ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कर्मचारियों की नियुक्ति के संबंध में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला दिया है जिसका उल्लेख न्याय दृष्टांत के रूप में भविष्य में भी किया जाता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि बारहमासी प्रकृति के काम के लिए किसी भी स्थिति में अस्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए। यहां अस्थायी कर्मचारियों से तात्पर्य सभी प्रकार के ऐसे कर्मचारी जो प्रत्यक्ष रूप से सरकार के लिए या फिर किसी एजेंसी के माध्यम से सरकार के लिए नियमित रूप से कम कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग
दैनिक वेतन भोगी मामला
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग के पांच चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और एक ड्राइवर द्वारा प्रस्तुत किया गया। उनकी याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की। कर्मचारियों ने बताया कि उन सब की नियुक्ति 1992 से लेकर 1998 तक हुई। सबको दैनिक वेतन भोगी के रूप में नियुक्त किया गया और बारहमासी प्रकृति के नियमित कम लिए गए। उन्होंने जब भी नियमितीकरण की मांग की, तो कभी वित्तीय परेशानियों और कभी नवीन पदों के सृजन पर प्रतिबंध की बात बात कर, उनकी मांग को पूरा नहीं किया गया।
जग्गो बनाम भारत संघ और श्रीपाल और अन्य बनाम नगर निगम, गाजियाबाद
सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने जग्गो बनाम भारत संघ और श्रीपाल और अन्य बनाम नगर निगम, गाजियाबाद, न्याय दृष्टांत का उल्लेख करते हुए फिर से स्पष्ट किया कि स्थाई प्रकृति के काम के लिए आउटसोर्स कर्मचारी की नियुक्ति नहीं की जा सकती है। आउटसोर्स, संविदा, तदर्थ अथवा अतिथि इत्यादि के माध्यम से कर्मचारियों का शोषण नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यदि शासन ने किसी नियमित प्रकृति के कार्य का सृजन किया है तो उसके लिए पद का सृजन करना भी सरकार की जिम्मेदारी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि, सरकार कोई बाजार का दुकानदार नहीं है। वह एक संवैधानिक संस्था है और उसे सर्वोच्च मानक स्थापित करना होता है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ड्राइवर, सिक्योरिटी गार्ड, चपरासी, माली इत्यादि पदों पर नियुक्ति के लिए नवीन पदों का सृजन करें। नियमित पदों पर किसी भी स्थिति में अस्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए।