ब्लिट्ज ब्यूरो
पणजी। फिल्म निर्माताओं को समाज में महिलाओं की स्थिति को दर्शाने और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के संवाद सत्र के दौरान फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली, निर्माता और अभिनेत्री सुहासिनी मणिरत्नम, खुशबू सुंदर, भूमि पेडणेकर ने जोर देकर यह बात कही। कास्टिंग काउच के मसले पर वक्ताओं ने कहा कि इस मुद्दे को संवेदनशीलता के साथ हल किया जाना चाहिए। अपनी आवाज उठाते हुए दृढ़ता से ‘नो’ कहना सीखना होगा। इस मौके पर इम्तियाज अली समेत सभी वक्ताओं को सम्मानित किया गया। वक्ताओं ने भारतीय सिने जगत को महिलाओं को सम्मान देने वाला बताया।
इम्तियाज की फिल्मों में महिला सशक्तिकरण सर्वोच्च : वाणी टिक्कू
वाणी त्रिपाठी टिक्कू ने संवाद सत्र का संचालन करते हुए कहा, इम्तियाज अली को लेकर वह कह सकती हैं कि उनकी फिल्मी यात्रा में उनकी सभी फिल्मों में महिला सशक्तिकरण सर्वोच्चता के साथ प्रदर्शित होता है। ‘जब वी मेट’ से लेकर ‘अमर सिंह चमकीला’ तक उनकी फिल्मों की महिलाएं अपने साहस और कार्यप्रणाली से अलग छाप छोड़ने वाली रही हैं। अभिनेत्री खुशबू सुंदर ने कहा, ‘देश प्रेमी’ फिल्म में जब भी हेमा मालिनी सेट पर आती थीं, तो अमिताभ बच्चन से लेकर मनमोहन देसाई, केतन देसाई समेत सभी वरिष्ठ खड़े होकर उनका अभिवादन करते थे। यह बताता है कि सिनेमा में महिलाओं का क्या स्थान है। भूमि पेडणेकर ने कहा कि उनके लिए भारतीय सिनेमा घर जैसा है।
क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टुमॉरो
भारत की प्रतिभाओं को निखारने का चौथा चरण क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टुमॉरी (सीएमओटी) का फिल्म महोत्सव में शानदार आगाज हुआ। युवा फिल्म निर्माताओं की अगली पीढ़ी को पोषित करने और सशक्त बनाने की दिशा में यह इफ्फी की सार्थक पहल है। इसका मकसद मीडिया और मनोरंजन उद्योग में उभरती प्रतिभाओं के लिए देश में प्लेटफार्म उपलब्ध कराना और उन्हें अवसर देना है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव, संजय जाजू ने सीएमओटी के चौथे संस्करण को लॉन्च किया। फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले कई निर्देशक और अभिनेताओं पर कास्टिंग काउच के आरोप लग चुके हैं। कुछ समय पहले मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में भी ऐसा ही एक मामला सुर्खियों में था।
बॉलीवुड निर्देशर इम्तियाज अली ने कहा कि इस पर उनकी राय स्पष्ट है कि जो औरत, जो लड़कियां नहीं बोल सकतीं हैं, उसके प्रति ऐसे व्यवहार की कोशिश बढ़ती है। इसलिए आवाज उठाकर सख्ती से ‘नो’ कहना चाहिए। सुहासिनी मणिरत्नम ने कहा कि अपने 43 साल के अनुभव से वह कह सकती हैं कि महिलाओं को अपना सम्मान खुद ही सुनिश्चित करना होगा।