दीपक द्विवेदी
केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव की ओर एक और कदम बढ़ा दिया है। केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को मंगलवार 17 दिसंबर को संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पेश कर दिए। इसे लेकर सभापति ने सदन में वोटिंग कराई जिसमें विधेयक को पेश किए जाने के पक्ष में 269 वोट जबकि विरोध में 198 मत पड़े। उल्लेखनीय है कि एक देश-एक चुनाव को लागू करने संबंधी विधेयकों को विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक ने मंजूरी दे दी थी। सरकार इन विधेयकों पर व्यापक विचार- विमर्श करने की इच्छुक है। अब इन पर संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी में विचार-विमर्श होगा। सरकार विभिन्न विधानसभाओं के अध्यक्षों से परामर्श करना चाहती है। इसमें विधानसभाओं को भंग करने और एक साथ चुनाव शब्द को सम्मिलित करने के लिए अनुच्छेद 327 में संशोधन करने से संबंधित प्रावधान भी शामिल हैं। सिफारिश में कहा गया है कि विधेयक को कम से कम 50 प्रतशत राज्यों से अनुमोदित करने की आवश्यकता नहीं होगी। एक अन्य केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 भी पेश किया गया जिसका उद्देश्य केंद्र शासित प्रदेशों व पुडुचेरी, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और जम्मू-कश्मीर से सबंधित तीन कानूनों के प्रावधानों में संशोधन करना है।
इसके पूर्व इस बिल का विपक्षी दलों ने भारी विरोध किया। विपक्षी दलों का कहना है कि यह ‘तानाशाही’ की ओर कदम है और इस बिल को जेपीसी के पास भेजा जाए। इस पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा कि जब बिल मंत्रिमंडल में चर्चा के लिए आया था तब प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसे जेपीसी को भेजने की मंशा जताई थी। जेपीसी का गठन सदन में संख्याबल के आधार पर किया जाता है। सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन बिल को सदन में पेश करने के बाद जेपीसी के पास भेजा है। जेपीसी का गठन विभिन्न दलों के सांसदों की संख्या के मुताबिक आनुपातिक आधार पर किया जाएगा। सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा को समिति की अध्यक्षता मिलेगी और इसके कई सदस्य इसमें शामिल होंगे। संसद का मौजूदा सत्र 20 दिसंबर तक चलना है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि ये वर्तमान सत्र में तो पास नहीं हो पाएंगे। जेपीसी से मंजूरी के बाद अगर बिल संसद में बिना परिवर्तन पास हो गए तो इस पर अमल 2034 से ही संभव हो पाएगा क्योंकि एक साथ चुनाव कराने के लिए बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने के लिए समय चाहिए होगा।
भारत में एक साथ ही सारे चुनाव की बात कोई नई नहीं है क्योंकि स्वतंत्रता मिलने के बाद के वर्षों में भारत में एक ही चुनाव होता था। अर्थात सभी राज्यों के विधानसभा व लोकसभा चुनाव एक साथ ही हुआ करते थे। मोदी, प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही अनेक अवसरों पर देश भर में एक साथ चुनाव कराने की बात कहते रहे हैं ताकि संसाधनों व धन का अपव्यय रोका जा सके। अभी साल में कई दफा देश में कहीं-न-कहीं चुनाव होते रहते हैं जिनमें चुनाव आयोग व सुरक्षा तंत्र व्यस्त रहता है। एक राष्ट्र -एक चुनाव से राजकोष में बचत होगी। आचार संहिताओं के चलते विकास परियोजनाओं में रुकावटें नहीं आएंगी और सुरक्षा तंत्र को भी आसानी रहेगी। चुनाव के दौरान काले धन के उपयोग के आरोपों से निपटने में भी जांच एजेंसियों को सुविधा होगी। वैसे एक राष्ट्र -एक चुनाव का विरोध करने वालों का कहना है कि देश भर में जितने संसाधनों की जरूरत होगी, उसके लिए सरकार को बजट में वृद्धि करनी होगी। देश के तमाम क्षेत्रीय व छोटे दलों को एक साथ चुनाव से भारी नुकसान हो सकता है। हम सभी जानते हैं कि विधानसभा व लोकसभा चुनाव के मुद्दे बहुत भिन्न-भिन्न होते हैं। अगर देश भर में एक ही चुनाव होंगे तो इनका स्वरूप भी निश्चित रूप से बदलेगा। अब इसमें कोई दोराय नहीं कि एक देश-एक चुनाव संबंधी विधेयक को कैबिनेट की स्वीकृति यह भी बता रही है कि मोदी सरकार अपने वायदों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस विधेयक को मंजूरी देकर मोदी सरकार ने यह भी रेखांकित किया है कि यह धारणा सही नहीं कि लोकसभा चुनाव में बहुमत से दूर रहने के कारण वह अपने इस एजेंडे का परित्याग कर सकती है। उसे ऐसा करने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं क्योंकि सहयोगी दल जदयू और तेलुगु देशम भी एक साथ चुनाव के पक्षधर हैं। आंध्र प्रदेश तथा ओडिशा में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव होते रहे हैं इसलिए इसकी पूरी संभावना है कि बीजू जनता दल भी एक साथ चुनाव का समर्थन करे। इस विधेयक को जेपीसी के पास भेजा जाना उचित ही है।
अब विपक्षी दल भी अपनी राय दे सकेंगे। हालांकि एक साथ चुनाव पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में जो समिति गठित की गई थी उसने भी विपक्षी दलों के सुझाव मांगे थे। विपक्ष को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक साथ चुनाव पर समुचित ढंग से विचार करना चाहिए। उसे इस तरह के तर्कों से दूर रहना चाहिए कि एक साथ चुनाव कराना लोकतंत्र और संविधान की भावना के अनुकूल नहीं होगा। वैसे मोदी सरकार के इस प्रयास के समर्थन में देश के 62 दलों में से 32 एक साथ चुनाव के पक्ष में हैं। 15 ने विरोध किया है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह आम सहमति बनाने का भरपूर प्रयास करे। ऐसा होने पर निश्चित ही कोई सर्वमान्य हल निकल आएगा जो देश के लिए भी हितकारी साबित होगा। इससे जहां आर्थिक बोझ कम होगा वहीं विकास के कार्य भी बार-बार चुनाव की प्रक्रिया से बाधित नहीं होंगे।