राजेश दुबे
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि व्हाट्सएप अकाउंट का इस्तेमाल करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस आधार पर प्लेटफॉर्म को संवैधानिक उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने दो डॉक्टरों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने ब्लॉक किए गए व्हाट्सएप अकाउंट को बहाल करने की मांग की थी। अदालत ने साफ कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका केवल राज्य या उसकी एजेंसियों के खिलाफ दायर की जा सकती है, निजी कंपनियों के खिलाफ नहीं। इस सुनवाई के दौरान जब वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पवनी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया कि उनके मुवक्किलों का अकाउंट बहाल किया जाए, तो अदालत ने कहा, ‘आपका मौलिक अधिकार व्हाट्सएप तक पहुंचना कैसे हो गया? क्या व्हाट्सएप कोई राज्य है?’
पीठ ने यह भी कहा कि अगर अकाउंट ब्लॉक किए जाने पर याचिकाकर्ताओं को आपत्ति है, तो वे अन्य कानूनी उपाय जैसे सिविल कोर्ट या हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
डॉक्टरों ने लगाया था मनमानी का आरोप
यह याचिका डॉ. रमन कुंद्रा और एसएन कुंद्रा नाम के दो डॉक्टरों ने दायर की थी। वे एक क्लिनिक और पॉली-डायग्नोस्टिक सेंटर चलाते हैं। उनका कहना था कि 13 सितंबर 2025 को बिना किसी पूर्व सूचना या कारण बताए उनका व्हाट्सएप अकाउंट ब्लॉक कर दिया गया। डॉ. रमन कुंद्रा का कहना था कि वे पिछले दस साल से अपने मरीजों से संपर्क में रहने और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी शेयर करने के लिए व्हाट्सएप का इस्तेमाल कर रही थीं। उन्होंने आरोप लगाया कि अकाउंट ब्लॉक किए जाने की वजह शायद उनके द्वारा साझा किए गए वे संदेश थे, जो संविधान की प्रस्तावना में बताए गए मूल्यों का समर्थन करते थे। उन्होंने यह भी बताया कि 14 सितंबर को समीक्षा अनुरोध भेजा गया था, जिसे व्हाट्सएप ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अकाउंट ब्लॉक रहना जारी रहेगा।
याचिका में क्या कहा गया था?
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि व्हाट्सएप की कार्रवाई ‘मनमानी, एकतरफा और अधिकारों का उल्लंघन करने वाली’ है, जिससे उनके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और पेशा अपनाने के अधिकार का हनन हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि व्हाट्सएप अब ‘आवश्यक संचार माध्यम’ बन चुका है और इसका बाजार में प्रभुत्व इसे सार्वजनिक दायित्व वाला प्लेटफॉर्म बनाता है। इसलिए, अकाउंट ब्लॉक करने जैसी कार्रवाई न्यायिक जांच के दायरे में आनी चाहिए।