ब्लिट्ज ब्यूरो
इसमें कोई शक नहीं कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई, पेयजल एवं ऊर्जा उपलब्ध कराकर जल संकट को दूर करने की अपार संभावनाएं हैं। यद्यपि इस परियोजना को महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है; इसलिए इन चिंताओं को परियोजना के लाभों के साथ संतुलित करना भी इस परियोजना के सफल कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण होगा।
25 दिसंबर, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के खजुराहो में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (केबीएलपी) की आधारशिला रखी। यह भारत की राष्ट्रीय नदी जोड़ो नीति के तहत पहली नदी जोड़ो परियोजना की शुरुआत है पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सौवीं जयंती के अवसर पर । इस क्षेत्र में इस राष्ट्रीय परियोजना की आधारशिला रखा जाना वाकई ऐतिहासिक क्षण है जिसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल संकट के समाधान की दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत भी माना जा सकता है। केबीएलपी केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश सरकारों के बीच एक त्रिपक्षीय पहल है जिसके अंतर्गत केन नदी से पानी को बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाना है। केन और बेतवा यमुना की सहायक नदियां हैं। इस परियोजना की कुल लागत अनुमानित लागत लगभग 44,605 करोड़ रुपए बताई जा रही है और इसको बनाने में लगभग 8 वर्ष का समय लगने की बात कही जा रही है। 22 मार्च, 2021 को प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री द्वारा एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर इस परियोजना को अमली जामा पहनाने के लिए सहयोग को औपचारिक रूप दिया गया था।
यह परियोजना दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दृष्टिकोण के अनुरूप है जिन्होंने भारत में जल की कमी की समस्या के समाधान के रूप में नदी-जोड़ने की वकालत की थी। परियोजना के संबंध में कहा जा रहा है कि इससे क्षेत्र में विकास के नए आयाम जुड़ेंगे। दौधन बांध का निर्माण पन्ना टाइगर रिजर्व में केन नदी पर किया जाएगा जो 77 मीटर ऊंचा और 2.13 किलोमीटर लंबा होगा। बांध में 2,853 मिलियन घन मीटर जल संग्रहण की क्षमता होगी। 221 किलोमीटर लंबी एक नहर दौधन बांध को बेतवा नदी से जोड़ेगी जिससे सिंचाई और पेयजल प्रयोजनों के लिए अधिशेष जल का स्थानांतरण सुगम हो जाएगा और इससे मध्य प्रदेश के 10 जिलों के लगभग 44 लाख लोगों को पीने का पानी मिलेगा और उत्तर प्रदेश राज्य के करीब 21 लाख लोग लाभान्वित होंगे।
हम सभी जानते हैं कि भारत की आबादी विश्व की कुल जनसंख्या की करीब 18 फीसदी है जबकि दुनिया में मौजूद पानी का सिर्फ चार फीसदी ही भारत के पास है। हर वर्ष करोड़ों क्यूसेक पानी बहकर समुद्र में चला जाता है और भारत को सिर्फ चार फीसदी पानी से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है। इसके समाधान के लिए नदियों को जोड़ने की बात अंग्रेजों के समय से ही होती आ रही है किंतु इस पर सबसे पहली बार सुव्यवस्थित ढंग से विचार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में किया गया था। 2002 में परियोजना को गति भी मिली लेकिन इसके बाद इसमें ठहराव आ गया। फिर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने नदी जोड़ो परियोजना को पूर्ण करने के सपने को साकार करने की जो घोषणा की थी, उसे पूरा करने और बिखरी हुई जल संपदा के समुचित प्रबंधन की दिशा में अगर मोदी सरकार आगे बढ़ती दिख रही है तो यह वाकई स्वागत योग्य कदम कहा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि अभी पिछले ही दिनों जयपुर में पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदी लिंक परियोजना के लिए त्रिपक्षीय समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए थे जिससे यही स्पष्ट होता है कि नदियों को जोड़ने की बहुप्रतीक्षित परियोजना के लिए अब सरकार ने कमर कस ली है। हालांकि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा पहुंचने से पारिस्थितिकी असंतुलन का खतरा पैदा हो सकता है। पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना महत्वपूर्ण है लेकिन जल संकट का समाधान भी उतना ही अहम है। ऐसे में, परियोजना का सतर्क क्रियान्वयन भी उतना ही जरूरी है। इसमें कोई शक नहीं कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई, पेयजल एवं ऊर्जा उपलब्ध कराकर जल संकट को दूर करने की अपार संभावनाएं हैं। यद्यपि इस परियोजना को महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है; विशेषकर पन्ना टाइगर रिजर्व और स्थानीय वन्यजीवों के साथ-साथ समुदायों के विस्थापन के संबंध में भी। इसलिए इन चिंताओं को परियोजना के लाभों के साथ संतुलित करना भी इस परियोजना के सफल कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण होगा।