ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। स्मृति मंधाना भारतीय महिला क्रिकेट टीम की रीढ़ की हड्डी हैं। उनके लिए यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। इस दौरान उन्हें ही नहीं बल्कि उनके पेरेंट्स को भी कई तरह की मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जानिए स्मृति के यहां तक पहुंचने का क्या सफर रहा और इसमें उनके पेरेंट्स का कितना योगदान रहा।
भारत में क्रिकेट एक ऐसा गेम है जिसे लोग बहुत ज्यादा पसंद करते हैं और अब तो लड़कियां भी क्रिकेट खेलने लगी हैं। हालांकि, लड़कियों के क्रिकेट खेलने को समाज ने अभी भी स्वीकार नहीं किया है। लोगों का मानना है कि क्रिकेट का गेम लड़कियों के लिए नहीं होता है लेकिन हमारे देश की कुछ प्लेयर्स ऐसी हैं जिन्होंने इस बात को गलत साबित किया है। इस लिस्ट में सबसे पहला नाम आता है स्मृति मंधाना का।
एक इंटरव्यू में स्मृति ने बताया था कि लोग उनके पेरेंट्स को ताने मारते थे कि अगर वो क्रिकेट खेलती रही, तो फिर उससे कोई शादी नहीं करेगा।
पूरा किया पिता का सपना
‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सेट पर गेस्ट के रूप में पहुंची स्मृति से अमिताभ बच्चन ने उनसे अब तक के सफर के बारे में पूछा था। स्मृति ने कहा कि उनके पिता और भाई दोनों ही बचपन से ही क्रिकेट में थे। उनके पिता का सपना था कि उनके दोनों बच्चे क्रिकेट खेलें या कम से कम एक तो इंडिया के लिए खेले।
मां के पेट से ही सीखा है क्रिकेट
स्मृति ने कहा कि वो शायद अपनी मां के पेट में ही क्रिकेट की प्रैक्टिस किया करती थीं। उन्होंने अपने पिता को क्रिकेट खेलते हुए देखा है। वो सीधे हाथ से खेलती हैं लेकिन उनका भाई उल्टे हाथ से खेलता है और उन्होंने अपने भाई से उल्टे हाथ से खेलने की ट्रेनिंग ली है। वो नेट के पीछे खड़े होकर उसे देखती थीं और यहीं से उन्होंने क्रिकेट खेलने की शुरुआत की।
लड़कों के साथ करनी पड़ती थी प्रैक्टिस
स्मृति ने बताया कि जब उन्होंने वुमेंस क्रिकेट खेलना शुरू किया था, तब उन्हें ज्यादातर लड़कों के साथ ही प्रैक्टिस करनी पड़ती थी क्योंकि उस समय क्रिकेट ज्यादा लड़कियां नहीं खेलती थीं।
वो अपनी इस सफलता का श्रेय अपने पेरेंट्स को देती हैं। किसी भी परेशानी को उन्होंने स्मृति पर हावी होने नहीं दिया और उन्हें पूरी आजादी दी।
पेरेंट्स की सोच
इस बात पर अमिताभ बच्चन ने भी स्मृति के पेरेंट्स की तारीफ की और कहा कि ये आधुनिक विचार हैं जहां मां-बाप अपनी बेटियों को बेटों से कम नहीं आंकते हैं और उन्हें भी उड़ने के लिए एक समान आकाश और अवसर देते हैं। महिलाओं को भी पुरुषों के जितने ही अवसर मिलने चाहिए।
मां-बाप का सपना
स्मृति के माता-पिता की तरह कई पेरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे भी उनके अधूरे सपने को पूरा करें। हालांकि, हर बच्चे की स्मृति की तरह अपने पेरेंट्स की रुचि में दिलचस्पी नहीं होती है। वो कुछ अलग करना चाहता है और इस स्थिति में बच्चे के साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए।