ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर न करने वाला पक्ष मध्यस्थता कार्यवाही में भाग नहीं ले सकता, क्योंकि केवल हस्ताक्षर करने वाले पक्ष ही मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित रहने के हकदार हैं। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला रद कर दिया, जिसमें मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर न करने वालों को अपने वकीलों की उपस्थिति में मध्यस्थता कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति दी गई थी।
न्यायालय ने इस मुद्दे पर विचार किया, क्या मध्यस्थता कार्यवाही के लिए किसी समझौते पर हस्ताक्षर न करने वाले पक्ष के लिए ऐसी मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित रहना स्वीकार्य है?
नकारात्मक उत्तर देते हुए जस्टिस चंदुरकर द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया: “एक बार जब यह स्पष्ट हो जाता है कि मध्यस्थता निर्णय उक्त समझौता ज्ञापन/एफएसडी के गैर-पक्षकारों को बाध्य नहीं करेगा, क्योंकि ऐसे पक्ष उक्त दस्तावेजों पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है तो समझौता ज्ञापन/एफएसडी के गैर-हस्ताक्षरकर्ता को एकमात्र मध्यस्थ के समक्ष कार्यवाही में उपस्थित रहने की अनुमति देने का कोई भी कानूनी आधार नहीं होगा। जब मध्यस्थता कार्यवाही केवल मध्यस्थता समझौते के पक्षों के बीच ही हो सकती है। अधिनियम की धारा 35 ऐसे समझौते के गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं पर पारित होने वाले मध्यस्थता निर्णय को बाध्यकारी नहीं बनाती है तो हमें अधिनियम द्वारा प्रदत्त कोई भी कानूनी अधिकार नहीं मिलता, जो समझौते के गैर-पक्षकार को समझौते के हस्ताक्षरकर्ताओं के बीच मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित रहने में सक्षम बनाता हो।”
संक्षेप में मामला
अपीलकर्ताओं – पवन गुप्ता (पीजी) और कमल गुप्ता (केजी) के बीच मौखिक पारिवारिक समझौता (2015) बाद में समझौता ज्ञापन/पारिवारिक समझौता विलेख (2019) में औपचारिक रूप से दर्ज किया गया, जिसमें प्रतिवादी – राहुल गुप्ता को शामिल नहीं किया गया। समझौता ज्ञापन के मध्यस्थता खंड के अंतर्गत एक मध्यस्थता खंड लागू किया गया, जिसमें प्रतिवादी – राहुल गुप्ता ने समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता न होने के बावजूद हस्तक्षेप की मांग की।
हाईकोर्ट मध्यस्थता कार्यवाही में गैर-हस्ताक्षरकर्ता की उपस्थिति की अनुमति देने वाला हस्तक्षेप आवेदन स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं था, लेकिन बाद में उसे रेफरल चरण के बाद यानी मध्यस्थता की नियुक्ति के बाद मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित होने की अनुमति दी।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट के निर्णय को रद्द करते हुए जस्टिस चंदुरकर द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि कार्यवाही में गैर-हस्ताक्षरकर्ता के उपस्थित होने के बावजूद, पारित निर्णय उन पर बाध्यकारी नहीं होगा। उनके पास किसी निर्णय के प्रवर्तन को चुनौती देने के लिए एकमात्र उपाय मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 36 के तहत उपलब्ध है।