नेहा दीक्षित
अमेरिका में आज तक एक भी महिला राष्ट्रपति नहीं बनी। यह तथ्य वैश्विक स्तर पर अमेरिका की प्रगतिशील और लोकतांत्रिक छवि के विपरीत प्रतीत होता है। हालांकि अमेरिका ने महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने का अधिकार दिया है और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा भी दिया है, फिर भी राष्ट्रपति के उच्चतम पद पर एक महिला का अभाव यह संकेत करता है कि लैंगिक समानता की दिशा में अभी भी कई बाधाएं बनी हुई हैं। इसके पीछे का एक प्रमुख कारण पितृसत्तात्मक मानसिकता है, जो अमेरिकी समाज और राजनीति में गहरे तक समाई हुई है।
इस मानसिकता के कारण महिलाओं के नेतृत्व को लेकर अक्सर संदेह और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण सामने आते हैं। यह समाज के उन वर्गों में भी देखा जाता है जो खुले तौर पर लैंगिक समानता का समर्थन करते हैं, परंतु जब राष्ट्रपति पद जैसी उच्चतम जिम्मेदारियों की बात आती है तो पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रह उभरने लगते हैं।
महिला नेतृत्व के बारे में मौजूद इस मानसिकता का प्रभाव न केवल चुनावी प्रक्रियाओं पर पड़ता है, बल्कि इसे मीडिया, संस्कृति और जनमत में भी देखा जा सकता है। परिणामस्वरूप, योग्य और प्रभावशाली महिलाएं जो राष्ट्रपति पद के लिए तैयार होती हैं, उन्हें समाज और मीडिया की ओर से कठोर प्रश्नों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। अमेरिकी राजनीति में महिला राष्ट्रपति की अनुपस्थिति का यह मुद्दा न केवल पितृसत्तात्मक मानसिकता का परिणाम है, बल्कि यह उस संरचनात्मक और संस्थागत प्रणाली को भी दर्शाता है, जो महिलाओं को उच्चतम पदों पर पहुंचने में बाधाएं उत्पन्न करती है।
अमेरिका – भारत में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति
अमेरिका में महिलाओं ने 20वीं सदी की शुरुआत से ही राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया। 1920 में महिलाओं को मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ, जो एक बड़ी सफलता थी। इसके बावजूद, आज तक महिला को राष्ट्रपति बनने का मौका नहीं मिला है।
2016 में हिलेरी क्लिंटन ने अपनी पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनकर एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया, लेकिन अंततः उन्हें चुनाव हारना पड़ा। इसके बाद, 2020 में कमला हैरिस ने उप-राष्ट्रपति बनकर इतिहास रचा, परन्तु अभी भी अमेरिका को एक महिला राष्ट्रपति देखना बाकी है।
अमेरिकी कांग्रेस में महिलाओं की भागीदारी 2023 के अनुसार केवल 28% है, जिसमें सीनेट में 25% और प्रतिनिधि सभा में 29% महिलाएं शामिल हैं। हालांकि ये आंकड़े पिछले दशकों में सुधरे हैं, फिर भी वे पूरी समानता से काफी दूर हैं। यदि अन्य देशों की बात करें तो रवांडा में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 60% से अधिक है और स्वीडन तथा फिनलैंड जैसे देशों में भी यह प्रतिशत 40% से ऊपर है। इन देशों की तुलना में अमेरिका का यह आंकड़ा निराशाजनक है।
भारत में महिलाओं का राजनीतिक सफर स्वतंत्रता के बाद तेजी से बढ़ा। 1966 में इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रगति का प्रतीक थीं। इसके बाद 2007 में प्रतिभा पाटिल भारत की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं। इन उपलब्धियों ने भारत में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति को एक नई दिशा दी।
2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय संसद में महिलाओं की भागीदारी लगभग 14% है। यह आंकड़ा अमेरिका के मुकाबले कम है, लेकिन भारत ने इस दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठाए हैं। भारतीय पंचायत प्रणाली में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण दिया गया है, जो कई राज्यों में 50% तक बढ़ा दिया गया है। इस आरक्षण नीति के चलते ग्रामीण स्तर पर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि हुई है और इसके परिणामस्वरूप वे अब निर्णायक भूमिकाओं में आने लगी हैं।
अमेरिका और भारत दोनों ही देशों में पितृसत्तात्मक मानसिकता का प्रभाव महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को प्रभावित करता है, लेकिन इसकी गहराई और प्रभाव में अंतर है। अमेरिका में, महिलाओं को शीर्ष राजनीतिक पदों पर पहुंचने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई मामलों में यह देखा गया है कि अमेरिकी समाज में महिलाओं की नेतृत्व क्षमता पर संदेह किया जाता है और उन्हें ‘कमजोर’ या ‘भावनात्मक’ समझा जाता है।
अमेरिकी राजनीति में, पार्टी-स्तर पर भी महिलाओं के प्रति एक पूर्वाग्रह देखा जाता है। इस पूर्वाग्रह के कारण महिलाओं को पार्टी के भीतर ही सहयोग प्राप्त करने में कठिनाई होती है। इसके अलावा, आर्थिक असमानता भी एक बड़ा कारण है, क्योंकि चुनाव अभियान और प्रचार के लिए पर्याप्त धनराशि जुटाने में महिलाएं अक्सर असफल होती हैं।
भारत में महिलाओं के प्रति पितृसत्तात्मक मानसिकता का प्रभाव गहरा है, लेकिन यहां महिलाओं के लिए आरक्षण और सामाजिक सुधार के प्रयासों ने उनकी राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा दिया है। महिलाओं को पंचायत स्तर पर आरक्षण देने के बाद ग्रामीण भारत में महिलाओं की राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि हुई है। कई राज्यों में महिलाएं सरपंच और अन्य पंचायत पदों पर कार्यरत हैं, जिससे उनके नेतृत्व क्षमता को पहचान मिलने लगी है।
अमेरिका-भारत की स्थिति
अमेरिका और भारत दोनों में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति पर ध्यान दें तो यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों में महिला नेताओं के लिए कठिनाइयां हैं, लेकिन दोनों का परिप्रेक्ष्य और स्तर अलग है।
पहलू
अमेरिका -भारत राष्ट्रपति पद पर महिला अभी तक नहीं प्रतिभा पाटिल (2007-2012)
प्रधानमंत्री पद पर महिला नहीं इंदिरा गांधी (1966-1977, 1980-1984)
संसद में महिलाओं की भागीदारी 28% 14%
प्रमुखता प्राप्त महिला नेता हिलेरी क्लिंटन, कमला हैरिस इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, सुषमा स्वराज
यह तुलनात्मक अध्ययन दर्शाता है कि भारत जैसे विकासशील देश ने महिलाओं को शीर्ष राजनीतिक पदों तक पहुंचाने में अमेरिका से अधिक प्रयास किए हैं।