ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई । तय समय से लगभग चार साल बाद होने जा रहे बीएमसी चुनाव पर सभी राजनीतिक पार्टियों की निगाहें लगी हुई है। 74 हजार करोड़ रुपए के बजट वाली बीएमसी की सत्ता हथियाने के लिए राजनीतिक दलों ने चुनावी तैयारी तेज कर दी है। 227 सीटों वाली बीएमसी में सत्ता के लिए 114 सीटों की जरूरत होगी। मतदान 2 दिसंबर को होगा और 3 दिसंबर को परिणाम घोषित कर दिया जाएगा।
आरक्षण लॉटरी निकलने के बाद सभी दलों ने चुनाव के लिए मोर्चाबंदी तेज कर दी है। बीएमसी चुनाव राज्य में सत्ताधारी बीजेपी और लगभग ढाई दशक तक बीएमसी की सत्ता में रही उद्धव सेना के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। सत्ता में वापसी के लिए जहां उद्धव ठाकरे अपने चचेरे भाई राज ठाकरे से हाथ मिलाने को तैयार है, वहीं बीजेपी बीएमसी की सत्ता हथियाने के लिए पूरी तैयारी में जुटी है। बीएमसी चुनाव कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव की घोषणा से पहले ही राजनीतिक उठापटक शुरू हो गई है। महाविकास आघाड़ी में जहां फूट पड़ गई है, वहीं बीजेपी और शिंदे सेना के बीच भी दूरी बढ़ रही है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी
के साथ चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस ने मनसे का हवाला देते हुए बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने का एलान कर दिया। मराठी वोटों में विभाजन रोकने के लिए उद्धव ठाकरे किसी कीमत पर राज ठाकरे से
गठबंधन करना चाहते है। वहीं शिंदे सेना ने हालांकि अभी तक अकेले चुनाव लड़ने का एलान नहीं किया है, लेकिन जिस तरह से दोनों दलों के बीच खींचतान चल रही है, वह अच्छा संकेत नहीं है।
महाराष्ट्र की सत्ता में साझीदार रहने के बावजूद वर्ष 2017 के बीएमसी चुनाव में बीजेपी और शिवसेना (अविभाजित) ने अकेले अकेले चुनाव लड़ा था। तब शिवसेना को 84 और बीजेपी को 82 सीटें मिली थी। कहा जाता है कि तब तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए बीएमसी में शिवसेना को सत्ता में वापसी करने दी। जबकि उस दौरान मनसे के 7 में से 6 नगरसेवक बीजेपी में आने को तैयार थे। शिवसेना (अविभाजित) ने तब मनसे के छह नगरसेवकों को तोड़कर अपने साथ कर लिया था और पांच साल (2017-2022) बीएमसी पर राज किया था।
दोनों एनसीपी की भूमिका रही है सीमित
बीएमसी चुनाव में एनसीपी कभी बहुत मजबूत नहीं रही है। वर्ष 2017 के बीएमसी चुनाव में एनसीपी (अविभाजित) ने 9 सीटों पर जीत हासिल की थी। वर्ष 2023 में विभाजन के बाद अजित पवार के साथ 3 पूर्व नगरसेवक है, जबकि शरद पवार गुट के साथ अभी भी 6 पूर्व नगरसेवक बने हुए हैं। बीएमसी चुनाव में एनसीपी की भूमिका सीमित रही है, इस चुनाव में भी दोनों एनसीपी के सहयोगी की ही भूमिका में रहने की उम्मीद है।
एमआईएम और सपा बिगाड़ सकती है कांग्रेस, उद्धव सेना का गणित
मुंबई में अल्पसंख्यक वोटों की भूमिका जीत-हार में काफी निर्णायक होती है। समाजवादी पार्टी और एमआईएम दोनों मुस्लिम वोटों को अपना वोट मानते हैं। सपा पहले ही अकेले लड़ने का एलान कर चुकी है। वहीं, एमआईएम ने अभी तक किसी से गठबंधन नहीं किया हैं। ऐसे में बीजेपी नीत महायुति को हराने की योजना बना रही उद्धव सेना के लिए मुस्लिम वोट पाना मुश्किल माना जा रहा है। यही हाल कांग्रेस के साथ भी हो सकता है।
कांग्रेस और शिंदे गुट की भूमिका होगी अहम
बीएमसी चुनाव में भले ही शिंदे गुट और कांग्रेस को सत्ता का दावेदार नहीं माना जा रहा है, लेकिन चुनाव के बाद सत्ता गठन में इनकी भूमिका अहम होगी। शिंदे गुट के पास कुल 182 पूर्व नगरसेवक हैं। इनमें वर्ष 2017 में चुनाव जीते पूर्व नगरसेवकों की संख्या 60 है। यह नगरसेवक बीएमसी चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। बीजेपी का दावा है कि वह बीएमसी चुनाव में 100 सीटों कब्जा करेगी। यदि बीजेपी 2017 की तरह 80-85 सीटें जीतती है, तब शिंदे गुट के समर्थन की आवश्यकता पड़ेगी। वहीं कांग्रेस ने बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने का एलान कर अपना पत्ता अपने पास रखा है। यदि उद्धव गुट सत्ता में आने से कुछ पीछे रहता है, तो कांग्रेस का सहयोग इनके लिए महत्वपूर्ण होगा। वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 30 सीटों पर कब्जा किया। कांग्रेस यदि अपना पुराना प्रदर्शन दोहराने में सफल रही, तो बीएमसी की सत्ता गठन में उसकी भूमिका निर्णायक होगी।
वहीं सपा, एमआईएम की भूमिका सीमित होगी। 2022 के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में काफी बदलाव आ गया है। 2022 में शिवसेना के विभाजन और 2023 में एनसीपी के विभाजन के बाद बदले राजनीतिक समीकरण में यह पहला बीएमसी चुनाव होने जा रहा है।































