ी भी नहीं हो रही है।
जहां एनडीए का प्रचार अभियान बिहार के बेहतर भविष्य की उम्मीद जगा रहा था, वहीं महागठबंधन ने वोट चोरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आर्थिक मंदी के नारे देकर निराशा और नकारात्मक प्रचार अभियान चलाया।
कुल मिलाकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 भारतीय लोकतंत्र की नब्ज को दिखाते हैं जिसमें जहां रणनीति, पहचान और उम्मीदों का असर चुनावी परिणामों को आकार देता है। एनडीए की व्यापक जीत केवल एक चुनावी जनादेश नहीं है; यह मतदाताओं की प्रगति, सहभागिता और उनकी जिंदगी की सचाइयों को दिखाता है।
अब एनडीए के सामने चुनौती होगी कि वो मतदाताओं की उम्मीदों को पूरा करे, खासकर महिलाओं और कमजोर वर्गों के लोगों की सुने। बिहार चुनाव के नतीजे हमें याद दिलाते रहेंगे कि लोकतंत्र के मूल में उम्मीद, बदलाव और बेहतर कल की अनवरत खोज जारी है।
– एनडीए की व्यापक जीत केवल एक चुनावी जनादेश नहीं है; यह मतदाताओं की प्रगति, सहभागिता और उनकी जिंदगी की सचाइयों को दिखाता है।
– अब एनडीए के समक्ष मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती































