ब्लिट्ज ब्यूरो
अब शंघाई सहयोग संगठन में भारत की ओर से अपनाए गए रुख का असर होता दिख रहा है।
चीन सीमा निर्धारण और क्षेत्र में शांति बनाए रखने को लेकर भारत के साथ संवाद करने के लिए तैयार है। यह भारत की एक कूटनीतिक जीत के समान ही है।
हाल ही में चीन के किंगदाओ शहर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के प्रस्तावित संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर रक्षामंत्री ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख कितना कड़ा है। एससीओ में भारत और पाकिस्तान 2017 से पूर्ण सदस्य हैं जिसमें रूस, कजाकिस्तान, किर्गिजिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान और बेलारूस भी हैं। राजनाथ सिंह ने प्रस्तावित संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर न करके चीन और पाकिस्तान की चाल को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। आज हर भारतीय, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के सिंहनाद पर गर्व कर रहा है। रक्षामंत्री ने हस्ताक्षर करने से इन्कार इसलिए किया क्योंकि उसमें पहलगाम में हुए हमले का कोई जिक्र नहीं किया गया था जबकि पाकिस्तान में बलूचिस्तान में हुई आतंकी घटना का उल्लेख था। भारत चाहता था कि संयुक्त वक्तव्य में आतंकवाद और उससे जुड़ीं चिंताओं को स्पष्ट रूप में शामिल किया जाए। इस पर रक्षामंत्री ने कड़ा रुख अपनाया। पाकिस्तान और चीन मिलकर पहलगाम में हुए नरसंहार को बयान में शामिल करने के खिलाफ थे।
राजनाथ सिंह ने बैठक में पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ और चीन के एडमिरल डोंग जून के सामने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि आतंकवाद और शांति एक साथ नहीं चल सकते। उन्होंने कहा, कुछ देश आतंकवाद को अपनी नीति का हथियार बनाते हैं और आतंकियों को पनाह देते हैं। ऐसे दोहरे रवैये की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। राजनाथ सिंह ने पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले का जिक्र किया जिसमें पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी ग्रुप द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने धार्मिक पहचान के आधार पर 26 बेकसूर नागरिकों को गोली मार दी थी। भारत ने 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए सीमा पार आतंकी ढांचे को नेस्तनाबूद कर दिया। सिंह ने कहा, भारत आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलता है। हमने दिखाया कि आतंकवाद के गढ़ अब सुरक्षित नहीं हैं। चीन और पाकिस्तान संयुक्त वक्तव्य में आतंकवाद के मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे थे ताकि उन्हें कठघरे में खड़ा न होना पड़े। अगर भारत इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर कर देता तो भारत का पक्ष कमजोर ही सकता था लेकिन राजनाथ सिंह ने अत्यंत परिपक्वता और कुशल राजनीतिज्ञ सूझबूझ का परिचय दिया।
चीन के रवैये से एक बार फिर यह सिद्ध हो गया कि वह आतंकवादी देश पाकिस्तान के साथ खड़ा है। चीन कई बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के आतंकवादी कमांडरों को ब्लैक लिस्ट में डालने का विरोध कर चुका है। पहलगाम हमले के बाद भी चीन के विदेश मंत्रालय का वक्तव्य काफी ढीला-ढाला था। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भी चीन ने ही पाकिस्तान की मदद की थी लेकिन भारतीय सेना ने चीन के हथियारों पर इठलाने वाले पाकिस्तान को 22 मिनट में चित कर दिया था।
अब शंघाई सहयोग संगठन में भारत की ओर से अपनाए गए रुख का असर होता दिख रहा है। चीन ने सोमवार 30 जून को कहा कि भारत-चीन सीमा विवाद जटिल है और इसे सुलझाने में समय लगेगा लेकिन इसके साथ ही उसने यह भी स्पष्ट किया कि वह सीमा निर्धारण और क्षेत्र में शांति बनाए रखने को लेकर भारत के साथ संवाद करने के लिए तैयार है। 26 जून को चीन के किंगदाओ शहर में एससीओ के सम्मेलन के दौरान भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके चीनी समकक्ष डोंग जुन के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। इस दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच जारी तनाव को कम करने और एलएसी पर शांति बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 23 दौर की विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत हो चुकी है लेकिन मामला इतना जटिल है कि इसमें समय लगना स्वाभाविक है। जब पूछा गया कि क्या विवाद सुलझाने के लिए कोई समय सीमा तय की गई है तो माओ निंग ने कहा, हम आशा करते हैं कि भारत भी उसी दिशा में काम करेगा और सीमा क्षेत्रों को शांत और स्थिर बनाए रखने के लिए संवाद जारी रखेगा। यह भारत की एक कूटनीतिक जीत के समान ही है।































