ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति का घटनास्थल पर मौजूद होना अपने आप में यह साबित नहीं करता कि वह गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि जब तक यह साबित न हो कि उसने उस भीड़ के मकसद को समझा और उस काम में साथ दिया, तब तक उसे दोषी नहीं माना जाएगा।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए बिहार के गांव में 1988 के एक मामले में 12 दोषियों को बरी कर दिया, जिन पर हत्या और अवैध सभा के आरोप थे। पीठ ने कहा कि जब बहुत अधिक लोगों के खिलाफ आरोप लगे हों, तो अदालतों को साक्ष्यों की गहराई से जांच करनी चाहिए, खासकर जब दस्तावेजों में प्रमाण अस्पष्ट हों।
बेंच ने कहा, भारतीय दंड संहिता की धारा 149 में कहा गया है कि अगर अवैध सभा (पांच या अधिक लोग) का कोई सदस्य उस सभा के साझा उद्देश्य को पूरा करने के लिए कोई अपराध करता है या उसे यह ज्ञात हो कि ऐसा अपराध संभव था, तो उस समय सभा में मौजूद हर सदस्य दोषी माना जाएगा।
पीठ ने कहा, किसी व्यक्ति का अवैध सभा में मौजूद होना उसे उसका सदस्य नहीं बनाता, जब तक यह सिद्ध न हो कि उसने सभा के साझा उद्देश्य को स्वीकार या समर्थन किया हो। बिना किसी विशेष भूमिका वाले एक साधारण दर्शक को धारा 149 के दायरे में नहीं लाया जा सकता।
शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष को सीधे या किसी अन्य तरीके से यह साबित करना होगा कि आरोपी ने उस गैरकानूनी सभा के साथ मिलकर उसका मकसद पूरा करने में हिस्सा लिया था।