ब्लिट्ज ब्यूरो
लखनऊ। वैध आंदोलन, सामाजिक असहमति, वैचारिक विरोध संगठित अपराध नहीं हैं। संगठित अपराध व अपराधियों के खिलाफ इस्तेमाल की जाने वाली बीएनएस की धारा 111 के तहत मृत्यु दंड व आजीवन कारावास जैसी सजाएं हैं। इस धारा का उद्देश्य वास्तविक और खतरनाक आपराधिक नेटवर्क को पूरी तरह समाप्त करना है। इसका प्रयोग राजनैतिक विरोध, वैचारिक मतभेद या सामाजिक कार्यों पर प्रतिबंध के लिए नहीं होना चाहिए। इसलिए इस कानून का प्रयोग अत्यंत सीमित व न्यायोचित मामलों में ही किया जाए। संगठित अपराध को लेकर नए कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग न हो इसके लिए प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद ने शासन की तरफ से पुलिस अधिकारियों को जरूरी दिशा निर्देश जारी किए हैं।
प्रमुख सचिव गृह की तरफ से जारी निर्देशों में कहा गया है कि बीएनएस की धारा 111 के तहत कोई भी एफआईआर दर्ज करने से पहले डिप्टी एसपी या उससे उच्च स्तर के अधिकारी द्वारा जांच रिपोर्ट की समीक्षा व अनुमोदन करवाना अनिवार्य होगा। जिले के पुलिस कप्तान या कमिश्नर ऐसी शिकायत मिलने पर एक एसआईटी का गठन कर जांच करवाएं। धारा 111 से जुड़े मामलों में पुलिस प्रमुखों का आदेश स्पष्ट हो उसमें संगठित अपराध का प्रारंभ, गतिविधि, संगठन की संरचना, लाभ प्राप्ति की विधि और उनसे जुड़े साक्ष्यों का विस्तार से जिक्र होना चाहिए।
‘समीक्षा की जाए’
अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई, विधिक सहायता और जवाबदेही का अवसर भी दिया जाए। आरोपी के खिलाफ सभी दस्तावेज, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों व गवाहों के बयानों को सुनियोजित तरीके से जुटाया जाए। प्रमुख सचिव ने निर्देश दिए हैं कि धारा 111 के तहत दर्ज सभी मामलों की मासिक समीक्षा, अभियोजन समीक्षा व गैंगस्टर ऐक्ट को लेकर जिले में हर तीन माह में होने वाली समीक्षा बैठक में समीक्षा की जाए। ताकि अगर कहीं कोई गड़बड़ी हो तो उसे शुरुआती स्तर पर ही पकड़ा जा सके।
जिले के एसपी व डीएम को निर्देश हैं कि हर मासिक समीक्षा बैठक की रिपोर्ट शासन को भी भेजनी होगी। शासन ने निर्देश दिए हैं कि धारा 111 से जुड़े मामलों में किसी भी तरह की दोहरी सजा से बचा जाए। साथ ही इस धारा को लेकर जागरूकता के लिए सभी पुलिस व अभियोजन अधिकारियों का विशेष प्रशिक्षण करवाया जाए।































